हिंदू धर्म शास्त्रों में पुरी में आयोजित विश्व विख्यात भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा का विशेष महत्व वर्णित है. इस रथ यात्रा से हर समुदाय के लोग बड़ी श्रद्धा भाव से जुड़कर गौरवान्वित महसूस करते हैं. मान्यता है कि रथ यात्रा का रथ स्पर्श करने मात्र से सारे कष्टों का निराकरण हो जाता है, और जीवन में शुभता एवं सकारात्मकता आती है. गौरतलब है कि इस वर्ष पुरी (ओडिशा) में भगवान जगन्नाथ रथ यात्रा 07 जुलाई 2024, रविवार से शुरू होगी, और 9 दिन बाद 16 जुलाई 2024 को वापस लौटेगी आज हम भगवान जगन्नाथ रथ यात्रा से जुड़े कई अनछुए पहलुओं पर बात करेंगे.
कब शुरू होती है रथ यात्रा?
हिंदू पंचांग के अनुसार प्रत्येक वर्ष आषाढ़ शुक्ल पक्ष की द्वितीया को भक्तों की भारी भीड़ के साथ भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा आगे बढ़ती है. इस रथ यात्रा को देखने दुनिया भर के पर्यटक पुरी पहुंचते हैं. भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा के अपनी मौसी गुंडिचा से मिलने जाने की इस यात्रा को इतना पवित्र माना जाता है कि जो भी इस रथ यात्रा में शामिल होता है, वह काम, क्रोध, मद और लोभ से मुक्ति पाता है, जीवन के सुख भोग कर उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है. यह भी पढ़ें : Ashadha Gupt Navratri 2024: तांत्रिक ही नहीं दंपतियों के लिए भी शुभ है गुप्त नवरात्रि! जाने कब किस आदिशक्ति की पूजा करें!
12 साल में बदली जाती हैं प्रतिमाएं!
जगन्नाथ रथ यात्रा के संदर्भ में कई हैरान करने वाली मान्यताएं सालों से प्रचलन में हैं. इसी में एक यह है कि प्रत्येक वर्ष 12 साल के अंतराल पर भगवान जगन्नाथ, बलभद्र एवं देवी सुभद्रा की प्रतिमाएं बदल दी जाती हैं, इस अनुष्ठान को नवकलेवर कहते हैं, जिसका शाब्दिक अर्थ है नयी काया धारण करना. जानकारों के अनुसार चूंकि ये तीनों प्रतिमाएं काष्ठ यानी लकड़ी से निर्मित होती हैं. मौसम के कारण काष्ठ के आकार में संभावित परिवर्तनों को देखते हुए इन्हें बदला जाता है.
क्यों गुप्त रखा जाता है नवकलेवर अनुष्ठान?
प्रत्येक बारह वर्ष के अंतराल में प्रतिमाएं बदलने से लेकर इसके निर्माण तक की प्रक्रिया काफी गुप्त रखी जाती है. गौरतलब है कि भगवान जगन्नाथ, देवी सुभद्रा एवं बलभद्र की प्रतिमा का निर्माण नीम के लकड़ी से किया जाता है. पेड़ों का चुनाव मंदिर के मुख्य महंत स्वयं करते हैं, इसकी पहली शर्त यह है कि यह पेड़ सौ साल पुराना होना चाहिए. नीम का यह वृक्ष पूरी तरह पवित्र स्थल पर उगा होना चाहिए. प्रतिमा का निर्माण बंद कमरे में किया जाता है. इसके बाद जब प्रतिमा पूरी हो जाती है, तब प्रतिमा बदलते समय पूरे शहर की रोशनी गुल कर दी जाती है, पुरोहितों द्वारा मंत्रोच्चारण के बीच प्रतिमाएं बदली जाती हैं.