दुनिया के सबसे शक्तिशाली शख्सियत अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने जिस तरह से आयरलैंड के प्रधानमंत्री लियो वराडकर को सेक हैंड के बजाय भारतीय संस्कृति को अपनाते हुए हाथ जोड़कर ‘नमस्ते’ किया, उससे एक बार फिर भारतीय संस्कृति और समृद्धिशाली परंपराओं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर समर्थन मिला है. भले ही इन दोनों विभूतियों ने कोरोना वायरस के संक्रमण से बचने के लिए ‘नमस्ते’ किया हो, लेकिन डोनाल्ड ट्रंप के साथ दुनिया भर ने स्वीकारा कि 'नमस्ते' की यह सर्वश्रेष्ठ परंपरा उन्होंने भारत से सीखी है. आइए जानते हैं कि भारत में अभिवादन की इस सर्वोत्कृष्ट परंपरा का आध्यात्मिक एवं वैज्ञानिक आधार क्या है.
क्या है भारतीय संस्कृति एवं परंपराएं
किसी अतिथि के घर पर आने और जाने पर नमस्ते करके उसका अभिवादन करते हैं. अतिथि सत्कार के अलावा हिंदू धर्म में भगवान का अभिवादन भी हाथ जोड़कर किया जाता है, इसमें भी नमस्ते की मुद्रा ही होती है. वैसे हमारी संस्कृति में उम्र के अनुरूप भी अभिवादन की परंपरा है. बड़ों का जहां ‘चरण स्पर्श’ कर सम्मान के साथ अभिवादन किया जाता है, वहीं समान उम्र के बीच 'नमस्ते' की प्रक्रिया अपनाई जाती है और छोटों यानी बच्चों के सर पर हाथ रखकर 'आशीर्वाद' देने की अति प्राचीन परंपरा रही है. जबकि विदेशों में अधिकांश जगहों पर सेक-हैंड (हाथ मिलाना) करके अथवा गले मिलकर एक दूसरे का अभिवादन किया जाता है. लेकिन आज दुनिया भर में लोग कोरोना वायरस के संक्रमण से बचने के लिए भारतीय संस्कृति को खूब तवज्जो दे रहे हैं. ऐसे में हमे अपने देश की अति पुरातन संस्कृति नमस्ते के हर पहलुओं को समझना जरूरी है.
संस्कृत का शब्द है ‘नमस्ते’
‘नमस्ते’ वस्तुतः संस्कृत भाषा से उपजा शब्द है. संस्कृत के अनुसार नमः+ते, (नमन आपको) ‘यानी आपको नमन करता हूं.’ का भाव होता है ‘नमस्ते’ संस्कृति की प्रथा दक्षिण एशिया के देशों में खूब प्रचलित है. वैसे इसे भारत और नेपाल की पुरातन संस्कृति माना जाता है. ‘नमस्ते’ के लिए सामान्यत: दोनों हाथों को आपस में जोड़ना होता है. इन जुड़े हाथों को हृदय के समीप रखकर आंखें बंद करके सर झुकाना होता है. जब भी कोई व्यक्ति हाथों को जोड़कर उसे ह्रदय के समीप रखते हैं तो दिमाग शांत महसूस करता है, जिससे सामने खड़े व्यक्ति के चेहरे पर मुस्कान आ जाती है, और प्रत्योत्तर में उसके हाथ भी ‘नमस्ते’ की मुद्रा में जुड़ जाते हैं.
वैज्ञानिक पहलू
भारतीय संस्कृति में हाथ मिलाने की परंपरा कभी नहीं रही. हमारे यहां ऋषि-मुनियों के युग से ही नमस्ते की प्रथा प्रचलित है. लेकिन इस प्रथा के कुछ वैज्ञानिक पहलू भी हैं. गौरतलब है कि मनुष्य में ऊर्जा का प्रवाह निरंतर होता रहता है. इस ऊर्जा के अलग-अलग स्वरूप होते हैं. कुछ पॉजिटिव टाइप की ऊर्जा होती है तो कुछ निगेटिव टाइप की ऊर्जा होती है. अगर कोई व्यक्ति किसी को अभिवादन करते समय हाथ मिलाता है या चुंबन करता है तो उसके शरीर की ऊर्जा दूसरे के शरीर में प्रवेश कर जाती है. जिससे जिस व्यक्ति के शरीर में निगेटिव ऊर्जा प्रवेश करती है, उसे प्रतिकूल परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है. मनुष्य के शरीर में ऊर्जा का बहुत महत्व होता है, इसीलिए नमस्ते करके अपनी ऊर्जा को अपने ही शरीर में बने रहने की परंपरा विज्ञान संगत है इसलिए हिंदू संस्कृति में ‘नमस्ते’ तर्कसंगत माना गया है.
नमस्ते की मुद्रा को अंजलि मुद्रा भी कहते हैं.
गहरी लंबी सांस के साथ दोनों हाथों को दबाकर आपस में जोड़कर हृदय के पास रखा जाता है, उँगलियाँ ऊपर की तरफ सीधी होती हैं. अंगूठा हृदय से सटाकर रखा जाता हैं. सिर एवं गर्दन को झुका कर आंखें बंद की जाती है और नमस्ते कहा जाता है. इस पूरी मुद्रा को अंजलि मुद्रा भी कहते हैं. इसी का उपयोग नमस्ते, प्रणाम, सतश्री अकाल आदि के समय उपयोग करते हैं.
जानें ‘नमस्ते’ के क्या हैं लाभ
‘नमस्ते’ की मुद्रा वास्तव में योगासन की भी एक प्रक्रिया है. ‘नमस्ते’ करते समय मनुष्य के मनो-मस्तिष्क में उत्पन्न तनाव का ह्रास होता है. वह खुद में सहज महसूस करता है. ‘नमस्ते’ की मुद्रा से मन एकाग्रचित्त होता है, जिससे ध्यान केंद्रित होने के कारण शरीर को अच्छा महसूस होता है. ‘नमस्ते’ की मुद्रा के कारण व्यक्ति विशेष तनावमुक्त महसूस करता है. उससे उसके चेहरे पर प्रसन्नता के भाव दिखते हैं, और ‘नमस्ते’ करने से मनुष्यों के बीच रिश्ते मधुर और गहरे बनते हैं. ‘नमस्ते’ की मुद्रा से हाथ, कलाई एवं उंगलियों में लोचकता आती है. इसीलिए ‘नमस्ते’ हाथों का योग माना गया है.
आपने देखा कि किस तरह से ‘नमस्ते’ मामूली-सा शब्द नहीं बल्कि आध्यात्मिक एवं वैज्ञानिक प्रक्रिया के साथ ही योग का भी एक रूप है. तो गले लगाने, हाथ मिलाने अथवा चुंबन लेने के बजाय ‘नमस्ते’ कहें.