Sawan 2019: सावन के चार सोमवार, करेंगे शिव जी बेड़ा पार, जानें पूजा विधि और इसका महात्म्य
सावन का महिना जिसे महादेव का भी महिना माना जाता है ( Photo Credit: Wikimedia Commons )

तमाम वेद और पुराणों में सावन मास को भगवान शिव का सबसे प्रिय महीना बताया गया है. यूं तो शिव जी की पूजा-अर्चना साल भर चलती है, लेकिन सावन मास का एक-एक पल भगवान शिव को समर्पित होता है. इसमें भी सावन के सोमवारों का विशेष महात्म्य माना जाता है. शिव भक्तों में इस बात की आस्था है कि सावन के सोमवार को शिवजी की विधिवत पूजा करने से भोले भंडारी भगवान शिव बहुत प्रसन्न होते हैं और अपने भक्तों की हर मनोकामनाओं की पूर्ति करते हैं. विशेष रूप से सावन में पड़ने वाले सोमवार के दिन सुहागन औरतें एवं कुंवारी कन्याएं भगवान शिव की पूजा और व्रत रखती हैं. मान्यता है कि ऐसा करने से जहां सुहागन औरतों का सुहाग सुरक्षित रहता है, वहीं कुंवारी कन्याओं को मनवांछित पति की प्राप्ति होती है.

सावन के पूरे मास में भगवान शिव की पूजा अर्चना का महात्म्य है. चूंकि शिव जी की पूजा विधान में काफी सावधानियां बरतनी होती हैं, इसलिए अगर पूरे सावन कोई व्रत एवं पूजा नियमित रूप से नहीं कर सकता है तो उसे सोमवार के दिन व्रत रखकर पूजा अर्चना अवश्य करनी चाहिए. लेकिन प्रत्येक हिंदू के लिए पूरे सावन मास मांसाहार, असत्य, अमंगलकारी कार्यों, घृणा जैसी अनैतिक बातों से बचते हुए सच्चे मन से शिव जी की आराधना करनी चाहिए. भगवान शिव का एक नाम आशुतोष भी है, इस नाम का आशय यही है कि शिव जी थोड़ी-सी पूजा अर्चना मात्र से भक्तों पर खुश हो जाते हैं और मनवांछित फल प्रदान करने का आशीर्वाद देते हैं.

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क्यों प्रिय है शिव जी को सोमवार का दिन

वेदों में उल्लेखित हैं कि सोमवार के स्वामी भगवान शिव हैं. इसलिए साल के प्रत्येक सोमवार का दिन शिव-भक्ति के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है. शिव जी को सोमवार प्रिय होने के कारण ही सावन के सोमवार का महात्म्य और ज्यादा बढ़ जाता है. सावन के दिनों में पवित्र मिट्टी से शिवलिंग का निर्माण कर विधिवत तरीके से उसका अभिषेक किया जाता है. अगर प्रत्येक दिन संभव नहीं हो तो सावन के सभी सोमवार और प्रदोष के दिन पार्थिव शिव (शिव लिंग) की पूजा अवश्य करनी चाहिए.

सावन के सोमवार को शिव जी का रुद्राभिषेक

प्रत्येक सोमवार को रुद्राभिषेक करने से पूर्व स्नान-ध्यान करने के पश्चात व्रत रखते हुए शिव जी के विधिवत पूजा का संकल्प लिया जाता है. सर्वप्रथम शुद्ध जल से शिवलिंग को स्नान कराया जाता है. इसके पश्चात दूध, दही, शहद, शुद्ध घी, शक्कर से बने पंचामृत से शिवलिंग को स्नान कराया जाता है. इसके पश्चात पुनः शुद्ध जल से शिवलिंग को स्नान कराया जाता है. तत्पश्चात शिवलिंग पर चंदन का लेप लगा कर जनेऊ पहनाने का विधान है. इसके बाद शिवलिंग पर अबीर चढ़ाते हैं. ध्यान रहे शिव जी पर सिंदूर अथवा रोली नहीं चढ़ाते. अंत में शिव लिंग पर बेर, धतूरा, बेल-पत्र, बेल का फल, बेर, मदार के फूल शिवलिंग पर चढ़ाते हुए मन ही मन ‘ओम नमः शिवाय’ मंत्र का जाप करना चाहिए.

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अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार इस वर्ष 17 जुलाई बुधवार से श्रावण प्रारंभ हो रहा है, जो 15 अगस्त तक रहेगा. इसमें कुल चार सोमवार (22 एवं 29 जुलाई तथा 5 एवं 12 अगस्त) होंगे. इन चारों ही सोमवार को व्रत किया जाता है. पूजा के पश्चात श्रावण महात्म्य एवं शिव महापुराण की कथा सुनने का विशेष महत्व होता है. विधिवत पूजा के पश्चात ब्राह्मण को भोजन करवाने के पश्चात ही स्वयं भोजन ग्रहण करना चाहिए.

शिवलिंग पर जलाभिषेक का महत्व

मान्यता है कि सावन मास में ज्योतिर्लिंगों का दर्शन एवं जलाभिषेक करने से अश्वमेघ यज्ञ के समान फल की प्राप्ति होती है. शिवलिंग पर जलाभिषेक करने के संदर्भ में एक कथा प्रचलित है. एक बार देवों ओर राक्षसों ने मिलकर अमृत प्राप्ति के लिए सागर-मंथन किया. मंथन करते हुए समुद्र में से अनेक अनमोल पदार्थ उत्पन्न हुए. इसी क्रम में अमृत कलश से पूर्व कालकूट विष भी निकला. इस विष की भयंकर ज्वाला से समस्त ब्रह्माण्ड जलने लगा. लोग त्राहिमाम् त्राहिमाम् करते हुए भगवान शिव जी के पास पहुंचे. हाथ जोड़कर प्रार्थना करने लगे. तब शिवजी ने सृष्टि की रक्षा करते हुए विष को अपने कंठ में उतार वहीं उसे अवरूद्ध कर लिया.

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जिससे उनका कंठ नीला हो गया. समुद्र-मंथन से निकले उस विषपान से भगवान शिव को भी काफी तपन का अहसास हुआ. कहा जाता है कि वह भी सावन का समय था. शिव जी के तपन को शांत करने हेतु देवताओं ने गंगाजल से भगवान शिव का पूजन व जलाभिषेक किया. तभी से जलाभिषेक की परंपरा चली आ रही है. कहा जाता है कि शिव जी का जलाभिषेक कर समस्त भक्त उनकी कृपा की प्राप्ति करते हैं.