कर्नाटक भाजपा न्यायिक सक्रियतावाद के आगे अपनी छवि सुधारने को विवश
कर्नाटक उच्च न्यायालय (Photo Credits: ANI)

बेंगलुरु, 17 जुलाई : कर्नाटक हाईकोर्ट (Karnataka High Court) के जज एच.पी. संदेश ने जब से सत्तारूढ़ सरकार और नौकरशाही के बीच 'सांठगांठ' का पदार्फाश किया है, सत्तारूढ़ भाजपा अपनी छवि सुधारने की चुनौती का सामना कर रही है. जज संदेश ने भ्रष्टाचार के बड़े मामलों में सत्तारूढ़ भाजपा और कर्नाटक पुलिस विभाग को आड़े हाथों लेते हुए अदालत में कहा, "मैं एक किसान का बेटा हूं. मैं खेती में वापस जाऊंगा, मुझे इस काम पर टिके रहने की जरूरत नहीं है." जस्टिस संदेश की टिप्पणियों ने सत्तारूढ़ भाजपा सरकार को कार्रवाई करने के लिए मजबूर कर दिया. इसके पीछे की वजह राज्य में आगामी विधानसभा चुनाव है, जिसके लिए 10 महीने से भी कम समय बचा है. ऐसे में भाजपा अपनी छवि पर कोई दाग नहीं लगने देना चाहती.

राज्य में वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी एडीजीपी अमृत पॉल और आईएएस अधिकारी, पूर्व बेंगलुरु शहरी डीसी जे मंजूनाथ, एडीजीपी रैंक के आईपीएस अधिकारी, इन सब की गिरफ्तारी ऑन ड्यूटी की गई. यह इतिहास में पहली बार हुआ, जिससे राज्य पुलिस विभाग को भारी शर्मिदगी उठानी पड़ी. अधिकारियों ने शीर्ष नौकरशाहों की संलिप्तता को देख आंखें मूंद ली थीं. हालांकि, सबूतों ने पुलिस सब-इंस्पेक्टर (पीएसआई) भर्ती घोटाले में अमृत पॉल की स्पष्ट भूमिका की ओर इशारा किया था, लेकिन राज्य सरकार ने उनका तबादला कर उन्हें बचा लिया. घोटाले की जांच कर रहे आपराधिक जांच विभाग (सीआईडी) ने वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी के खिलाफ कार्रवाई नहीं की. दूसरी ओर, गिरफ्तार आरोपी के खुलासा करने पर कि उसे बेंगलुरु शहरी जिले के उपायुक्त के निर्देश पर रिश्वत मिली थी, बावजूद इसके भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (एसीबी) के अधिकारी एफआईआर में कथित तौर पर आरोपी का नाम लेने से हिचकिचा रहे हैं. यह भी पढ़ें : Punjab: पटियाला के काली देवी मंदिर के बाहर लगे खलिस्तानी पोस्टर, अमरिंदर सिंह बोले- सख्त कार्रवाई हो

जस्टिस संदेश द्वारा जांच एजेंसी को फटकार लगाए जाने के बाद डीसी मंजूनाथ को चौथा आरोपी बनाया गया और उसके बाद उनकी गिरफ्तारी की गई. दो घटनाक्रमों ने पूरे राज्य को न्यायिक सक्रियता पर ध्यान देने पर मजबूर कर दिया. आम लोगों ने जस्टिस संदेश के साहसिक बयानों की सराहना की. यहां तक कि सत्तारूढ़ भाजपा के नेताओं ने भी जज संदेश की टिप्पणी से अपनी सहमति व्यक्त की. पूर्व प्रोफेसर, डीन और कार्यकर्ता डॉ. बी.पी. महेश चंद्र गुरु ने आईएएनएस से बात करते हुए कहा कि देश में लोकतंत्र मुख्य रूप से न्यायिक सक्रियता और जवाबदेही के कारण जीवित है. उन्होंने कहा, "यह न्यायपालिका की रचनात्मक और सक्रिय भूमिका के कारण लोकतंत्र बरकरार है. लोगों को संविधान और लोकतांत्रिक व्यवस्था की रक्षा के लिए न्यायपालिका का साथ देना चाहिए."

महेश चंद्र गुरु कहते हैं कि कई वर्षो से राजनीतिक परिदृश्य पर धन और जाति शक्ति का बोलबाला है. लोक प्रशासन एक चौराहे पर खड़ा है, राजनेता न्यायपालिका के प्रति जवाबदेह नहीं हैं. उन्होंने कहा, "जब से डबल इंजन सरकार ने राज्य और केंद्र में सत्ता संभाली है, सार्वजनिक व्यवस्था गड़बड़ा गई है." न्यायमूर्ति संदेश ने अदालत में कहा था कि वह अपने तबादले के लिए तैयार हैं. उन्होंने कहा था, "मैं लोगों की भलाई के लिए इसके लिए तैयार हूं. मैं किसी से नहीं डरता. मैं बिल्ली के गले में घंटी बांधने के लिए तैयार हूं. जज बनने के बाद मैंने एक भी प्रॉपर्टी नहीं खरीदी है. मुझे जज का पद खोने की परवाह नहीं है. मैं एक किसान का बेटा हूं. मैं जमीन जोतने के लिए तैयार हूं. मैं किसी राजनीतिक दल से नहीं हूं. मैं किसी भी राजनीतिक विचारधारा अनुसरण नहीं करता."

उन्होंने यह भी कहा था, "आप जनता की रक्षा कर रहे हैं या दागी का? हमारा काला कोट भ्रष्टाचारियों को बचाने के लिए नहीं है. भ्रष्टाचार एक कैंसर बन गया है और इसे चौथे स्टेज तक नहीं पहुंचना चाहिए. जब बाड़ ही फसल को खा जाए तो क्या किया जाना चाहिए?" पुलिस सब-इंस्पेक्टर भर्ती घोटाले पर टिप्पणी करते हुए न्यायमूर्ति संदेश ने कहा है कि यह हत्या से भी ज्यादा जघन्य अपराध है और इसे उन्होंने आतंकवाद से जोड़ा है. उन्होंने कहा, हत्या के मामले में एक व्यक्ति की मौत हो जाती है और यहां, 50,000 उम्मीदवारों को मुश्किल में डाल दिया जाता है. यदि हर भर्ती एक ही तरीके से की जाती है, तो क्या आप चाहते हैं कि अदालत चुप रहे? उन्होंने आगे कहा कि पीएसआई भर्ती कांड समाज पर फैलाया गया एक आतंकवाद है. समाज और आम लोग न्यायिक सक्रियता की सराहना कर रहे हैं और अपना समर्थन दे रहे हैं. कर्नाटक उच्च न्यायालय के मौजूदा न्यायाधीश संदेश को तबादले की धमकी मिलने और सुरक्षा कवर की मांग पर जांच की मांग करते हुए एक जनहित याचिका (पीआईएल) दायर की गई है.