क्रिसमस की मूल पहचान सांता क्लॉस, कैरोलिंग और रोशनी तथा उपहारों से भरे क्रिसमस ट्री के इर्द-गिर्द होती है, लेकिन क्या कोई यह भी जानता है कि मध्ययुग में यूरोपीय कब और कैसे क्रिसमस का पर्व मनाते थे? यह जानकारी हर किसी के लिए रोचक और उत्सुकता जगाने वाली हो सकती है. क्रिसमस के अवसर पर आइये जानते हैं, इससंदर्भ में कुछ रोचक जानकारियां...
मान्यता है कि मध्य युग में क्रिसमस की शुरुआत महीने भर चलने वाले उपवास से होती थी. इस दौरान ईसाई समुदाय के लोग गरिष्ठ भोजन अथवा ओवर इटिंग से बचते थे, लेकिन यूके स्थित यूनिवर्सिटी ऑफ रीडिंग की इतिहासकार ऐनी लॉरेंस-मैथर्स के अनुसार क्रिसमस का उल्लास 25 दिसंबर की सुबह से शुरू हो जाता था. इस पर्व का मूल आशय नये-नये कपड़े पहनना, खाना-पीना, मौज मस्ती आदि होती थी. इन 12 दिन तक लोग अवकाश के मूड में पर्यटन आदि का आनंद लेते थे. इस पर्व का समापन 12वें दिन की रात में ‘कुशासन के राजा’ (King of Misrule) की जोरदार ताजपोशी के साथ होता था. क्रिसमस का यह दौर लगभग 5वीं शताब्दी से 1500 ईस्वी तक इसी तरह चलता रहा. यह भी पढ़ें: Sant Gadge Maharaj Quotes in Marathi: संत गाडगे महाराज की पुण्यतिथि पर ये WhatsApp Status, HD Images और Wallpapers शेयर कर करें उन्हें याद
खाना-पीने का मेन्यू ये होता था
मध्य युग में 25 दिसंबर को सूर्योदय से क्रिसमस की शुरुआत हो जाती थी, पूरे 12 दिन तक लोग क्रिसमस की खुशी में खाना-पीना और मौज-मस्ती चलती थी. 5 जनवरी को इसका समापन होता था. ग्रामीण इलाकों में धनी लोगों से अपेक्षा की जाती थी कि वे अपने कर्मियों को इन 12 दिन का अवकाश दें और क्रिसमस सेलिब्रेशन के लिए भोजन आदि की भी व्यवस्था करें. उन दिनों दावत का क्या मेन्यू होता था, यह प्रमाणित नहीं है, लेकिन 1393 में लिखे एक लेख ‘द गुड मैन ऑफ पेरिस’ में, लेखक के अनुसार भोजन की शुरुआत पेस्टीज़, सॉसेज और ब्लैक पुडिंग के साथ होती थी, इसके पश्चात मछली, चिकन, भुने मांस के चार कोर्स, कस्टर्ड, टार्ट, मेवे एवं मिठाइयां होती थी. इस अवसर पर मद्यपान भी महत्वपूर्ण होता था.
मूक अभिनय, हॉगलिंग और मूर्खों की दावत
मध्यकालीन युग में गांवों में लोकप्रिय क्रिसमस को रोचक बनाने हेतु जानवरों के मुखौटे पहनते थे, महिलाओं की वेशभूषा में घर-घर जाकर गीत गाते और चुटकुले, जोक आदि सुनाते थे, कुछ लोग महज हास्य के लिए ऐसा करते थे, तो कुछ लोग घरों से पैसे अथवा उपहारों की उम्मीद रखते थे. राजघरानों में दावत के दरम्यान जानवरों के मुखौटे पहनकर गीत गाते हुए परेड की भी परंपरा थी. इसमें सबसे ज्यादा एवं आम मुखौटा सुअर का होता था. 12 दिवसीय इस पर्व के मध्य में मूर्खों का पर्व मनाया जाता था, जिसमें पुजारियों, उपयाजकों एवं चर्च अधिकारियों को मूर्ख का लाइसेंस दिया जाता था. हालांकि कहीं-कहीं उपरोक्त बातों की निंदा भी की जाती थी
बीन केक
बारह दिवसीय क्रिसमस के आयोजन का केंद्र बिंदु बीन केक था. बीन केक का आशय कई फलों से बने केक में एक सूखी बीन छिपा दी जाती है, केक बांटने के दरम्यान जिस व्यक्ति को केक के बीच छिपा इकलौता बीन मिलता था, उसे उस रात का राजा बनाया जाता था, और अपने शासन में वह लोगों को मूर्खतापूर्ण अंदाज दंड के फैसले सुनाता था, जिसका पालन दंड भोगियों को करना होता था, इसलिए उसे कुशासन का भगवान कहा जाता था. उसे इतनी शक्ति प्राप्त थी, कि वह माता-पिता, स्कूल मास्टरों एवं बड़े-बड़े अधिकारियों से शर्मनाक कार्य करवाने के लिए दबाव डाल सके.
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