UP Election Result 2022: यूपी चुनाव के नतीजें आने के बाद अब इन दो सियासी सूरमाओं का क्या होगा? हर किसी के मन में है ये सवाल
बीजेपी (Photo Credits: PTI)

लखनऊ: उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव (Uttar Pradesh Assembly Elections 2022) के नतीजें आ चुके है. निर्वाचन आयोग द्वारा बीती रात जारी अंतिम आंकड़ों में बीजेपी ने 255 सीटों पर जीत दर्ज कर ली है. वहीं, राज्‍य के मुख्‍य विपक्षी दल समाजवादी पार्टी (सपा) ने 111 सीटों पर जीत दर्ज कर ली है. राज्य की 403 सदस्यों वाली विधानसभा में बहुमत के लिए कम से कम 202 सीटें जीतना जरूरी है. इसके अलावा, बीजेपी की सहयोगी अपना दल (सोनेलाल) ने 12 सीटों पर जीत दर्ज कर प्रदेश में तीसरे सबसे बड़े दल के रूप में अपनी जगह बना ली है. जबकि बीजेपी की एक और सहयोगी निर्बल इंडियन शोषित हमारा आम दल (निषाद) भी छह सीटों पर जीत गई है. जबकि बसपा (बहुजन समाज पार्टी) एक और कांग्रेस दो सीटों पर सफल हुई है. UP Election 2022: सपा-रालोद गठबंधन क्यों नहीं बना सका सही तस्वीर?

यूपी चुनाव के नतीजों ने कई सियासी सूरमाओं के आगे के कदम पर प्रश्नचिंह लगा दिया है. इसमें एक नाम राष्ट्रीय लोक दल (रालोद) के अध्यक्ष जयंत चौधरी का भी है. जो सपा के साथ चुनावी मैदान में उतरे थे लेकिन यूपी की राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने में असफल हो गए. पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बड़ी प्रभावशाली समझी जाने वाली रालोद सिर्फ आठ सीटों पर कामयाब हुई. अब सवाल यह है कि क्या जयंत चौधरी, जिन्होंने पिछले साल अपने पिता चौधरी अजीत सिंह के निधन के बाद चुनावी राजनीति में पहली बार स्वतंत्र पदार्पण किया, पार्टी के लिए खोई हुई जमीन फिर से हासिल करने और राजनीतिक ताकत बनकर उभरने के लिए के लिए आगे क्या रणनीति बनाते है?

जयंत के सामने न केवल अपने पिता, बल्कि दादा और पूर्व प्रधानमंत्री दिवंगत चौधरी चरण सिंह की विरासत को आगे बढ़ाने की चुनौती है. 2014 के बाद से रालोद के आधार और उसकी लोकप्रियता में गिरावट आई है, जब मुजफ्फरनगर दंगों के बाद अधिकांश जाट भाजपा के साथ चले गए थे.

जयंत 2014 में बीजेपी की हेमा मालिनी से अपनी लोकसभा सीट हार गए थे और उनकी पार्टी चुनाव में कोई भी करिश्मा दिखाने में नाकाम रही थी. 2017 में, रालोद ने छपरौली में एक सीट जीती थी, लेकिन उनकी पार्टी का एकमात्र विधायक 2018 में भाजपा में शामिल हो गया.

उधर, साल 2017 के विधानसभा और 2019 के लोकसभा चुनावों में इस ओर रुझान और मजबूत हुआ और रालोद राज्य की राजनीति में पूरी तरह से किनारे हो गया. हालांकि पिछले पांच वर्षों में जयंत पश्चिमी यूपी के गांवों का दौरा कर खाप नेताओं से मिले और जाटों को अपने पाले में लेन का पूरा प्रयास किया.

तीन कृषि कानूनों के खिलाफ सालभर के किसानों के आंदोलन ने रालोद को खोई हुई जमीन वापस पाने का मौका दिया था. जयंत ने आंदोलन को समर्थन दिया और किसानों ने भी उनकी उपस्थिति से नाराजगी नहीं जताई, जब उनकी ओर से अन्य राजनीतिक दलों को दूर रहने के लिए कहा गया था. इस दौरान जयंत को अब अपने पिता के निधन के बाद जाटों की सहानुभूति मिली और उनके समर्थक नए जाट-मुस्लिम मिलन से काफी हद तक उत्साहित हुए. इस लिहाज से रालोद के लिए मौसम अनुकूल था, लेकिन फिर भी यूपी के नतीजें निराशाजनक आए.

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि अगर रालोद ने भाजपा के साथ गठबंधन किया होता तो उसे और अधिक लाभ हो सकता था, लेकिन जाहिर तौर पर जयंत ने किसानों के मूड पर प्रतिक्रिया दी और गठबंधन के लिए समाजवादी पार्टी को चुना था.

वरुण गांधी की गैर मौजूदगी

उत्तर प्रदेश के पीलीभीत क्षेत्र में अपने कद्दावर नेता वरुण गांधी की अनुपस्थिति के बावजूद भी बीजेपी ने जिले की चारों सीटों पर जीत का स्वाद चखा है. लंबे समय से वरुण गांधी अपनी ही पार्टी के खिलाफ अवाज उठा रहे थे, लेकिन इसके बाद भी पार्टी ने उनके खिलाफ कोई एक्शन नहीं लिया, हालांकि उन्हें संगठन के कामों से दूर जरुर रखा. यह पूरा क्षेत्र सिख बहुल है. वरुण गांधी और उनकी मां मेनका गांधी की इस क्षेत्र में जोरदार पैठ है और दोनों ही यहां से भारी मतों के अंतर से जीते थे.

मेनका को वर्ष 2014 और वरुण गांधी को 2019 के लोकसभा चुनाव में पांच-पांच लाख से अधिक वोट मिले थे. हालांकि किसान आंदोलन से जुड़े सवाल उठाने के बाद बीजेपी ने वरुण गांधी स्टार प्रचारकों की सूची में भी जगह नहीं बना सके थे. एक बार वरुण गांधी अपनी अनुपस्थिति के बारे में कहा था कि "मैं कोविड के डेल्टा वेरिएंट से पीड़ित था और अभी भी ठीक नहीं हुआ हूं. पूरी तरह ठीक होने के बाद मैं अपने निर्वाचन क्षेत्र में पहुंचूंगा."