मुंबई के KEM अस्पताल में ऐतिहासिक हार्ट ट्रांसप्लांट के 41 दिन बाद मरीज की मौत हो गई. 38 वर्षीय महेश पांडव का एक ऐतिहासिक हार्ट ट्रांसप्लांट हुआ था, जिसने इस अस्पताल के इतिहास में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर स्थापित किया. लेकिन दुर्भाग्यवश, औरंगाबाद के रहने वाले महेश की 41 दिनों बाद एक गंभीर संक्रमण के कारण मृत्यु हो गई. 12 जुलाई को जब महेश का 12 घंटे का लंबा ऑपरेशन किया गया, तो यह KEM अस्पताल के 56 साल के इतिहास में दूसरा हार्ट ट्रांसप्लांट था.
यह सर्जरी अपने आप में खास थी क्योंकि 1968 में KEM अस्पताल का पहला हार्ट ट्रांसप्लांट असफल रहा था. उस ऐतिहासिक सर्जरी का नेतृत्व डॉ. प्रफुल्ल कुमार सेन ने किया था, जो 1967 में डॉ. क्रिस्टियान बार्नार्ड द्वारा किए गए विश्व के पहले हार्ट ट्रांसप्लांट के बाद किया गया था.
महेश की सर्जरी ने नए सिरे से उम्मीद जगाई थी. जब वह बिना किसी जटिलता के स्वस्थ होकर घर लौटे. हार्ट ट्रांसप्लांट के बाद उन्हें 1 अगस्त को अस्पताल से छुट्टी दे दी गई थी और उनकी हार्ट पंपिंग कैपेसिटी 60 फीसदी थी, जो एक सफल परिणाम माना गया.
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पहले बुखार फिर सांस लेने में दिक्कत
The Indian Express ने महेश की पत्नी, स्वाति पांडव के हवाले से कहा, " इस हार्ट ट्रांसप्लांट से परिवार में खुशियां और उम्मीदें थीं, क्योंकि उन्हें लगा कि उनकी लंबी संघर्ष यात्रा अब समाप्त हो गई है. लेकिन यह खुशी अधिक समय तक नहीं टिक सकी. 20 अगस्त की रात को महेश को अचानक तेज बुखार हो गया और सांस लेने में कठिनाई होने लगी. स्वाति ने तुरंत KEM अस्पताल के डॉक्टरों से संपर्क किया, जिन्होंने उन्हें सलाह दी कि अगर स्थिति सुबह तक नहीं सुधरती है, तो उन्हें संभाजीनगर के किसी स्थानीय अस्पताल में भर्ती करवा दें.
रिपोर्ट के अनुसार अगली सुबह तक महेश की हालत और बिगड़ गई. वह पेशाब नहीं कर पा रहे थे और सांस लेने में भी अत्यधिक कठिनाई हो रही थी. परिवार ने उन्हें जल्दी से सेठ नंदलाल ढोट अस्पताल में भर्ती करवाया, जहां उन्हें ऑक्सीजन सपोर्ट पर रखा गया.
संक्रमण के कारण मौत
स्थानीय डॉक्टरों और KEM अस्पताल के डॉक्टरों की कड़ी मेहनत के बावजूद, महेश की हालत तेजी से बिगड़ती चली गई. जब स्थिति स्थिर नहीं हुई, तो उन्हें वेंटिलेटर पर रखा गया, लेकिन 22 अगस्त को संक्रमण के कारण उनकी मौत हो गई.
KEM अस्पताल के सूत्रों के अनुसार, संक्रमण ने महेश के दिल को बुरी तरह प्रभावित किया, जिससे उनकी असामयिक मृत्यु हो गई. महेश को इम्यूनोसप्रेसिव दवाएं दी जा रही थीं, जो ट्रांसप्लांट मरीजों के लिए आवश्यक होती हैं ताकि शरीर नए अंग को अस्वीकार न करे. लेकिन ये दवाएं, जो जीवनरक्षक होती हैं, मरीजों को संक्रमण के प्रति भी अधिक संवेदनशील बना देती हैं, और महेश के मामले में यह रिस्क घातक साबित हुआ.