![Lal Bahadur Shastri Jayanti 2023: ‘मरो नहीं मारो’ का नारा बुलंद करने वाले लाल बहादुर शास्त्री के जीवन की अविस्मरणीय झलकियां! Lal Bahadur Shastri Jayanti 2023: ‘मरो नहीं मारो’ का नारा बुलंद करने वाले लाल बहादुर शास्त्री के जीवन की अविस्मरणीय झलकियां!](https://hist1.latestly.com/wp-content/uploads/2023/09/Lal-Bahadur-Shastri-teaser-380x214.jpg)
देश में अब तक चुने गये प्रधान मंत्रियों में भले ही लाल बहादुर शास्त्री का कार्यकाल काफी कम था, लेकिन जनता के प्रति उनकी सच्ची निष्ठा, मधुर व्यवहार, राष्ट्रप्रेम, ईमानदारी और ठोस निर्णय लेने के साहस की की चर्चा आज भी खूब की जाती है. शास्त्री जी की 121वीं जयंती के अवसर पर आइये जानते हैं उनके जीवन की अविस्मरणीय झलकियां.. Lal Bahadur Shastri Jayanti 2023 Wishes: लाल बहादुर शास्त्री जयंती की इन हिंदी Quotes, WhatsApp Messages, GIF Greetings के जरिए दें शुभकामनाएं
मां से मिले संस्कार
लाल बहादुर शास्त्री का जन्म 2 अक्टूबर 1904 को संयुक्त प्रांत (अब उत्तर प्रदेश) के मुगलसराय जिले में हुआ था. इनके पिता शारदा प्रसाद श्रीवास्तव इलाहाबाद के राजस्व विभाग में क्लर्क थे. लालबहादुर जब मात्र डेढ़ वर्ष के थे, पिता का निधन हो गया. इसके बाद उनके नाना मुंशी हजारी लाल माँ रामदुलारी देवी और बहनों को अपने घर ले गए. लेकिन शीघ्र ही नाना की भी मृत्यु हो गई. तब माँ ने कर्ज लेकर अपने बच्चों की परवरिश की. बाल्यकाल से ही गरीबी एवं अभावों से जूझ रहे लाल बहादुर को तमाम चुनौतियों एवं संघर्ष का सामना करना पड़ा. काफी वर्षों तक वह चिलचिलाती धूप में बिना जूते पहने नंगे पैर मीलों दूर स्कूल आते-जाते थे. माँ ने उनके भीतर बचपन से ही धैर्य, ईमानदारी, निःस्वार्थपन, शिष्टाचार, एवं निर्भीकता संचारित किया. लाल बहादुर कभी भी जाति व्यवस्था एवं वर्णवाद के पक्षधर नहीं थे, इसी कारण से उन्होंने अपने उपनाम से श्रीवास्तव शब्द हटा दिया था.
शास्त्री की उपाधि और विवाह
साल 1926 में लाल बहादुर ने काशी विद्यापीठ (वाराणसी) से स्नातक की पढ़ाई पूरी की. इसके बाद ही विश्वविद्यालय प्रशासन ने उन्हें शास्त्री (विद्वान) की उपाधि से अलंकृत किया. काशी विश्वविद्यालय में लाल बहादुर की मुलाकात कई बुद्धिजीवियों एवं राष्ट्रवादियों से हुआ. साल 1928 में मिर्जापुर निवासी ललिता देवी से उनका विवाह हुआ. उन दिनों दहेज प्रथा चरम पर था, लेकिन शास्त्री जी ने दहेज लेने से स्पष्ट मना कर दिया. लेकिन जब ललिता देवी के पिता ने बहुत प्रेशर डाला तब शास्त्री जी ने पांच गज खादी का कपड़ा लेने के लिए तैयार हुए. शास्त्री दंपत्ति के छह बच्चे थे.
राजनीति में प्रवेश
महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन में शामिल होने के आह्वान पर 16 वर्षीय लाल बहादुर शास्त्री अपना स्कूल छोड़ स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े. उनका पहला नारा था, ‘मरो नहीं मारो’. 17 वर्ष की आयु में वह जेल गए, इसके बाद विभिन्न आंदोलनों में सक्रियता से शामिल होने के कारण शास्त्री जी को कई बार ब्रिटिश पुलिस ने गिरफ्तार कर जेल भेजा. शास्त्री जी की काबिलियत को देखते हुए उन्हें लाला लाजपत राय द्वारा गठित सर्वेन्ट्स ऑफ पीपुल सोसायटी का अध्यक्ष चुना गया. 1928 में उन्हें राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल कर लिया गया. 1930 में उन्हें इलाहाबाद कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष पद के लिए चुना गया. 1937 में वह उप्र विधानसभा के सदस्य चुने गये, इसके बाद 1937 में ही उन्होंने उप्र संगठन के सचिव के रूप में भी कार्य किया. 1942 में जेल में रहते हुए उन्होंने समाज सुधारकों एवं पश्चिमी दार्शनिकों को समझने और पढ़ने में वक्त बिताया. भारत छोड़ो आंदोलन के दरम्यान भी उन्हें जेल जाना पड़ा था.
स्वतंत्रता के बाद शास्त्री जी
1946 में कांग्रेस सरकार के गठन के साथ उन्हें रचनात्मक भूमिका निभाने हेतु आमंत्रित किया गया. 1951 में उन्हें 'अखिल भारतीय-राष्ट्रीय-कांग्रेस' का महासचिव नियुक्त किया गया. उत्तर प्रदेश के संसदीय सचिव पद से वह गृह मंत्री पद तक पहुंचे. नेहरू जी जब अस्वस्थ थे, तब उन्हें बिना पोर्टफोलियो का मंत्री बनाया गया. 23 मई 1952 में उन्हें रेल मंत्री बनाया गया. उन्होंने कमजोर वर्गों के लिए तृतीय श्रेणी की शुरुआत की. यद्यपि 1956 में एक रेल दुर्घटना के बाद नैतिक आधार पर अपने पद से इस्तीफा दे दिया.1965 में पाकिस्तान द्वारा भारत पर आक्रमण का जवाब लाल बहादुर शास्त्री ने बखूबी दिया. उस दौरान खाद्यान्न संकट से गुजर रहे भारत में ‘जय जवान और जय किसान’ का नारा दिया. ईमानदारी कड़ी मेहनत के लिए मशहूर शास्त्री जी को भारत का प्रधानमंत्री बनाया गया. लेकिन 10 जनवरी 1966 को ताशकंद समझौते के दरम्यान शास्त्रीजी का दुखद निधन हो गया. डॉक्टर्स ने उनकी मौत की वजह हार्ट अटैक बताया, लेकिन पत्नी ललिता शास्त्री के अनुसार उन्हें जहर दिया गया था.