सावन पूर्णिमा, जिसे श्रावणी पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है. हिंदू धर्म शास्त्रों में इस पूर्णिमा का विशेष महत्व बताया जा रहा है, इस दिन भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा का विधान है, सावन माह होने के कारण बहुत से लोग इस दिन भगवान शिव की पूजा एवं रुद्राभिषेक अनुष्ठान भी करते हैं. इस वर्ष सावन पूर्णिमा का पर्व 9 अगस्त 2025, शनिवार को मनाया जाएगा. आइये जानते हैं, आचार्य संजय शुक्ल इस श्रावण पूर्णिमा को बहुत महत्वपूर्ण क्यों बता रहे हैं, साथ ही उनसे जानेंगे श्रावण पूर्णिमा के महत्व, मुहूर्त एवं पूजा अनुष्ठान आदि के बारे में विस्तार से..
क्यों महत्वपूर्ण बताया जा रहा है यह श्रावण पूर्णिमा
आचार्य शुक्ल के अनुसार यह दिन भगवान शिव को समर्पित एवं अत्यंत पवित्र माह सावन के समापन का प्रतीक है, इसी दिन भाई-बहनों के पवित्र रिश्तों वाला रक्षाबंधन का त्यौहार भी मनाया जाएगा, और इसी दिन वरुण देव की पूजा अनुष्ठान वाला नारली पूर्णिमा का पर्व भी पड़ रहा है. इसके अलावा इस दिन 02.23 PM तक श्रवण नक्षत्र और इसके बाद धनिष्ठा, 02.15 AM तक सौभाग्य योग, इसके बाद शोभन योग शुरू हो रहा है, जो 02.15 AM तक रहेगा. इस तरह तमाम शुभ योगों की उपस्थिति श्रावण पूर्णिमा का दिन बेहद महत्वपूर्ण बन रहा है, इस दिन भगवान विष्णु, देवी लक्ष्मी और भगवान शिव की उपासना करने से जातक के जीवन में सुख, शांति एवं समृद्धि आती है और जीवन के सारे पाप एवं कष्ट दूर होंगे. यह भी पढ़ें : Rakshabandhan 2025: रक्षाबंधन पर बहनें क्यों भेजती हैं भारतीय सैनिकों को राखियां? जानें कब और कैसे शुरू हुई यह परंपरा!
श्रावण पूर्णिमा की मूल तिथि एवं मुहूर्त
श्रावण माह पूर्णिमा प्रारंभः 02.12 PM (08 अगस्त 2025)
श्रावण माह पूर्णिमा समाप्तः 01.24 PM (09 अगस्त 2025)
श्रावण पूर्णिमा का महत्व
हिंदू पंचांग के अनुसार, यह साल की पाँचवीं पूर्णिमा होती है. इस दिन भगवान शिव और भगवान विष्णु तथा देवी लक्ष्मी की विधि पूर्वक पूजन करना अत्यंत शुभ माना गया है. इस दिन रक्षाबंधन का पर्व भी मनाया जाता है, जिसमें बहनें अपने भाई की कलाई पर राखी बांधती हैं और उनकी लंबी उम्र की कामना करती है.
श्रावण पूर्णिमा 2025 पूजन विधि
श्रावण पूर्णिमा के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान-ध्यान करें. स्वच्छ वस्त्र धारण कर सूर्य को जल अर्पित करें. अब हाथ में पुष्प एवं अक्षत लेकर व्रत एवं पूजा का संकल्प लें. अब पूजा स्थल के समीप एक चौकी पर लाल वस्त्र बिछाकर विष्णु जी, देवी लक्ष्मी और महादेव जी की प्रतिमा स्थापित करें. पंचामृत से भगवान को स्नान कराएं. धूप दीप प्रज्वलित करें. निम्न मंत्र का जाप करें.
‘ॐ नमः शिवाय’
‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’
भगवान को पीले वस्त्र, पीला फल, पीला चंदन, पान-सुपारी अर्पित करें. भोग में फल, मिष्ठान, केसर की खीर चढ़ाएं. अब शिव चालीसा एवं विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करें. अंत में शिवजी और विष्णु जी की आरती उतारें. चंद्रोदय होने पर चंद्रमा को अर्घ्य दें. इस दिन बहुत से लोग जरूरतमंदों को दान देते हैं. ऐसा करने से जाने-अनजाने हुए पाप नष्ट होते हैं, आय और सम्पत्ति में वृद्धि होती है.












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