सनातन धर्म ग्रंथों में कल्कि जयंती का विशेष महत्व वर्णित है, क्योकि यह भविष्य में भगवान विष्णु के कल्कि रूप में जन्म लेने का प्रतीक है. हिंदू पौराणिक ग्रंथों के अनुसार कलयुग के अंत में तमाम बुराइयों का नाश करने और सतयुग की वापसी के लिए कल्कि पृथ्वी पर भगवान विष्णु के दसवें स्वरूप में अवतार लेंगे. श्रद्धालु हर वर्ष सावन शुक्ल पक्ष की षष्ठी को प्रतीक स्वरूप में कल्कि जयंती मनाते हैं. इस दिन सभी लोग श्रीहरि के आगमन की खुशी और आशा का जश्न मनाते हैं.
‘कल्कि’ नाम वस्तुतः संस्कृत शब्द ‘कालका’ से लिया गया है, जिसका हिंदी अर्थ है, इस ब्रह्मांड से सभी प्रकार की दुष्टता और बुराइयों का नष्ट करनेवाला. ऐसी मान्यता है कि भगवान विष्णु को धर्म एवं शांति को वापस लाने के लिए भगवान कल्कि जन्म लेंगे, और संपूर्ण ब्रह्मांड को शुद्ध करेंगे. यह भी पढ़ें : APJ Abdul Kalam’s Punyatithi 2025: ‘सूर्य की तरह चमकने के लिए पहले सूर्य की तरह जलना होगा’ अपने शुभचिंतकों को ऐसे अनमोल कोट्स भेजकर मिसाइल मैन को श्रद्धांजलि
कैसा स्वरूप होगा भगवान कल्कि का?
श्रीमद्भागवत में भगवान कल्कि भगवान विष्णु के दसवें अवतार के रूप में वर्णित हैं, जो कलियुग का अंत करने और सतयुग की वापसी के लिए अवतार लेंगे. कल्कि भगवान विष्णु के आठ सर्वोच्च गुणों का प्रतीक हैं, मगर भगवान विष्णु के सबसे क्रूर और आक्रामक अवतारों में से एक है , जो बुराई के संपूर्ण विनाश और मानव जाति के नए आरंभ का प्रतीक होंगे. इस दिन श्रद्धालु मोक्ष की प्राप्ति के लिए व्रत रखते हैं और भगवान कल्कि की पूजा करते हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि दुनिया का अंत निकट है, इसलिए कलियुग के अंत से पहले अपने पापों के लिए क्षमा मांगते हैं.
कल्कि जयंती 2025 का शुभ मुहूर्त
हिंदू पंचांग के अनुसार इस वर्ष 30 जुलाई 2025, बुधवार को कल्कि जयंती मनाई जाएगी.
पूजा का शुभ मुहूर्तः 04.06 PM बजे से शाम 06.38 PM तक (30 जुलाई 2025)
कल्कि जयंती 2025: पूजा विधि
श्रावण शुक्ल पक्ष की षष्ठी को सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान करें. स्वच्छ वस्त्र धारण करें. मंदिर के सामने एक छोटी चौकी पर लाल वस्त्र बिछाएं. इस पर भगवान विष्णु की प्रतिमा स्थापित करें. गंगाजल से उन्हें प्रतिकात्मक स्नान कराएं. अब भगवान विष्णु के समक्ष धूप दीप प्रज्वलित कर निम्न दोनों श्लोक का जाप करें.
‘ॐ श्री कल्कि सर्वेश्वराय नमः’ एवं
‘ॐ श्री कल्कि अवताराय नमः’
भगवान को पीले चंदन से तिलक लगाएं, फूलों से उनका श्रृंगार करें. पीले पुष्प का हार पहनाएं. विष्णु सहस्त्रनाम का जाप करें. भोग में पंचमित्र, फल एवं मिठाई चढ़ाएं. अंत में भगवान विष्णु की आरती उतारें और उपस्थितों को प्रसाद वितरित करें. इसके पश्चात व्रत का पारण करें.













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