(मिगुएल फरियास, प्रायोगिक मनोविज्ञान में एसोसिएट प्रोफेसर कोवेंट्री विश्वविद्यालय)
कोवेंट्री (इंग्लैंड), 21 जुलाई (द कन्वर्सेशन) चूंकि ध्यान ऐसी चीज है जिसका अभ्यास आप घर पर मुफ्त में कर सकते हैं, इसलिए यह अकसर तनाव और मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं के लिए एकदम सही 'टॉनिक' की तरह लगता है। यह एक प्रकार का बौद्ध-आधारित ध्यान है जिसमें आप वर्तमान क्षण में जो कुछ भी अनुभव कर रहे हैं, सोच रहे हैं और महसूस कर रहे हैं उसके प्रति जागरूक होने पर ध्यान केंद्रित करते हैं।
इसका पहला दर्ज किया गया प्रमाण भारत में पाया गया जो 1,500 साल से भी अधिक पुराना है। बौद्धों के एक समुदाय द्वारा लिखित धर्मत्राता ध्यान शास्त्र में विभिन्न अभ्यासों का वर्णन किया गया है और इसमें ध्यान के बाद होने वाले अवसाद और चिंता के लक्षणों की रिपोर्ट शामिल है। इसमें मनोविकृति, पृथक्करण और विवैयक्तिकरण (जब लोगों को लगता है कि दुनिया ‘‘अवास्तविक’’ है) के प्रकरणों से जुड़ी संज्ञानात्मक विसंगतियों का भी विवरण दिया गया है।
पिछले आठ वर्षों में इस क्षेत्र में वैज्ञानिक अनुसंधान में उछाल आया है। इन अध्ययनों से पता चलता है कि प्रतिकूल प्रभाव दुर्लभ नहीं हैं। 2022 में अमेरिका में नियमित रूप से ध्यान करने वाले 953 लोगों के नमूने का उपयोग करके किए गए एक अध्ययन से पता चला कि 10 प्रतिशत से अधिक प्रतिभागियों ने प्रतिकूल प्रभावों का अनुभव किया, जिसका उनके रोजमर्रा के जीवन पर महत्वपूर्ण नकारात्मक प्रभाव पड़ा और यह कम से कम एक महीने तक चला।
साल 2020 में प्रकाशित 40 से अधिक वर्षों के शोध की समीक्षा के अनुसार सबसे आम प्रतिकूल प्रभाव चिंता और अवसाद हैं। इसके बाद मनोविकृति या भ्रम के लक्षण, पृथक्करण या व्यक्तित्व-विहीनता और भय या आतंक होते हैं।
शोध में यह भी पाया गया कि प्रतिकूल प्रभाव उन लोगों पर भी पड़ सकता है, जिन्हें पहले से कोई मानसिक स्वास्थ्य समस्या नहीं रही है या जो ध्यान के संपर्क में केवल मध्यम स्तर पर ही आए हैं तथा इससे दीर्घकालिक लक्षण उत्पन्न हो सकते हैं।
पश्चिमी दुनिया के पास भी इन प्रतिकूल प्रभावों के बारे में लंबे समय से सबूत हैं। 1976 में संज्ञानात्मक-व्यवहार विज्ञान आंदोलन के एक प्रमुख व्यक्ति अर्नोल्ड लाजरस ने कहा कि ध्यान जब विवेकहीनता या अविचारपूर्वक इस्तेमाल किया जाता है तो ‘‘अवसाद, उत्तेजना और यहां तक कि सिजोफ्रेनिक डिकंपेंसेशन जैसी गंभीर मानसिक समस्याएं’’ पैदा कर सकता है।
इस बात के प्रमाण मौजूद हैं कि ध्यान से लोगों की सेहत को फायदा हो सकता है। समस्या यह है कि ध्यान के प्रशिक्षक, वीडियो, ऐप और किताबें शायद ही कभी लोगों को संभावित प्रतिकूल प्रभावों के बारे में चेतावनी देते हैं।
प्रबंधन के प्रोफेसर और बौद्ध धर्मगुरु रोनाल्ड पर्सर ने अपनी 2023 की किताब ‘मैकमाइंडफुलनेस’ में लिखा है कि ध्यान एक तरह की ‘‘पूंजीवादी आध्यात्मिकता’’ बन गई है। अकेले अमेरिका में ध्यान का मूल्य 2.2 अरब अमेरिकी डॉलर है और ध्यान उद्योग के वरिष्ठ लोगों को ध्यान से जुड़ी समस्याओं के बारे में पता होना चाहिए।
‘माइंडफुलनेस’ आंदोलन के पीछे के एक प्रमुख व्यक्ति जॉन काबट-जिन ने 2017 में गार्जियन को दिए एक साक्षात्कार में स्वीकार किया था कि ‘‘90 प्रतिशत शोध (सकारात्मक प्रभावों पर) सामान्य स्तर से नीचे के हैं’’।
