Rama Ekadashi 2025: ब्रह्म-हत्या जैसे महापाप से मुक्ति दिलाती है रमा एकादशी! जानें अन्य एकादशियों से इसकी भिन्नता, मुहूर्त, पूजा-विधि एवं पारण काल!

 रमा एकादशी अन्य 23 एकादशियों से भिन्न मानी जाती है. कार्तिक कृष्ण पक्ष के ग्यारहवें दिन पड़ने वाले इस व्रत में भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की संयुक्त पूजा होती है. मान्यता है कि यह पूजा करने से जातकों को तमाम पापों से मुक्ति मिलती है, सारी बाधाएं दूर होती हैं, नकारात्मक शक्तियां नष्ट होती हैं, घर में सुख एवं समृद्धि का वास होता है. हिंदू धर्म शास्त्रों के अनुसार जो लोग साल की अन्य एकादशियों का व्रत नहीं कर पातें, अगर रमा एकादशी का व्रत करें, सभी एकादशियों का पुण्य प्राप्त होता है. इस वर्ष 17 अगस्त 2025 को रमा एकादशी मनाई जाएगी. आइये जानते हैं, इस व्रत का महात्म्य, शुभ मुहूर्त, मंत्र एवं पूजा विधि आदि के बारे में.   यह भी पढ़ें : Sripuram Mahalaxmi Temple: 15 हजार किलोग्राम सोने से बना है तमिलनाडु का श्रीपुरम महालक्ष्मी मंदिर, दीपावली पर होती है खास पूजा

रमा एकादशी 2024: तिथि और समय

कार्तिक कृष्ण पक्ष एकादशी प्रारंभः 10.35 AM (16 अक्टूबर 2025)  

कार्तिक कृष्ण पक्ष एकादशी समाप्तः 11.12 AM (17 अक्टूबर 2025) 

रमा एकादशी पारण समयः 06.24 AM से 08.41 AM (18 अक्टूबर 2025)

क्यों अन्य एकादशियों से भिन्न है रमा एकादशी

कार्तिक माह में पड़ने के कारण इसका बहुत ज्यादा धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व है. यह माह भगवान विष्णु और भगवान कृष्ण को समर्पित है. इसलिए इसे दामोदर मास के नाम से भी जाना जाता है. मान्यता है कि जो भक्त इस दिन व्रत और पूजा करते हैं, उनसे जाने-अनजाने हुए सभी पापों से मुक्ति मिलती है. इसे रंभा एकादशी और कार्तिक कृष्ण एकादशी के नाम से भी जाना जाता है. तमिल कैलेंडर के अनुसार शरद पूर्णिमा की एकादशी को रमा एकादशी कहते हैं. मान्यता है कि जो लोग इस एकादशी का व्रत पूरी श्रद्धा और आस्था से करते हैंउन्हें सभी पापोंकष्टों और दुखों से मुक्ति मिलती है. ज्योतिष शास्त्रियों के अनुसार रमा एकादशी व्रत रखने से ब्रह्म-हत्या के पाप भी मिट जाते हैं, और उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है. रमा एकादशी का एक व्रत हज़ार अश्वमेध यज्ञों के बराबर होता है।

रमा एकादशी पूजा विधि

सूर्योदय से पूर्व स्नान कर घर एवं पूजा स्थल की सफाई करें. एक स्वच्छ चौकी पर लाल वस्त्र बिछाकर इस पर भगवान विष्णु, देवी लक्ष्मी एवं भगवान कृष्ण की प्रतिमा स्थापित करें. प्रतिमा को पंचामृत एवं गंगाजल से स्नान कराएं. धूप दीप प्रज्वलित करें. निम्न मंत्र का 108 जाप करें.

ॐ नमो भगवते वासुदेवाय..!

भगवान को रोली अक्षत का तिलक लगाएं. पुष्प, तुलसी पत्ता, अर्पित करें. भोग में खीर, दूध की मिठाई और फल चढ़ाएं. विष्णु सहस्त्रनाम और श्री हरि स्तोत्र का पाठ करें. अंत में भगवान विष्णु की आरती उतारें. लोगों को प्रसाद वितरित करें.