दुनिया के कई देशों में कोविड-19 (COVID-19) के मरीजों को मलेरिया (Malaria) के इलाज में इस्तेमाल होने वाली दवा हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन दी जा रही है. ऐसा दावा किया जा रहा है कि हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन (Hydroxychloroquine) जानलेवा कोरोना वायरस (Coronavirus) को ना केवल शरीर में बढ़ने से रोक रहा है, बल्कि शरीर को इसके खिलाफ लड़ने में मददगार साबित हो रहा है. हालांकि कोरोना वायरस को सीधे तौर पर खत्म करने के लिए कोई दवा अब तक नहीं बन पाई है.
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने पहले ही कोरोना वायरस के इलाज के लिये मलेरिया रोधी दवा को मंजूरी दे दी. यह आदेश ऐसे समय में आया है जब कोरोनो वायरस ने अमेरिका में हजारों जिंदगी ले ली है और लाखों को संक्रमित कर दिया. ट्रंप ने भारत से तत्काल हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन की आपूर्ति करने का अनुरिध किया है, जिसे भारत ने मान लिया है. हालांकि भारत ने साफ कहा है कि पहले देश की जरुरत को पूरा किया जाएगा, फिर जरूरतमंद देश में निर्यात किया जाएगा. अमेरिका के अलावा श्रीलंका और नेपाल समेत कई अन्य देशों ने भारत से हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन की मांग की है. पिछले महीने कोरोना वायरस के संक्रमण के कारण परिस्थिति के बिगड़ने की आशंकाओं को देखते हुए हाइड्रोक्सिक्लोरोक्वीन और पैरासिटामोल समेत कई दवाओं के निर्यात को बैन कर दिया गया था. डोनाल्ड ट्रंप के अनुरोध के बाद माना भारत, कोरोना वायरस से लड़ने में मददगार दवा देने के लिए तैयार
हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन क्या है ?
हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन यानि क्लोरोक्वीन (फॉर्मूलेशन) दवा मलेरिया के इलाज में काम आती है. कोरोना वायरस के इलाज की दवा न खोजे जाने के बीच यह बात सामने आई है कि क्लोरोक्वीन कोरोना वायरस के इलाज में मददगार हो सकती है. द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान इस दवा का आविष्कार किया गया था. यह जेनेरिक रूप में उपलब्ध है.
कितनी कारगर है दवा ?
कई मामलों में कोरोना वायरस पर काबू पाने में इसकी अहम भूमिका का खुलासा होने के बाद वैज्ञानिकों में बहस तेज हो गई. जॉन्स हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी ल्यूपस सेंटर (Johns Hopkins University Lupus Center) के अनुसार मलेरिया रोधी दवा से कोरोना संक्रमितों के लक्षणों में सुधार दिख रहा है. फ्रांसीसी विशेषज्ञ डिडिएर राउल्ट ने दावा किया है कि उन्होंने जो नया अध्ययन किया है, वह वायरस को खत्म करने में इस दवा के कारगर होने की पुष्टि करता है. लेकिन कई अन्य वैज्ञानिकों और आलोचकों ने मार्सिले में ला टिमोन अस्पताल के संक्रामक रोग विभाग के प्रमुख व सूक्ष्मजीव विज्ञानी डिडिएर राउल्ट के शोध पर संदेह जताया है. कोरोना संकट के बीच दवाओं के निर्यात प्रतिबंधों में दी गई ढील, सरकार ने इन 24 एपीआई से बैन हटाया
भारत में ऐसे हो रहा इस्तेमाल-
कोरोना वायरस को मात देने के लिए मलेरिया-रोधी दवा क्लोरोक्विन के इस्तेमाल की बात भारत में कही गई है. कुछ समय पहले केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने कोरोना के संक्रमण से गंभीर रूप से प्रभावित मरीजों के इलाज के लिये मलेरिया की दवा यानि हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन के साथ एजीथ्रोमाइसीन देने के लिए कहा है. हालांकि यह दवा 12 साल से कम उम्र के बच्चों और गर्भवती महिलाओं तथा शिशुओं को दुग्धपान कराने वाली महिलाओं को नहीं दिया जाएगा.
दरअसल कोरोना संक्रमित मरीजों के इलाज में अन्य वायरल रोधी (एंटीवायरल) दवा कारगर साबित नहीं हो रही है. जिसके चलते आईसीयू में भर्ती गंभीर हालत वाले रोगियों को ये दोनों दवायें एक साथ दी जाएगी. वर्तमान में कोरोना के मरीजों को तीन श्रेणियो में बाटा गया है- गंभीर, मध्यम और मामूली संक्रमण. इसी के आधार पर संक्रमितों का इलाज तय किया गया है.
क्या है खतरा ?
अमेरिका के हृदय रोग विशेषज्ञों ने आगाह किया है कि कुछ लोग कोविड-19 के इलाज के लिए मलेरिया रोधी दवा हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन और एंटीबायोटिक एजीथ्रोमाइसीन के इस्तेमाल का जो सुझाव दे रहे हैं उससे दिल की धड़कनों के आसामान्य रूप से खतरनाक स्तर तक पहुंचने का खतरा बढ़ सकता है.
ओरेगोन स्वास्थ्य एवं विज्ञान विश्वविद्यालय (ओएचएसयू) और इंडियाना विश्वविद्यालय के अनुसंधानकर्ताओं ने सुझाव दिया कि मलेरिया-एंटीबायोटिक दवाओं के संयोजन से कोविड-19 के मरीजों का इलाज कर रहे डॉक्टरों को दिल के निचले भाग में पैदा होने वाली असामान्य धड़कनों के लिए उन मरीजों पर नजर रखनी चाहिए. दरअसल इसके इस्तेमाल से दिल का निचला हिस्सा तेजी और अनयिमित रूप से धड़कता है. परिणामस्वरूप दिल का दौरा पड़ने का खतरा काफी बढ़ जाता है. (एजेंसी इनपुट के साथ)