ध्यान का अभ्यास करने वाले कई नास्तिक और अज्ञेयवादी भी मानते हैं कि इस अभ्यास में दुनिया में शांति और करुणा बढ़ाने की शक्ति है।
मीडिया में ध्यान पर चर्चा भी कुछ हद तक असंतुलित रही है। 2015 में क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट कैथरीन विखोलम के साथ मेरी किताब, बुद्ध पिल में ध्यान के प्रतिकूल प्रभावों पर शोध का सारांश देने वाला एक अध्याय शामिल था। इसे मीडिया द्वारा व्यापक रूप से प्रसारित किया गया जिसमें न्यू साइंटिस्ट का एक लेख और बीबीसी रेडियो 4 की एक डॉक्यूमेंट्री भी शामिल थी।
लेकिन 2022 में ध्यान विज्ञान के इतिहास में सबसे महंगे अध्ययन (रिसर्च चैरिटी वेलकम ट्रस्ट द्वारा वित्तपोषित 8 अरब अमेरिकी डॉलर से अधिक) को मीडिया में बहुत कम कवरेज मिला। इस अध्ययन में 2016 से 2018 तक ब्रिटेन के 84 स्कूलों में 8,000 से अधिक बच्चों (11-14 वर्ष की आयु) का परीक्षण किया गया।
इसके परिणामों से पता चला कि नियंत्रण समूह की तुलना में ध्यान बच्चों की मानसिक भलाई में सुधार करने में विफल रहा और मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं के जोखिम वाले लोगों पर इसका हानिकारक प्रभाव भी हो सकता है।
नैतिक निहितार्थ
क्या बिना इसके प्रतिकूल प्रभावों का उल्लेख किए ‘माइंडफुलनेस ऐप’ का प्रचार करना या विज्ञापन देना और कक्षाओं के माध्यम से लोगों को ध्यान सिखाना या यहां तक कि क्लिनिकल प्रैक्टिस में ध्यान का इस्तेमाल करना नैतिक है? इन प्रभावों की विविधता और सामान्यता के प्रमाण को देखते हुए इसका उत्तर ‘नहीं’ होना चाहिए।
हालांकि, कई ध्यान और ‘माइंडफुलनेस’ प्रशिक्षकों का मानना है कि ये अभ्यास केवल लाभ ही पहुंचा सकते हैं और इसके संभावित प्रतिकूल प्रभावों के बारे में नहीं जानते हैं। जिन लोगों ने ध्यान के प्रतिकूल प्रभावों का सामना किया है उनसे मैंने जो सबसे आम बात सुनी है वह यह है कि शिक्षक उन पर विश्वास नहीं करते हैं। उन्हें आमतौर पर कहा जाता है कि बस ध्यान करते रहो और यह दूर हो जाएगा।
ध्यान का सुरक्षित अभ्यास कैसे करें इस बारे में शोध अभी हाल ही में शुरू हुआ है, जिसका मतलब है कि लोगों को देने के लिए अभी तक कोई स्पष्ट सलाह नहीं है। एक बड़ी समस्या यह है कि ध्यान चेतना की असामान्य अवस्थाओं से संबंधित है और हमारे पास इन अवस्थाओं को समझने में मदद करने के लिए मन के मनोवैज्ञानिक सिद्धांत नहीं हैं।
लेकिन ऐसे संसाधन हैं जिनका उपयोग लोग इन प्रतिकूल प्रभावों के बारे में जानने के लिए कर सकते हैं। इनमें गंभीर प्रतिकूल प्रभावों का अनुभव करने वाले ध्यानियों द्वारा निर्मित वेबसाइट और इस विषय पर समर्पित अनुभागों वाली अकादमिक पुस्तिकाएं शामिल हैं।
अमेरिका में एक क्लिनिकल सेवा है जो ऐसे लोगों के लिए समर्पित है जिन्होंने तीव्र और दीर्घकालिक समस्याओं का अनुभव किया है। इसका नेतृत्व एक 'माइंडफुलनेस' शोधकर्ता द्वारा किया जाता है।
फिलहाल, यदि ध्यान को स्वास्थ्य या उपचार के साधन के रूप में इस्तेमाल किया जाना है तो लोगों को इसके संभावित नुकसान के बारे में जानकारी दी जानी चाहिए।
(द कन्वर्सेशन)
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