भारत में राजा राममोहन राय की पहचान सामाजिक, शैक्षिक एवं धार्मिक सुधार आंदोलन के अग्रदूत के रूप में रही है. उन्होंने सती-विवाह एवं बाल-विवाह प्रथा के खिलाफ आवाज बुलंद किया, आंदोलन किये. इसके साथ-साथ महिलाओं के हक एवं उनकी शिक्षा के लिए भी लड़ते रहे हैं. उनके निस्वार्थ सामाजिक योगदान के लिए दिल्ली के तत्कालीन मुगल बादशाह अकबर द्वितीय ने उन्हें ‘राजा’ की उपाधि देकर सम्मानित किया था. आज भी उन्हें ‘आधुनिक भारत का जनक’ कहा जाता है. देश आज इस महान विभूति की 249वीं जयंती मना रहा है. आइये जानें राजा राममोहन राय के जीवन से जुड़े रोचक पहलू-
कुशाग्र बुद्धि वाले:
राजा राममोहन राय का जन्म बंगाल के हुगली जिले के राधा नगर गांव में 22 मई 1772 को एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था. पिता रमाकांत राय वैष्णव और माँ तारिणी देवी थीं. राममोहन राय की शुरुआती शिक्षा गांव में हुई थी, लेकिन उनकी कुशाग्र बुद्धि को देखते हुए पिता ने उन्हें उच्च शिक्षा के लिए पटना भेजा. इसके पश्चात वेद एवं उपनिषदों के अध्ययन के लिए बनारस (वाराणसी) चले गए. कुशाग्र बुद्धि वाले राममोहन राय ने महज 15 साल की उम्र में हिंदी, अंग्रेजी के अलावा संस्कृत, फारसी, अरबी, लैटिन और ग्रीक भाषा पर भी अच्छी पकड़ बना ली थी.
पिता-पुत्र में कभी नहीं बनीं:
मान्यता है कि पुत्र को संस्कार माता-पिता और समाज से मिलता है. लेकिन राजा राममोहन राय यहां अपवाद हो सकते हैं. उनके पिता रमाकांत वैष्णव रूढ़िवादी हिंदू ब्राह्मण थे. वे वर्षों से चली आ रही प्रथा एवं परंपरा के साथ चलना पसंद करते थे, जबकि राजा राममोहन राय मूर्ति-पूजा, रूढिवादिता, धर्माँधता एवं अंध विश्वास के कट्टर विरोधी थे. इस वजह से घर में आये दिन पिता-पुत्र के बीच विवाद होते रहते थे. अंततः एक दिन राजा राममोहन राय ने घर छोड़ दिया. 1803 में पिता की मृत्यु के पश्चात वे घर वापस आ गये, लेकिन उनके विचारों में कोई परिवर्तन नहीं आया. घर वालों ने उनकी यह सोच कर शादी कर दी कि समय के साथ बदल जायेंगे, लेकिन राममोहन राय समाज सुधारक कार्यों में जीवनपर्यंत लिप्त रहे.
पश्चिमी संस्कृति एव शिक्षा प्रणाली का समर्थन!
वाराणसी में वेदों, उपनिषदों एवं हिन्दू दर्शन का गहन अध्ययन करने के बाद ईस्ट इंडिया कंपनी के राजस्व विभाग में नौकरी करने लगे. यहां उन्हें जॉन डिग्बी के सहायक के रूप में जुड़ने का अवसर मिला. वे पश्चिम युरोप के प्रगतिशील एवं आधुनिक विचारों से बहुत प्रभावित हुए. उन्होंने माना कि अंग्रेजी शिक्षा प्रणाली वर्तमान पारंपरिक शिक्षा से कहीं बेहतर है. उन्होंने अंग्रेजी के साथ साइंस, पश्चिमी चिकित्सा एवं इंजीनियरिंग के अध्ययन पर जोर दिया. साल 1822 में उन्होंने अंग्रेजी शिक्षा पर आधारित स्कूल शुरू किया.
सामाजिक एवं धार्मिक कुरीतियों की खिलाफत:
राजा राममोहन राय हिंदू धर्म का पूर्ण सम्मान करते थे, लेकिन समाज में व्याप्त धार्मिक एवं सामाजिक कुरीतियों, आडंबर का खुलकर विरोध करते थे. वेदों में सती-प्रथा का जिक्र नहीं है, यह देखते हुए उन्होंने सती-प्रथा, बाल-विवाह के खिलाफ खुलकर संघर्ष किया. उन्होंने गवर्नर जनरल लॉर्ड विलियम बेंटिक की सहायता से सती-प्रथा के खिलाफ कानून बनवाया. लोगों के बीच जा-जाकर इसे नृशंस बताकर उनकी सोच में परिवर्तन लाने का प्रयास किया. उन्होंने 1814 में आत्मीय सभा का आयोजन कर समाज में सामाजिक और धार्मिक सुधार शुरू करने का प्रयास किया. उन्होंने विधवा-विवाह, संपत्ति में हक समेत महिला अधिकारों के लिए अभियान चलाया. उन्होंने सती प्रथा और बहुविवाह का जोरदार विरोध किया.
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निधन!
आधुनिक भारत के निर्माता के रूप में लोकप्रिय राजा राममोहन राय के प्रयास से न केवल सती-प्रथा को खत्म करवाया. अपने आंदोलनों के संदर्भ में वे नवंबर 1830 में ब्रिटेन दौरे पर थे. लेकिन 27 सितंबर 1833 में मात्र 61 साल की उम्र में ब्रिस्टल के पास उनका निधन हो गया.