Kab Hai Raksha Bandhan Ka Tyohar: हिंदी पंचांग के अनुसार प्रत्येक वर्ष श्रावण मास शुक्लपक्ष की पूर्णिमा के दिन रक्षाबंधन का पर्व मनाया जाता है. यह पर्व भाई-बहन के प्रेम का प्रतीक होता है. इस दिन बहनें अपने भाई की कलाई में रक्षा सूत्र बांधकर ईश्वर से उसकी दीर्घायु एवं स्वस्थ जीवन की कामना करती है, और भाई बहन की हर संकटों से रक्षा करने का संकल्प लेते हैं. बहन द्वारा भाई को पारंपरिक तरीके से राखी बांधने के बाद भाई बहन को उपहार प्रदान करते हैं. आइये जानें रक्षाबंधन का पर्व इस दिन कब है, इस पर्व की परंपरा क्या है और भद्रा के समय राखी बांधना क्यों वर्जित है.
रक्षाबंधन का शुभ मुहूर्त
हिंदू पंचांग के अनुसार रक्षाबंधन अमूमन प्रत्येक वर्ष सावन माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है. लेकिन इस बार पूर्णिमा 11 एवं 12 अगस्त दोनों दिन पड़ रहा है. ऐसे में दुविधा है कि रक्षा बंधन किस तारीख की पूर्णिमा को मनाया जाये. ज्योतिषाचार्य पंडित सुनील दवे के अनुसार रक्षा बंधन का पर्व श्रावण मास में उस दिन मनाया जाता है, जब पूर्णिमा अपराह्ण काल में हो. लेकिन पूर्णिमा के दौरान अपराह्न काल में भद्रा का योग होने की स्थिति में राखी नहीं बांधना चाहिए. अगर पूर्णिमा अगले दिन के शुरुआती तीन मुहूर्तों में पड़ रहा है तो रक्षाबंधन उसी दिन अपराह्नकाल में मनाना चाहिए. लेकिन यदि पूर्णिमा अगले दिन के शुरुआती 3 मुहूर्तों में नहीं है तो रक्षाबंधन पहले दिन भद्रा के बाद प्रदोष काल के उत्तरार्ध में मनाया जाना चाहिए.
भद्राकाल में राखी नहीं बांधना चाहिए
हिंदू शास्त्रों के अनुसार भद्राकाल में कोई भी शुभकार्य वर्जित होता है. इसलिए इस मुहूर्त में ना ही राखी बांधना चाहिए और ना ही पूजा-अनुष्ठान आदि करना चाहिए. इससे अभीष्ठ फल प्राप्त होने के बजाय अनिष्ठ की संभावनाएं ज्यादा होती हैं.
रक्षा बंधन शुभ मुहूर्त
सावन पूर्णिमा प्रारंभः 10.38 AM (11 अगस्त 2022, गुरुवार) से
सावन पूर्णिमा समाप्तः 07.05 AM (12 अगस्त 2022, शुक्रवार) तक
रक्षाबंधन के लिए शुभ समयः 05.17 PM से 06.18 PM तक
रक्षा बंधन की पूजा विधि
रक्षा बंधन के दिन बहनें भाईयों के मस्तक पर तिलक लगाकर कलाई पर रक्षा-सूत्र या राखी बांधती हैं, और उनकी आरती उतारती हैं, राखी बांधते हुए निम्न मंत्र पढ़ते हुए भाईयों की दीर्घायु, समृद्धि एवं उनके खुशहाल जीवन की कामना करती हैं.
‘ॐ येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबलः। तेन त्वामपि बध्नामि रक्षे मा चल मा चल।।’
इस मंत्र के पीछे भी एक कथा प्रचलित है, जिसे बहनें भाई को रक्षा सूत्र बांधते समय पढ़ती या सुनती हैं.
रक्षा बंधन की प्रचलित कथा
प्राचीन काल में देवों और दैत्यों के बीच 12 वर्षों तक निरंतर युद्ध चलता रहा. युद्ध में दैत्यों की विजय सुनिश्चित लग रही थी. दैत्यों के राजा ने तीनों लोकों पर कब्ज़ा कर स्वयं को त्रिलोक स्वामी घोषित कर दिया था. देवों की रक्षार्थ देवराज इंद्र गुरू बृहस्पति के पास पहुंचे, और देवों की रक्षा के लिए प्रार्थना की. गुरु बृहस्पति ने श्रावण पूर्णिमा को प्रातःकाल रक्षा-विधान पूजा सम्पन्न करते हुए ऊपर लिखे मंत्र का पाठ किया. उन्होंने इन्द्र और उनकी पत्नी इंद्राणी से भी इस मंत्र को दोहराने के लिए कहा. इंद्राणी ने सभी ब्राह्मणों से रक्षा-सूत्र में शक्ति का संचार कराया और इन्द्र के दाहिने हाथ की कलाई पर उसे बांध दिया. इस सूत्र से शक्ति प्राप्त करने के पश्चात एवं इंद्र एवं सभी देवों ने दुगने जोश के साथ दैत्यों को युद्ध कर उन्हें परास्त कर अपना खोया हुआ राज्य पुनः प्राप्त किया.