Happy Holi 2020: दाऊजी के मंदिर में कपड़ाफाड़ होली, जब गोप करेंगे ठिठोली, गोपियां बरसायेंगी कोड़े, यहां मशीनों से बरसाये जाते हैं अबीर-गुलाल
हैप्पी होली 2020 (Photo Credits: File Image)

Happy Holi 2020: देश के अधिकांश जगहों में होलिकोत्सव की दो दिनों तक धूम रहती है. लेकिन ब्रृज में जहां चालीस दिन रंगों का पर्व मनाया जाता है, होलिकोत्सव के समाप्त होने के बाद अगले दिन यानी 12 मार्च को भी होली का विशेष आयोजन होता है, जहां दाऊजी के हुरंगे में देवर-भाभियों के बीच रंगों से छेड़छाड़ होती है. इसका आयोजन इतने वृहद और दिव्य स्तर पर होता है कि इसे देखने के लिए देश-विदेश से लोग आते हैं और इस रंगों के इस अनूठे पर्व का भरपूर लुत्फ उठाते हैं. कहा जाता है कि 1582 से होली की यह परंपरा चली आ रही है.

मथुरा से लगभग 21 किमी दूर एटा-मथुरा मार्ग में बलदेव शहर स्थित है. बलदेव यानी श्री कृष्ण के बड़े भाई बलदाऊ जी का नगर. बलराज शहर का वर्णन पुराणों में भी मिलते हैं. पुराणों में यह स्थान विद्रुमवन के नाम से उल्लेखित है. यहां भगवान श्री बलराम एवं उनकी पत्नी ज्योतिष्मति रेवती जी की विशाल प्रतिमा स्थापित है. भवन की तरह दिखने वाला यह मंदिर एक किले तरह चारों ओर से ऊंची-ऊंची दीवारों से घिरा हुआ है. इसी मंदिर में हुरंगे की होली का आयोजन होता है.

हुरंगा वाले दिन श्रीदाऊजी मंदिर का प्रांगण किसी देवलोक सरीका नजर आता है. होली के दीवाने एक रात पूर्व से ही होली खेलने के लिए मंदिर के कपाट खुलने का इंतजार करते हैं. गोपों का विशाल समूह मंदिर परिसर में टेसू के फूलों के रंगों से भरे हौदों में अपनी पिचकारियों में रंग भरकर हुरियानों और वहां उपस्थित दर्शकों पर फेंकते हैं. किसी को पिचकारी कम लगती है तो वह बाल्टियों में रंग भरकर हुरियानों पर फेंकते हैं. जवाब में गोपी बनी महिलाएं हुरियानों के कपड़े फाड़कर उसके सोटे बनाकर हुरियारों के नंगे बदन पर बरसातीं हैं. हुरियारिनें पिटाई में भूल जाती है कि सामने उनके जेठ हैं या ससुर. इस महोत्सव की रंगीनियां देखते बनती है. मंदिर का पूरा प्रांगण टेसू के फूलों खुशबूदार रंगों एवं अबीर गुलाल से पट जाता है, लेकिन ना ही गोपियां बनीं महिलाएं थकती हैं ना ही गोपों की टोलियां. रंग खेलते हुए गोपियां लोकगीत के माध्यम से उलाहने मारते हुए गाती हैं,

‘होरी तोते जब खेलूं मेरी पौहची में नग जड़वाय’

इसी क्रम में गोपियों और गोपों के बीच हुरियारों से रेवती मैया और बलदाऊजी के झंडे छीनने की होड़ चलती है. जब गोपियां झंडा नहीं ले पातीं तो हुरियारे गोपियों पर व्यंग्य कसते हैं ‘हारी रे गोरी घर चली, जीत चले ब्रजबाल’ इस पर गोपियां दूने उत्साह के साथ झंडा प्राप्त करने कोशिश करती हैं और गोपियों का पूरा समूह अंततः झंडा छीनने में सफल हो जाता है. इसके बाद वे जीत के जश्न में ‘हारे रे रसिया घर चले, जीत चली ब्रजनारि’ गाकर गोपों को छेड़ती हैं. इसी बीच फाग के स्वरों के साथ रसिया नफीरी, ढोल, मृदंग की आवाज प्रांगण में मौजूद हजारों श्रद्धालु आनंदित होकर नृत्य-गीत में शामिल होते हैं. उधर हुरियारे और हुरियारिनें गीतों की धुनों पर अपनी दुनिया में खोये थिरकते रहते हैं. कुछ गोप बलदेवजी के आयुध हल व मूसल को तो कुछ श्रीकृष्ण स्वरूप में मुरली की धुन बजाते नजर आते हैं. होली की यह ठिठोली मंदिर प्रांगण में काफी देर तक चलता है. समाज गायन ‘ढप धरि दे यार गई परु की, जो जीवे सौ खेले फाग’ के साथ हुरंगा का समापन होता है.

मंदिर प्रांगण में हजारों श्रद्धालु और ब्रज के संत श्रीकृष्ण के इस अलौकिक एवं अद्भुत लीला को साकार होते देखते हैं और आध्यात्मिक आनंद उठाते हैं. कहा जाता है कि इसी पर्व के आधार पर देवर-भाभियों के बीच छेड़छाड़ वाली होली का प्रचलन शुरू हुआ था. जो आज तक जारी है.

प्रत्यक्षदर्शियों का मानना है कि इस दिन गुलाल और अबीर उड़ाने के लिये मशीनों का उपयोग किया जाता है, जिसमें 100 मन से अधिक गुलाल, 51 मन से अधिक अबीर, 51 मन से अधिक फूलों की पंखुडिया उड़ाई गईं. टेसू के रंग 20 क्विंटल, 4 क्विंटल फिटकरी, सफेदी कलई 4 क्विंटल और इत्र व केशर का प्रयोग किया गया.