Subhash Chandra Bose 125th Jayanti 2022:  जानें सुभाषचंद्र बोस के जीवन के ऐसे ही रोचक प्रसंग!
सुभाष चंद्र बोस जयंती 2022 (Photo Credits: File Image)

आजाद भारत के इतिहास के चार महारथियों महात्मा गांधी, सुभाषचंद्र बोस, सरदार पटेल और जवाहर लाल नेहरू के बिना भारत की आजादी की कहानी बेमानी समझी जाती है, लेकिन हैरानी की बात है कि नेहरू-गांधी को अपवाद मान लें तो इन महारथियों की ब्रिटिश हुकूमत के साथ लड़ाई की नीतियां अलग-अलग थी. विशेषकर कांग्रेस के खेमे के होकर भी नेताजी सत्य और अहिंसा के विपरीत आक्रामक रवैये की नीति पर चलते थे, यही वजह थी कि नेताजी से ना गांधीजी की पटी और ना ही जवाहर लाल नेहरू की. शायद यही वजह थी कि सुभाष चंद्र बोस को कांग्रेस से अलग होकर अपनी पार्टी आजाद हिंद फौज बनानी पड़ी. कहा तो यहां तक जा रहा है कि नेताजी के विदेश पलायन के पीछे भी नेहरूजी का ही हाथ था. नेताजी सुभाष चंद्र बोस की 125वीं जयंती के अवसर पर हम नेताजी से जुड़े कुछ ऐसे ही रोचक प्रसंगों की बात करेंगे.

* ऐसे हारे गांधीजी नेताजी से!

गांधी और नेताजी सुभाष चंद्र बोस पहली बार 20 जुलाई 1921 मिले थे. बंगाल में बाढ़-पीड़ितों की मदद से प्रभावित होकर गांधीजी ने उन्हें कांग्रेस से जोड़ा. नेताजी गांधीजी के समाज सेवा से पूर्व परिचित थे. कांग्रेस से जुड़ने के साथ ही उनके क्रांतिकारी तेवरों ने ब्रिटिशर्स को हिला दिया. 1938 में नेताजी को कांग्रेस अध्‍यक्ष बनाया गया. ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ उनकी सक्रियकता से कांग्रेसी प्रभावित थे. 1939 में नेताजी पुनः अध्यक्ष बनना चाहते थे. लेकिन गांधीजी ने पट्टाभि सीतारमैया को उम्मीदबार चुना. लेकिन नेताजी भारी अंतर से जीते, गांधीजी को यह बात नागवार गुजरी, क्योंकि यह उनकी निजी हार थी. उसी दरम्यान ब्रिटिशर्स द्वितीय विश्व-युद्ध की विभीषिका में उलझे थे, नेताजी चाहते थे कि इसी समय ब्रिटिशर्स के खिलाफ आंदोलन तेजकर उन पर डबल प्रेशर बनाया जाये. लेकिन गांधीजी को उनकी यह नीति रास नहीं आयी, लिहाजा नेताजी ने कांग्रेस छोड़ अपनी पार्टी फॉरवर्ड ब्लॉक गठित की. आजादी की लड़ाई में इस पार्टी के साथ नेताजी ने ब्रिटिश हुकूमत की धज्जियां उड़ा दी.

* ब्रिटिश पीएम ने माना था कि भारत गांधी नहीं नेताजी के कारण आजाद हुआ!

इतिहास के अनुसार भारत की आजादी के मुख्य नायक गांधीजी थे, जिन्होंने सत्य और अहिंसा को स्वतंत्रता की लड़ाई का प्रमुख हथियार बनाया था. जब देश आजादा हुआ, तब ब्रिटेन के प्रधानमंत्री क्लिमैन्ट रिचर्ड एटली (1945 से 1951) थे. भारत को आजाद करने पर ब्रिटेन के सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर किया. मुख्य न्यायाधीश ने एटली से पूछा, जब हम द्वितीय विश्वयुद्ध जीत चुके थे, उसी समय भारत को आजाद करने की क्या जरूरत थी? जबकि 1942 का भारत-छोड़ो आंदोलन फ्लॉप हो चुका था. एटली ने कहा, - 25 लाख भारतीय सैनिक द्वितीय विश्वयुद्ध जीत से उत्साहित थे. कराची नेवल बेस, जबलपुर, आसनसोल से सैनिक-विद्रोह जारी था. आजाद हिंद फौज ब्रिटिश सेना पर प्रेशर बढ़ा रही थी. 'हम समझ चुके थे कि भारत पर अब और कब्जा संभव नहीं. नेताजी से प्रभावित देशभक्त आजादी के लिए उग्र थे. हम भारत नहीं छोड़ते तो नेताजी का आंदोलन हमारी फौज पर भारी पड़ती. इससे ब्रिटिश हुकूमत की थू-थू हो सकती थी. गांधीजी के अहिंसक आंदोलन से तो हमें नुकसान नहीं था.

* स्वाभिमान के लिए नेताजी ने अंग्रेजों की नौकरी पर लात मारी!

अंग्रेजों प्रेसिडेंसी कॉलेज छोड़ने के बाद नेताजी ने स्कॉटिश मिशन कॉलेज में प्रवेश ले लिया था. 1919 में उन्होंने ग्रेजुएशन की परीक्षा फर्स्ट डिवीजन से पास किया, उन्होंने दूसरा स्थान प्राप्त किया था. इसके बाद 1920 में नेताजी ने इंडियन सिविल सर्विसेज (ICS) की परीक्षा में चौथा स्थान प्राप्त किया. लेकिन यह परफॉरमेंस उन्होंने सिर्फ अंग्रेजी हुकूमत को आईना दिखाने के लिए किया था, जो भारतीयों को टैलेंटेड नहीं बल्कि अशिक्षित मानकर उनका मजाक उड़ाते थे. लेकिन सरकारी पद पर अंग्रेजों के अधीन काम करना रास नहीं आया. अंततः 22 अप्रैल 1921 को नेताजी ने सरकारी पद से इस्तीफा देकर एक बार फिर अंग्रेजी के खिलाफ बगावत छेड़ दिया. यह भी पढ़ें : Subhas Chandra Bose Jayanti 2022: जानिए नेताजी सुभाष चंद्र बोस के जीवन से जुड़ी 10 रोचक बातें

* नेहरू-नेता जी के मतभेद!

साल 1936 में नेताजी और नेहरूजी यूरोप में थे. नेहरूजी की पत्नी कमला नेहरू का जिनेवा (स्विटजरलैंड) में इलाज के दरम्यान निधन हो गया, तब नेताजी ने नेहरू की हौसलाफजाई करने के साथ-साथ कमला के अंतिम संस्कार की व्यवस्था की. उन दिनों तक उनकी राजनीतिक सोच काफी समान थी, दोनों अच्छे मित्र थे, लेकिन अचानक उनके बीच क्या हुआ कि मतभेद बढ़ते चले गये. नेताजी और नेहरुजी के बीच विवाद इस कदर बढ़ा कि नेताजी को लिखना पड़ा कि नेहरू ने उन्हें कई बार नुकसान पहुंचाने की कोशिश की. उधर गांधीजी के साथ नेहरू की निकटता निरंतर बढ़ रही थी, कुछ लोगों का तो यहां तक कहना था कि नेताजी हवाई दुर्घटना में मरे नहीं थे, बल्कि नेहरू से दूरी रखने के लिए चोरी-छिपे रूस चले गये. यह बात नेहरूजी को मालूम थी. यही वजह थी कि नेताजी की मौत का राज आज तक राज है.