
आगामी 6 जुलाई 2025, रविवार को देवशयनी एकादशी के साथ ही चातुर्मास प्रारंभ हो जाएगा, जो चार मास पश्चात यानी कार्तिक शुक्ल पक्ष एकादशी 2 नवंबर 2025 को प्रबोधिनी एकादशी तक चलेगा, और इस दरमियान हिंदू धर्म में किसी भी तरह के मांगलिक कार्यों पर रोक लग जाते हैं. हिंदू धर्म के अनुसार देवशयनी एकादशी को सृष्टि के पालनकर्ता भगवान विष्णु योग-निद्रा में चले जाते हैं, और चातुर्मास काल तक उनके कार्य भगवान शिव द्वारा प्रतिबंधित किये जाते हैं. ऐसे में प्रश्न उठना स्वाभाविक है, कि भगवान विष्णु के योग-निद्रा में जाने के पश्चात मांगलिक कार्य क्यों प्रतिबंधित हो जाते हैं.
चातुर्मास में मांगलिक कार्यों पर रोक क्यों? क्या कहते हैं ज्योतिषाचार्य!
मुंबई के प्रसिद्ध ज्योतिषाचार्य पंडित रविंद्र पांडेय के अनुसार आषाढ़ शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवशयनी या हरी शयनी एकादशी कहा जाता है. इस वर्ष 06 जुलाई 2025 को देवशयनी एकादशी व्रत रखा जाएगा. हिंदू धर्म में जगत के पालनकर्ता के रूप में भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है. वहीं इस एकादशी के बाद चातुर्मास प्रारंभ हो जाता है, अर्थात श्रावण, भाद्रपद, आश्विन और कार्तिक मास शुक्ल पक्ष की एकादशी तक भगवान विष्णु योग-निद्रा में चले जाते हैं. चातुर्मास के दौरान किसी भी प्रकार के मांगलिक कार्य जैसे- विवाह, गृह प्रवेश, मुंडन संस्कार नहीं किए जाते हैं. यह भी पढ़ें : Swami Vivekanand Punyatithi: स्वामी विवेकानंद की पुण्यतिथि पर अमित शाह, राजनाथ सिंह समेत कई नेताओं ने दी श्रद्धांजलि, ‘उठो, जागो’ का फिर गूंजा मंत्र
रविंद्र पांडेय के अनुसार चातुर्मास काल में लोग भगवान की भक्ति में लीन हो जाते हैं. इस एकादशी के बाद से तपस्वियों का भ्रमण भी बंद हो जाता है. इन दिनों में केवल ब्रज की यात्रा की जा सकती है. इससे तेज तत्वों या शुभ शक्तियों के कमजोर होने पर किये गये किसी भी प्रकार के शुभ कार्य शुभ फल नहीं देते. जबरदस्ती किये गये शुभ कार्य में बाधा आने की संभावना बढ़ जाती है. अगर नवरात्रि या विजयादशमी के दिन को शुभ मानकर शादी-विवाह करते हैं तो एक बार किसी कुशल पुरोहित से ग्रह-नक्षत्र अवश्य देख लेना चाहिए.
इसके साथ ही मौसम परिवर्तन के कारण शरीर में बीमारियों से लड़ने की क्षमता कम हो जाती है. इसलिए इस अवधि में शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने के लिए आध्यात्मिक शक्ति को बढ़ाना आवश्यक होता है. ऐसे में पूजा पाठ, व्रत उपवास करना बहुत ही लाभदायक माना जाता है. ऐसी भी मान्यता है कि चातुर्मास काल में सर्वत्र नकारात्मक शक्तियां बढ़ने लगती है और सकारात्मक शक्तियां कमजोर पड़ने लगती हैं. चातुर्मास काल में भगवान की पूजा करके सकारात्मक शक्तियों का आह्वान किया जाता है. देव प्रबोधिनी एकादशी के पश्चात भगवान के जागने के साथ ही सकारात्मक शक्तियां एक बार फिर सक्रिय हो जाती हैं.