Rath Yatra 2024: आधुनिक दुनिया के लिए रथ रात्रा, सांस्कृतिक विरासत की दिखती है अनूठी झलक
रथयात्रा (Photo Credits: Wikimedia commons)

Rath Yatra 2024: प्राचीन ज्ञान का देश माने जाना वाला भारत हमेशा ही आध्यात्मिक निर्वाण की इच्छा रखने वाले सैलानियों के लिए प्रेरणा का स्रोत रहा है. पत्रकार एलिजाबेथ गिल्बर्ट द्वारा लिखी गई किताब ‘ईट, प्रे, लव’ में इस बात को अच्छे तरीके से समझाया गया है कि यह देश आत्मज्ञान और शिक्षा में बेहद समृद्ध है. ये देश खोज के लिए हमेशा तत्पर रहता है. धार्मिक तथा आध्यात्मिक रूप से इतनी समृद्ध धरती पर होने के कारण लोगों को एक ऐसे अवसर में शामिल होने का मौका मिलता है जोकि उनमें आध्यात्मिक जागृति लेकर आता है. हालांकि, व्यस्तस्ता भरी जिंदगी और सोशल मीडिया की व्‍यापकता के बीच बार-बार इस तरह की जागृति लाना मुश्किल हो जाता है.

इसी तरह के कुछ बेहतरीन अनुभव देश के सदाबहार त्योहारों में देखने को मिल सकते हैं. यहां के हरेक त्योहार में आध्यात्मिक गहराई की झलक मिलती है. आषाढ़ महीने में चांद के अर्द्धचंद्राकार होने के दूसरे दिन इसी तरह रथ यात्रा जैसा एक खूबसूरत आयोजन होता है. अब यह पूरी दुनिया में मनाया जाता है. 1967 की गर्मियों में पश्चिमी दुनिया ने सैन फ्रांसिस्‍को शहर में पहली बार रथ यात्रा (Rath Yatra) देखी थी. पश्चिमी दुनिया में श्रीला प्रभुपाद ने भगवान जगन्नाथ (Bhagwan Jagannath) का पर्दापण कराया था और रथ यात्रा कार्यक्रम की शुरूआत की थी, वो भी इसके वास्तविक स्वरूप में. आज दुनिभाभर के सभी 1100 इस्कॉन सेंटर्स में रथ यात्रा होती है.

पारंपरिक रूप से जगन्नाथ पुरी में आयोजित होने वाले रथों का यह त्योहार दुनिया के सबसे पुराने धार्मिक त्योहारों में से एक है. इससे इसकी सांस्कृतिक विरासत का पता चलता है. जगन्नाथ के साथ उनके बड़े भाई भगवान बलराम और उनकी बहन देवी सुभद्रा को पूजा जाता है. इस मनोरम त्योहार पर ना केवल पारंपरिक विधि-विधान होते हैं, बल्कि लोगों को गहरी समझ और ज्ञान की प्राप्ति होती है.  हर साल आयोजित होने वाला यह कार्यक्रम हमें अपने जीवन में एकता और समानता को महत्व देना सिखाता है. यह आयोजन हमें सामाजिक भेदभाव से परे जाकर एक साथ प्यार-मोहब्बत से रहना सिखाता है.

भारत की चिलचिलाती गर्मी के महीने और मानसून की बिलकुल शुरूआत में, भगवान पुरी अपनी सालाना गर्मी की छुट्टियां मनाने अपने उद्यान महल में चले जाते हैं. वास्तविक रूप से यह त्योहार वृंदावन वासियों का माना जाता है जिन्होंने अपने भगवान कृष्ण, बलराम और देवी सुभद्रा को कुरुक्षेत्र से वापस लाने के लिए इसे मनाया था. आज पुरी में जगत देवता बड़े ही भव्य तरीके से पुरी के अपने मंदिर से शहर के बाहर गुंडिचा स्थित उद्यान मंदिर की तरफ भ्रमण पर निकलते हैं.  हजारों की संख्या में हिन्दू इस पवित्र रथ को एक मंदिर से दूसरे मंदिर की ओर खींचकर ले जाते हैं. अलग-अलग धर्मों के लोग भी इस कार्यक्रम की भव्यता को देखने यहां पहुंचते हैं. इतिहास के पन्नों में ये बात दर्ज है कि ब्रिटेन के लोग रथ का आकार देखकर दंग रह गए थे. रथ की भव्यता का वर्णन करने के लिए उन्होंने इसे एक नाम भी दिया था “जगरनॉट”. यह भी पढ़ें: Jagannath Rath Yatra 2024: हर 12 साल बाद क्यों बदली जाती है भगवान की प्रतिमाएं? जानें नवकलेवर अनुष्ठान और इसके गुप्त स्थान परिवर्तन के रहस्य के बारे में?

यह मानते हुए कि औरों की सेवा से शांति और संतुष्टि का भाव पैदा होता है, यह मानवता के प्रतीक के रूप में काम करता है, साथ ही यह हमारे अंदर सेवा-भाव भी जागृत करता है. प्राचीन ग्रंथों के अनुसार, पुरी में भगवान जगन्नाथ के साथ उनके बड़े भाई बलराम और बहन सुभद्रा को भी पूजा जाता है. हर देवता का अपना रथ होता है, जिन्हें बड़े ही अनूठे रूप में अलग-अलग रंगों के कपड़ों से सजाया जाता है. वहां पहुंचे तीर्थयात्री उन रथों में फर्क कर पाएं, इसके लिए रथों पर अलग-अलग प्रतीक भी होते हैं.  सम्मान तथा विनम्रता के प्रतीक के रूप में पुरी के राजा देवताओं के रथों को साफ करते थे.  इस त्योहार का आरंभ शंघनाद, तुरही, ड्रम और झांझ के मधुर स्वरों के साथ होता है.  तीर्थयात्री संगीत व नृत्य के साथ उद्यान मंदिर की यात्रा पर निकलते हैं.

इतने बड़े कार्यक्रम को आयोजित करने में पेश आने वाली परेशानियों के बावजूद इस त्योहार को हर साल ही इतनी ही धूमधाम के साथ मनाया जाता है। सभी भौगोलिक तथा सांस्कृतिक सीमाओं से परे, गोवर्द्धन इकोविलेज में रथ यात्रा का त्योहार एक ही रथ पर सभी देवताओं को विराजमान कर मनाया जाता है.

भक्तिभाव से भरे कीर्तनों के बीच गोवर्द्धन इकोविलेज में हर तरफ झांकियां और आयोजन होते हैं. हर साल आयोजित होने वाली रथ यात्रा के इस महान दिन पर भक्तजन नाचते-गाते हुए निकलते हैं, इससे लोगों के बीच प्रेम बढ़ता है, धैर्य आता है और अपने रिश्तों की बेहतर समझ मिलती है, साथ ही एकता और भाईचारे को बनाए रखने का महत्व पता चलता है. यात्रा के दौरान महसूस की जाने वाली खुशी और उत्सव को हमारे आध्यात्मिक तथा दैनिक जीवन में शामिल करने के प्रति हमारे आभार और प्रसन्नता को भी जाहिर करता है.

  • लेखक के लेख का मसौदा इस्कॉन के शासी निकाय आयोग के सदस्य और इस्कॉन के गोवर्धन इकोविलेज (जीईवी) के निदेशक गौरंगा दास प्रभु द्वारा तैयार किया गया है.