प्रयागराज में अर्ध कुंभ की तैयारियां जोरों-शोरों से जारी हैं. यहां हाईटेक सुविधाओं का आयोजन किया गया है. ताकि श्रद्धालूओं को किसी भी तरह की तकलीफ न हो. कई एकड़ में टेंट सिटी बनाई गई हैं और कुंभ मेले तक पहुंचने के लिए पांच जेट्टी भी बनाई गई है. वैसे तो कुंभ स्नान 14 जनवरी से लेकर 4 मार्च तक है. लेकिन शाही स्नान की 6 प्रमुख तिथियां हैं. आइए आपको बताते हैं इन शाही स्नान की प्रमुख तिथियां और उनके महत्व.
मकर संक्रांति (Makar Sankranti, 14 January, 2019): कुंभ की शुरुआत मकर संक्रांति के दिन से होती है. इस दिन सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है इसलिए इस दिन स्नान करना बड़ा ही शुभ माना जाता है. इस स्नान को शाही स्नान या राजयोगी स्नान भी कहा जाता है. स्नान के बाद दान करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है.
पौष पूर्णिमा (Paush Purnima, 21 January, 2019): कुंभ का दूसरा शाही स्नान पौष पूर्णिमा को है. पूर्णिमा यानी पूरा, इस दिन चांद पूरा निकलता है. पौष पूर्णिमा के दिन स्नान करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है. और सभी शुभ कार्यों की शुरुआत भी हो जाती है.
मौनी अमावस्या (Mauni Amavasya, 4 February, 2019): कुंभ में तीसरा शाही स्नान है मौनी अमावस्या के दिन. इस दिन पहले तीर्थकर ऋषभ ने अपनी लंबी तपस्या का मौन व्रत तोड़ा था और संगम के पवित्र जल में स्नान किया था. इस दिन बहुत बड़ा मेला भी लगता है.
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बसंत पंचमी (Basant Panchami, 10 February, 2019): बसंत पंचमी माघ महीने की पंचमी तिथि को मनाई जाती है. बसंत पंचमी के दिन से ही बसंत ऋतु की शुरुआत हो जाती है. बसंत ऋतू में न ज्यादा ठंड लगती है और न ज्यादा गर्मी. पौराणिक मान्यता के अनुसार बसंत पंचमी के दिन ही देवी सरस्वती का जन्म हुआ था. इसलिए इस दिन सरस्वती पूजा भी की जाती है.
माघी पूर्णिमा (Maghi Purnima, 19 February, 2019): कुंभ का पांचवां स्नान माघी पूर्णिमा के दिन है. कहा जाता है इस दिन सारे देवता संगम पर आए थे. इस दिन गुरु और बृहस्पति की पूजा की जाती है.
महा शिवरात्रि (Maha Shivratri, 4 March, 2019): कुंभ मेले का आखिरी स्नान महा शिवरात्रि के दिन होता है. इस त्योहार पर संगम में डुबकी लगाना बहुत ही शुभ माना जाता है. इस त्योहार का देवता भी बेसब्री इंतजार करते हैं.
कुंभ का मतलब घड़ा होता है. कुंभ स्नान से जुड़ी हुई एक पौराणिक कथा है. कथा के मुताबिक समुद्र मंथन से जो अमृत निकला था, उस अमृत के लिए देवताओं और असुरों में लड़ाई हुई थी. अमृत कलश की छीना झपटी में अमृत की कुछ बूंदें नाशिक, उज्जैन, हरिद्वार और प्रयाग में गिरी थी. जिसके बाद से इन चारों जगहों पर कुंभ का आयोजन होता है.