सनातन धर्म में अधिकमास का समय पूजा-अनुष्ठान, तप एवं दान आदि के लिए बेहतर माना जाता है. विशेष रूप से इस मास की अमावस्या और पूर्णिमा का कुछ विशेष महात्म्य होता है. गौरतलब है कि अधिकमास की अमावस्या 3 साल के अंतराल पर ही आती है. ज्योतिष शास्त्रियों के अनुसार इस दिन पितरों की शांति के लिए किए गए पिंडदान, तर्पण और दान से सात पीढ़ियों तक को तृप्ति मिलती है. पितृ दोष से मुक्ति मिलती है. घर में खुशियां आती हैं. आइये जानते हैं अधिकमास की अमावस्या की मूल तिथि, मुहूर्त, महात्म्य इत्यादि.. यह भी पढ़ें:
अधिकमास की अमावस्या का महात्म्य
अधिमास अमावस्या प्रत्येक तीन साल में एक बार पड़ता है, इसके अलावा इसी दिन मंगला गौरी व्रत भी पड़ने से इसका महात्म्य कई गुना बढ़ गया है. मान्यता है कि जिसकी कुंडली में पितृदोष होता है, उसे इस दिन उपवास रखते हुए शिवलिंग पर गंगाजल, कच्चा दूध, दही, शहद और काला तिल चढ़ाने से यथेष्ठ लाभ प्राप्त होता है. ज्योतिषाचार्य श्री रवींद्र पाण्डेय के अनुसार अधिकमास की अमावस्या के दिन किसी योग्य पुरोहित से पितृसूक्त का पाठ कराने से दाम्पत्य जीवन में चल रहा तनाव दूर होता है. अगर जातक किसी असाध्य बीमारी से ग्रस्त है और उसे मृत्यु का भय है, तो उसे अधिकमास की अमावस्या के दिन प्राचीन शिव मंदिर में शिवलिंग पर सफेद आक का फूल, बिल्व पत्र एवं धतूरा चढ़ाने से जातक को मृत्यु के भय से मुक्ति मिलती है. गौरतलब है कि 15 अगस्त 2023 को दिन में अमावस्या लग रहा है, मान्यताओं के अनुसार मंगलवार के अमावस्या को दर्श अमावस्या कहते हैं.
अधिकमास अमावस्या की मूल तिथि एवं मुहूर्त
अधिकमास अमावस्या प्रारंभः 12.43 PM (15 अगस्त 2023, मंगलवार) से
अधिकमास अमावस्या समाप्तः 03.07 PM (16 अगस्त 2023, बुधवार)
उदया तिथि के अनुसार अधिकमास अमावस्या व्रत 16 अगस्त 2023 को रखा जायेगा.
स्नान-दान मुहूर्तः 04.20 AM से 05.02 AM तक
अधिक मास अमावस्या की पूजा विधि
अमावस्या के दिन सूर्योदय से पूर्व स्नान-दान करें. अगर घर के आसपास कोई पवित्र नदी नही हो तो घर के पानी में गंगाजल मिलाकर स्नान करने से गंगा-स्नान का पुण्य प्राप्त होता है. स्नान के पश्चात सूर्य को जल अर्पित करें. इसके बाद घर के मंदिर में धूप-दीप प्रज्वलित करें. इस दिन विशेष रूप से पितरों के श्राद्ध हेतु पिण्ड दान एवं तर्पण आदि करने से पितरों को मुक्ति मिलती है, और जातक को पितृ दोष का जोखिम नहीं होता. वैसे इस दिन भगवान विष्णु की भी पूजा का विधान है. पूजा के पश्चात व्रत का पारण कर सकते हैं.