Hindi Diwas 2020: क्या है हिंदी दिवस की सार्थकता? क्या वक्त आ गया है हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने का?
हिंदी दिवस 2020 (Photo Credits: File Image)

Hindi Diwas 2020: किसी भी देश की राष्ट्रभाषा (National Language) उस देश की एकता और अखंडता का प्रतीक होती है, इसलिए हर देश की एक राष्ट्रभाषा होती है, जिस पर वहां के लोग गर्वान्वित होते हैं, मगर ब्रिटिश हुकूमत से आजादी मिलने के 73 साल बाद भी हम अपने देश को एक अदद राष्ट्रभाषा तक नहीं दिला सके. संविधान लागू होते समय महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) के ठोस तर्क देने के बावजूद हिंदी (Hindi) को राष्ट्रभाषा की मान्यता नहीं मिली. अलबत्ता अंग्रेजी को कामचलाऊ भाषा के तौर पर अवश्य थोप दिया गया. इस आश्वासन के साथ कि जब हिंदी का ज्ञान और प्रचलन समग्र भारत में प्रसारित हो जायेगा, उसी समय अंग्रेजी (English) का स्थान हिंदी ले लेगी, लेकिन राष्ट्रभाषा का यह आश्वासन अंततः एक झुनझुना ही साबित हुआ. पिछले 71 वर्षों से हर 14 सितंबर को हम राष्ट्रीय हिंदी भाषा दिवस मना रहे हैं. अगर आज संपूर्ण परिप्रेक्ष्य में हिंदी भाषा की स्थिति देखें तो यह सवाल मन में जरूर कौंधता है कि आखिर हिंदी दिवस की सार्थकता क्या है? क्यों मनाते हैं हम हर वर्ष हिंदी दिवस (Hindi Diwas)? क्यों नहीं मिल रहा है देश की सबसे बड़ी और उन्नत भाषा को राष्ट्रभाषा का दर्जा?

भारत विभिन्न धर्म, संप्रदायों, और विभिन्न भाषा-भाषाइयों का देश है. यही वजह थी कि साल 1947 में अंग्रेजों से आजादी हासिल करने के बाद पहला सवाल यही उठा था किस भाषा को राष्ट्रीय भाषा का दर्जा दिया जाये. सभी के सामूहिक विचार-विमर्श और सहमति के बाद 14 सितंबर 1949 को देश के अधिकांश हिस्सों में बोली जाने वाली हिंदी को राजभाषा का दर्जा दिया गया, जिसका उल्लेख संविधान के अनुच्छेद 343 (1) में किया गया है. संविधान के अनुसार भारत की राजभाषा ‘हिंदी’और लिपि ‘देवनागरी’मानी गयी. 14 सितंबर 1953 से आधिकारिक रूप से 'हिंदी दिवस' मनाने की शुरुआत हुई.

अंग्रेजी हुकूमत भी थर्राती थी हिंदी प्रदेशों से

भले ही आज तक हिंदी को राष्ट्रभाषा का दर्जा नहीं मिला, लेकिन जब हम अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ आजादी की लड़ाई की बात करते हैं तो पाते हैं कि अंग्रेज सबसे ज्यादा भयाक्रांत हिंदी प्रदेशों से रहते थे. उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान और मध्यप्रदेश. विशेषकर उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद, मेरठ, बनारस, कानपुर जहां अधिकांश हिंसक अथवा अहिंसक आंदोलनों की रूप रेखाएं तैयार की जाती थीं, और जिसकी भनक तक अंग्रेज सरकार को नहीं होती थी. यही वजह थी कि वे इन राज्यों पर विशेष नजर रखते थे, लेकिन यह हिंदी की त्रासदी ही कही जायेगी कि हिंदी को संवैधानिक तौर पर राजभाषा की मान्यता दिये जाने पर भी गैरहिंदी भाषी राज्यों ने कड़ाई से विरोध किया और आज भी हिंदी को राष्ट्रभाषा मानने का सबसे प्रबल विरोध उन्हीं लोगों द्वारा किया जाता है. यह भी पढ़ें: Hindi Diwas 2020: हिंदी दिवस कब है? जानें हिंदी भाषा को समर्पित इस खास दिन का इतिहास और महत्व

राष्ट्रभाषा का दर्जा हिन्दी को ही क्यों?

