मानव शरीर में इंसुलिन के लेबल को मेंटेन करने के लिए चिकित्सक बेसल इंसुलिन देते हैं. सामान्य तौर पर डायबिटीज एक सामान्य बीमारी लगती है, लेकिन एक बार इसकी चपेट में आने के बाद इससे छुटकारा पाना संभव नहीं है. डायबिटीज पीड़ित व्यक्ति की पूरी लाइफ स्टाइल को ही बदल कर रख देता है. इस एक बीमारी से मनुष्य क्रमश कई बीमारियों से घिरता चला जाता है. डायबिटीज के मरीज को कब तक मेडिसिन पर निर्भर रहना चाहिए और कब इंसुलिन की मदद लेनी पड़ती है. इस संदर्भ में गुड़गांव स्थित प्राइवेट अस्पताल के चिकित्सक डॉ सुमित से विस्तृत बात होती है.
क्या है हाई ब्लड शुगर
हाई ब्लड शुगर के संदर्भ में पूछने पर गुड़गांव स्थित एक प्राइवेट अस्पताल के फीजिशियन डॉ सुमित बताते हैं, -जब कोई कुछ खाता है तो उसके पाचन क्रिया से शरीर में शुगर जेनरेट होने लगता है. जो ब्लडस्ट्रीम में जाता है. ऐसे में जब रक्त में शुगर की मात्रा बढ़ जाती है तो पैन्क्रियाज (अग्नाशय) इंसुलिन रिलीज करता है, जो इसे शरीर के दूसरे हिस्सों तक पहुंचाता है. लेकिन डायबिटीज पेशेंट के शरीर में पर्याप्त मात्रा में इंसुलिन नहीं बन पाता. इस वजह से उच्च रक्त शर्करा की स्थिति बनने लगती है. यह भी पढ़ें : Sleep Awareness: सेहतमंद जीवन के लिए नींद क्यों जरूरी है? जानें अच्छी-गहरी नींद के 9 आसान टिप्स!
जरूरत है ईच्छा शक्ति की!
एक सर्वे के मुताबिक भारत में डायबिटीज के लगभग 7.7 करोड़ से भी अधिक मरीज हैं. ब्लड शुगर के इलाज के बारे में डॉ सुमित बताते हैं, -ब्लड शुगर खत्म करना संभव नहीं है, लेकिन यदि मरीज की ईच्छा शक्ति मजबूत है, और वह समय-समय पर मेडीसिन लेता है, अपने डॉक्टर के संपर्क में रहता है तो वह सामान्य जीवन जी सकता है. यद्दपि कभी-कभी इसके लेबल को काबू में रखने के लिए दवाई और इंसुलिन लेने की नौबत आ जाती है.
कब लें इंसुलिन
डॉ. सुमित कहते हैं, -टाइप -1 डायबिटीज के मरीज के शरीर में जब इंसुलिन नहीं बनता है, तो उन्हें बाहर से इंसुलिन लेना पड़ता है. मरीजों की सेहत एवं स्थिति की जांच-परख करने के बाद आवश्यक्ता पडने के बाद ही डॉक्टर उन्हें इंसुलिन लेने की सलाह देते हैं. क्योंकि कुछ विशेष परिस्थितियों में इंसुलिन के साइड इफेक्ट्स भी हो सकते हैं. वहीं, डायबिटीज टाइप 2 के कुछ मरीजों को भी विशेष परिस्थितियों में इंसुलिन थेरेपी लेनी पड़ सकती है. गौरतलब है कि लंबे समय तक इस रोग से ग्रस्त मरीजों के पैन्क्रियाज से (अग्नाशय) इंसुलिन निर्माण स्लो हो जाता है, ऐसे में उन्हें भी इंसुलिन लेना पड़ता है.
कब लेना चाहिए इंसुलिन?
भोजन करने के बाद या बीच में इंसुलिन के लेबल को बरकरार रखने के लिए बेसल इंसुलिन दिया जाता है. लेकिन जब मरीज का ब्लड शुगर बहुत ज्यादा हाई हो जाता है तो बोलस इंसुलिन दिया जाता है. डॉ सुमित का मानना है कि जब जीवन शैली में बदलाव और दवाइयां देने के बावजूद मरीज का HbA1c लेवल 7 प्रतिशत से कम न हो तब उन्हें इंसुलिन लेने की सलाह डॉक्टर दे सकते हैं. क्योंकि ब्लड शुगर के इस लेबल को मेंटेन रखने का एकमात्र चारा इंसुलिन ही रह जाता है.