वैसे तो हिंदुस्तान के हर राज्य की अपनी-अपनी विशेषता है, लेकिन बात पूर्वोत्तर राज्यों की हो तो असम, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर, मेघालय, नागालैंड, त्रिपुरा, सिक्किम और मिजोरम (Mizoram) सहित आठ राज्यों की तस्वीर जेहन में घूम जाती है. ये सभी राज्य प्राकृतिक रूप से इतने समृद्ध और प्राकृतिक सौंदर्य से भरे हुए हैं कि एक बार यहां आने के बाद बार-बार आने की इच्छा होती है. हम यहां बात करेंगे मिजोरम की. मिजोरम, जिसे आज यानी 20 फरवरी को देश का 23वां केंद्र शासित राज्य घोषित किया गया था. आखिर क्या खासियत है पूर्वोत्तर के इस राज्य की?
आठ जिलों से युक्त केंद्र शासित राज्य मिजोरम का 80 फीसदी भूभाग हरी-भरी पहाड़ियों से घिरा होने के कारण इसका प्राकृतिक सौंदर्य बस देखते बनता है. एक समय यह प्रदेश असम का हिस्सा हुआ करता था. 1972 में पूर्वोत्तर क्षेत्रों के पुनर्गठन अधिनियम लागू होने के बाद मिजोरम को स्वतंत्र केंद्र शासित प्रदेश घोषित किया गया. भारत सरकार और मिजो नेशनल फ्रंट (Mizo National Front) के बीच 1986 में हुए समझौते के तहत 20 फरवरी 1987 को इसे स्वतंत्र राज्य का दर्जा हासिल हुआ.
केरल के बाद दूसरा सबसे शैक्षिक प्रदेश
‘मिजो’ शब्द का अर्थ तो शब्दकोश में उपलब्ध नहीं है, अलबत्ता ‘मिज़ोरम’ का आशय ‘पर्वतवासियों की जमीन’ के रूप में जरूर परिभाषित किया जाता है. सूत्र बताते हैं कि 19वीं शताब्दी में यहां ब्रिटिश मिशनरियों का आधिपत्य था, चूंकि ईसाई मिशनरियां अपने धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए हर हथकंडे अपनाती हैं, शायद उसी का परिणाम है कि आज यहां 80 फीसदी से ज्यादा ईसाई समुदाय के लोग हैं. यहां अंग्रेजी और हिंदी बोली जाती है, लेकिन मिजो समाज की अपनी कोई लिपि नहीं है. शिक्षा एवं पत्राचार आदि के लिए रोमन लिपि के इस्तेमाल को अमल में लाया जाता है. मिजोरम ने काफी कम समय में अपने शिक्षा स्तर में व्यापक सुधार लाया है. हल ही में सर्वे के बाद माना गया है कि वर्तमान में मिजोरम की साक्षरता दर 88.88 प्रतिशत है, यानी शिक्षा के क्षेत्र में देश भर में केरल के बाद मिजोरम दूसरे स्थान पर है. म्यांमार और बांग्लादेश के बीच स्थित होने के कारण मिजोरम देश की सुरक्षा एवं सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण राज्य माना जाता है. यहां का मुख्य व्यवसाय बांस की खेती बताई जाती है. इसके साथ हाथ से बुने कपड़े व बेंत के उत्पादों की भी अच्छी मांग है. लेकिन यह भी निर्विवाद सत्य है कि अलग प्रदेश घोषित किये जाने के बाद भी मिजोरम का विकास जिस गति से होना चाहिए था, नहीं हुआ. यद्यपि पिछले कुछ सालों से यहां क्रमशः उद्योग धंधे व नौकरियों के नये विकल्प तलाशे जा रहे हैं.
पर्यटन स्थल
मिजोरम में प्राकृतिक सौंदर्य चप्पे-चप्पे पर बिखरा पड़ा है. बलखाती नदियां, हरी-भरी एवं गहरी घाटियां और घने वनों, दूध सी गिरती जल धाराओं का ही प्रभाव है कि यहां असंख्य प्रकार के प्राणियों, दुर्लभ प्रजातियों की वनस्पति एवं औषधीय जड़ी बूटियां मिलती हैं. यहां आनेवाले पर्यटकों का मानना है कि लगभग संपूर्ण मिजोरम ही पर्यटकों को बार-बार वापस आने के लिए प्रेरित करता है. मिजोरम की राजधानी आइजोल यहां की सबसे खूबसूरत जगह है. स्थानीय बाजारों में यहां की हस्तशिल्पों की समृद्धि परंपरा रही है, जिसके लिए यहां का ‘बड़ा बाजार’ के अलावा ‘रिट्ज मार्केट’, ‘बर्मा लेन’, ‘थैकथिंग बाजार’, ‘न्यू मार्केट’, ‘सोलोमन’ आदि बहुत लोकप्रिय है. प्रकृति प्रदत्त सौंदर्य से पटा आइजोल मिजोरम का धार्मिक एवं सांस्कृतिक क्षेत्र है. यहां लगभग हर प्रकार के पक्षी और वन्य प्राणी देखने को मिलते हैं. मिजोरम एक विशेष प्रकार के तीतर, जिसे स्थानीय भाषा में सिरामेटिक्स हमीया भी कहते हैं, के लिए प्रसिद्ध है. म्यांमार (Myanmar) की सीमा के करीब ही ‘चमफाई’ नामक एक बहुत खूबसूरत पर्यटन स्थल है. यह इंडो-म्यामार की सीमा पर स्थित है. यहां के खूबसूरत दर्शनीय स्थलों में मुर्लेन नेशनल पार्क (Murlen National Park), मुरा पुक (Mura Puk), रीह दिल लेक (Rih Dil lake)और थसियामा सेनो नैनहा प्रमुख हैं. कुछ ही दूरी पर एक बेहद मनोरम और प्राकृतिक
झील है, इसके चारों ओर दूर-दूर तक मनोहारी वन फैला हुआ है. यह जगह आइजोल से करीब 80 किमी और सैतुअल से 10 किमी की दूरी पर स्थित है. यहीं पास में पर्यटकों के आकर्षण का एक केंद्र वानतांग जल प्रपात भी है. स्थानीय गाइड के अनुसार यह मिजोरम का सबसे ऊंचा और बहुत खूबसूरत जल प्रपात है. थेनजोल कस्बे से इसकी दूरी करीब 5 किमी है. रास्ते की खूबसूरत वादियों को निहारते हुए अधिकांश पर्यटक यह दूरी पैदल चलकर तय करते हैं.
यहां के पर्व मिजो लोगों की सांस्कृतिक विरासत को प्रस्तुत करते हैं. इन पर्वों का मुख्य आकर्षण है यहां की वेशभूषा, पारंपरिक नृत्य, लोकगीत आदि. चूंकि यहां के लोगों की जिंदगी का मुख्य आधार खेती है, इसलिए अधिकांश पर्व कृषि पर ही केंद्रित होते हैं, जो विभिन्न फसलों की कटाई, बुआई और मौसम के अनुरूप मनाए जाते हैं.