यह सच है कि भारत विभिन्न भाषाओं वाला देश है, इसलिए किसी एक भाषा को सभी पर थोपना उचित नहीं होगा, लेकिन क्या कोई देश बिना राष्ट्रभाषा के अपनी समग्र पहचान बना सकता है? राष्ट्रभाषा जरूरी है और हमें देखना होगा कि हिंदी, बंगाली, तमिल, तेलुगू, मलयालम, उड़िया, कन्नड़, असमी जैसी तमाम प्रचलित भाषाओं में कौन-सी भाषा राष्ट्रभाषा के तर्क पर खरी उतरती है? राष्ट्रभाषा का चुनाव करते समय हमें देखना होगा भारत की बहुसंख्यक आबादी की मातृभाषा कौन-सी है? सम्पर्क और संवाद की सबसे बड़ी भाषा कौन-सी है? भारत की अधिकांश आबादी कौन-सी भाषा में बोलती, लिखती-पढ़ती और समझती है? आम व्यक्ति के मनोरंजन की प्रमुख भाषा कौन-सी है? किस भाषा का शब्दकोश सबसे अधिक समृद्ध है? कौन-सी भाषा अधिक समावेशी है? किस भाषा में बोलियों और बाहरी भाषा के शब्दों को आसानी सेअपने में समाहित करने की क्षमता है? सबसे अधिक प्रसार संख्या किस भाषा के समाचार-पत्रों की है? सबसे अधिक टीआरपी किस भाषा के समाचार अथवा इंटरटेनमेंट चैनल की है? ऐसे कई तर्कपूर्ण प्रश्न हैं, जिस पर विचार करने के बाद अगर कोई भाषा उपयुक्त तर्कों पर पूरी तरह से खरी उतरती है तो वह हिंदी भाषा ही है. पूर्व प्रधानमंत्री स्व. अटल बिहारी बाजपेई और नरेंद्र मोदी संयुक्त राष्ट्र संघ में हिंदी में अपना भाषण सुनाकर हिंदी का लोहा सारी दुनिया को मनवा चुके हैं.

बदल रहे हैं हालात

बदले हुए दौर में आज हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने के पक्ष में हालात बनने लगे हैं. हिन्दी इनपुट टूल आने के बाद से सोशल मीडिया पर हिन्दी लिखने-पढ़ने वालों की संख्या में आश्चर्यजनक रूप से उछाल आया है. दक्षिण प्रदेशों में भी हिंदी साहित्य के प्रति लोगों का रुझान देखने को मिल रहा है. विभिन्न सॉफ्टवेयर सेक्टर के विशेषज्ञ भी मानने लगे हैं डिजिटल भारत का स्वप्न तभी साकार होगा जब हिन्दी को सूचना–प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में अनिवार्य किया जाएगा. पिछले ही दिनों अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद (एआईसीटीई) ने तकनीकी संस्थानों को सम्बद्ध पाठ्यक्रम हिन्दी में भी पढ़ाने की दिशा में पहल की है. इंजीनियरिंग और मेडिकल की पुस्तकों को हिन्दी में तैयार करने की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है. लेकिन इस किस्म की सकारात्मक पहल तभी अपना प्रभाव छोड़ सकेगी जब हिन्दी को आपसी संपर्क की भाषा के साथ-साथ तकनीकी भाषा के रूप में भी स्वीकार्य बनाने की दिशा में कोशिश की जाये. जिस दिन देश का अधिकांश नागरिक हिन्दी बोलने–लिखने में गर्व महसूस करने लगेगा, उसी दिन हिंदी दिवस की सार्थकता पूरी होगी.