"तुम मुझे खून दो मैं तुम्हे आजादी दूंगा" यह केवल एक नारा नहीं था बल्कि इस नारे ने भारत में देशभक्ति का वो ज्वार पैदा किया जो भारत की स्वतंत्रता का आधार बना. नेताजी सुभाष चंद्र बोस का जन्म 1897 को ओडिशा के कटक में जानकी नाथ बोस और प्रभावती देवी के घर हुआ था. पिता जानकी नाथ बोस शहर के मशहूर वकील थे.
बोस की शुरुआती शिक्षा के बाद की पढ़ाई
अपनी शुरुआती स्कूली शिक्षा के बाद सुभाष चंद्र बोस ने रेवेनशॉ कॉलेजिएट स्कूल में दाखिला लिया. उसके बाद उन्होंने प्रेसीडेंसी कॉलेज कोलकाता में दाखिला लिया. वे इंजीनियरिंग की पढ़ाई के लिए कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय गए. वर्ष 1919 में बोस भारतीय सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी करने के लिए लंदन चले गए.
इसलिए अंग्रेजों की नौकरी नहीं कर पाए बोस
आईसीएस की परीक्षा उत्तीर्ण करके सुभाष चंद्र बोस ने अपनी योग्यता का परिचय दिया. लेकिन राष्ट्र के प्रति अपने अटूट प्रेम के कारण वे अंग्रेजों की नौकरी नहीं कर सके और सुभाष चंद्र बोस ने सिविल सेवा से त्यागपत्र दे दिया.
नेताजी इन महान शख्सियतों को मानते थे अपना आदर्श
सुभाष चंद्र बोस विवेकानंद की शिक्षाओं से अत्यधिक प्रभावित थे और उन्हें अपना आध्यात्मिक गुरु मानते थे जबकि चितरंजन दास उनके राजनीतिक गुरु थे. वर्ष 1923 में बोस को अखिल भारतीय युवा कांग्रेस का अध्यक्ष और साथ ही बंगाल राज्य कांग्रेस का सचिव चुना गया. 1925 में क्रांतिकारी आंदोलनों से संबंधित होने के कारण उन्हें माण्डले कारागार में भेज दिया गया.
भारतीयों ने प्यार से सुभाष चंद्र बोस को दिया 'नेता जी' का नाम
सुभाष चंद्र बोस की वीरता की गाथा भारत में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी सुनाई देती है. सुभाष चंद्र बोस की लोकप्रियता इतनी अधिक थी कि भारतीय उन्हें प्यार से 'नेता जी' कहते थे. नेताजी सुभाष चंद्र बोस 1938 में कांग्रेस के हरिपुरा अधिवेशन में अध्यक्ष चुने गए.
ऐसे किया आजाद हिंद फौज का निर्माण
वर्ष 1939 में त्रिपुरी अधिवेशन में वे कांग्रेस के फिर से अध्यक्ष चुने गए लेकिन जल्द ही उन्होंने अध्यक्ष पद से त्यागपत्र दे दिया और कांग्रेस के भीतर एक गुट "ऑल इंडिया फॉरवर्ड" का गठन किया. इसके बाद नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने बर्लिन में 'स्वतंत्र भारत केंद्र' की स्थापना की और युद्ध के लिए भारतीय कैदियों से भारतीय सेना का गठन किया जिन्होंने धुरी राष्ट्र जर्मनी, इटली और जापान द्वारा बंदी बनाए जाने से पहले उत्तरी अफ्रिका में अंग्रेजों के लिए लड़ाई लड़ी थी.
'आजाद हिंद रेडियो' का किया था आरंभ
'आजाद हिंद रेडियो' का आरंभ नेताजी सुभाष चंद्र बोस के नेतृत्व में 1942 में जर्मनी में किया गया था. इस रेडियो का उद्देश्य भारतीयों को अंग्रेजों से स्वतंत्रता प्राप्त करने हेतु संघर्ष करने के लिए प्रचार प्रसार करना था. इस रेडियो पर बोस ने 6 जुलाई 1944 को महात्मा गांधी को राष्ट्र पिता के रूप में संबोधित किया.
नेता जी ने सिंगापुर में दिया था अपना प्रसिद्ध नारा 'दिल्ली चलो'
नेताजी सुभाष चंद्र बोस जुलाई 1943 में जर्मनी से जापान नियंत्रित सिंगापुर पहुंचे. वहां से उन्होंने अपना प्रसिद्ध नारा 'दिल्ली चलो' जारी किया और 21 अक्टूबर 1943 को 'आजाद हिंद सरकार' और 'भारतीय राष्ट्रीय सेना' के गठन की घोषणा की. देश को जय हिंद का नारा देने वाले नेताजी सुभाष चंद्र बोस का जन्मदिन आज सारा भारत पराक्रम दिवस के रूप में मना रहा है.