बीएचयू: जटिल चिकित्सकीय प्रक्रिया के बाद बचाई गई 35 वर्षीय महिला की जान
बनारस हिंदू विश्वविद्यालय ( Photo Credits: Wikimedia Commons)

दिल्ली, 30 जनवरी : बनारस हिन्दू विश्विद्यालय स्थित चिकित्सा विज्ञान संस्थान के कार्डियोलॉजी विभाग में एक जटिल एवं मुश्किल प्रक्रिया को सफलतापूर्वक अंजाम देकर एक 35 वर्षीय हृदय रोगी की जान बचाई है. यह हृदय रोगी एक महिला है. मेडिकल साइंस के मुताबिक महिला की स्थिति काफी गंभीर थी लेकिन मरीज की जान बचा ली गई. दरअसल यहां 28 जनवरी को कार्डियोलॉजी विभाग में 35 वर्षीय एक महिला रोगी को लाया गया, जो कुछ कदम भी बिना सीना और दोनों हाथों में असहय दर्द के नहीं चल पा रही थी. ये सभी लक्षण महिला में गंभीर हृदय रोग की तरफ इशारा कर रहे थे. महिला कि किसी निजी अस्पताल में इसी वजह से एंजियोग्राफी जांच की गई थी, जिसमें अति गंभीर बीमारी पाई गई थी, जिनका इलाज उनके लिए वहां कर पाना मुश्किल था, अत मरीज सर सुन्दरलाल चिकित्सालय में हृदय रोग विभाग आई.

हृदय रोग विभाग के विभागाध्यक्ष, प्रो. ओम शंकर ने बताया कि इस मामले में यह तथ्य ध्यान देने योग्य है कि 35 वर्षीय यह महिला न तो तंबाकू का सेवन करती है, न ही मधुमेह से पीड़ित है, न ही उनके परिवार के किसी सदस्य को हृदय के इस तरह की गंभीर बीमारी की कोई दिक्कत है और न ही उनके खून की नलियों में सूजन होने की कोई वजह दिख रही थी. चिकित्सकों के लिए यह काफी आश्चर्यजनक था. एंजियोग्राफी जांच में उनके बाएं तरफ की सबसे प्रमुख नस जहां से शुरू होती है, वहीं बिल्कुल चिपककर धागे जैसी हो गई दिख रही थी (पहले चित्र में लाल तीर से दर्शाई गई स्थिति). इस तरह की हृदय की बीमारी को सबसे गंभीर माना जाता है. ऐसे कई मामले अकसर सामने आते हैं कि इस दशा का सामना करने वाले लोग अचानक चलते-फिरते ही हृदय आघात से असमय मौत के शिकार हो जाते हैं. यह भी पढ़ें : Manipur Assembly Elections: भाजपा ने जारी की 60 उम्मीदवारों की सूची, सीएम बीरेन सिंह हेंगेंग से लड़ेंगे चुनाव

इस बीमारी की गंभीरता को देखते हुए इसके दो ही इलाज संभव थे-

1. या तो मरीज की ओपन हार्ट (बाईपास) सर्जरी की जाए, जो उम्र के हिसाब, अस्पताल में भर्ती रहने के दिनों, खर्च के हिसाब और खतरे के हिसाब से काफी महंगी पड़ती है

2. मरीज के बाएं तरफ की सबसे प्रमुख नस जो 95 प्रतिशत के आसपास सिकुड़ी हुई थी उसे हाथ, पैरों के नसों में सुई डालकर फुला दिया जाए और उसमें छल्ले, स्टेंट डाल दिये जाए, जिसे एंजियोप्लास्टी कहा जाता है. जिसके 1-2 दिन बाद ही मरीज बिल्कुल स्वस्थ हो जाते हैं, वो भी बिना किसी चीर-फाड़ के. इस पूरी प्रक्रिया में खर्च भी तकरीबन 50 हजार रुपये का ही आता है.

गहन विचार-विमर्श के बाद मरीज की एंजियोप्लास्टी करने का निर्णय लिया गया, जो वाकई चुनौतीपूर्ण कार्य था. उनके हृदय की नस की स्थिति ऐसी थी कि उसमें पहले तो एंजियोप्लास्टी में उपयोग करने के लिए डाली जानेवाली तार और बैलून डालना ही काफी मुश्किल हो रहा था. फिर नसों की स्थिति ऐसी थी कि छल्ला डालने के बाद उसको कहां रखा जाए, यह निर्धारित करना भी काफी चुनौतीपूर्ण था, क्योंकि इस प्रक्रिया में हुई थोड़ी सी भी चूक मरीज की जान ले सकती है.

तमाम चुनौतियों को मात देते हुए अपनी विशेषज्ञता, अनुभव, निपुणता व चिकित्सकीय कौशल के बल पर हृदय रोग के विभागाध्यक्ष प्रो. ओमशंकर के नेतृत्व वाली टीम ने एक जटिल व चुनौतीपूर्ण प्रक्रिया के बाद सफलतापूर्वक मरीज की एंजियोप्लास्टी की, जिससे उनकी जान बच सकी. सर्जरी के बाद धागे जैसी दिखनेवाली नसें, अब सामान्य हैं और काम कर रहीं हैं (दूसरी तस्वीर, लाल तीर के निशान को देखें और पहली तस्वीर से उसकी तुलना करें).