Rajmata Jijabai Jayanti 2020: जीजाबाई (Jijabai) यादव वंश के शक्तिशाली बेहद साहसी सामंत लखुजी जाधव और माता महालसाबाई की बेटी थीं. पिता की विरासत बेटी जीजाबाई को मिली. यही बीज माता जीजाबाई ने अपने पुत्र शिवाजी (Shivaji) के भीतर निरूपित की. जीजाबाई छत्रपति शिवाजी (Chhatrapati Shivaji Maharaj) की मां ही नहीं, बल्कि उनकी मित्र, गुरू, मार्गदर्शक और प्रेरणास्त्रोत भी थीं. पति की अनुपस्थिति में उन्होंने पिता की भी भूमिका निभाई. जीजा माता की पूरी जिंदगी साहस और त्याग से भरी थी. शिवाजी को बचपन से माँ जीजामाता ने तीर, तलवार और भाला जैसे अस्त्र-शस्त्र चलाने की शिक्षा दी. उन्होंने शिवाजी को ऐसे संस्कार दिए, उनके अंदर राष्ट्रभक्ति और नैतिक चरित्र के बीजे बोए, जिसके कारण छत्रपति महाराज शिवाजी आगे चलकर एक वीर, महान निर्भीक नेता, राष्ट्रभक्त कुशल प्रशासक बने.
शिवाजी के लिए पति के साथ सती नहीं हुई
‘भारत की वीर माता’ के नाम से लोकप्रिय जीजाबाई का जन्म 12 जनवरी 1598 को बुलढाणा (महाराष्ट्र) स्थित सिंधखेड़ में हुआ था. बचपन में उन्हें ‘जीजाऊ’ नाम से पुकारा जाता था. पिता लखुजी जाधवराव निजामशाह के पंचहजारी सरदार थे. मां महालसा बाई थीं. उन दिनों बाल विवाह की प्रथा शिखर पर थी. जीजाबाई की भी शादी काफी कम उम्र में शाहजी राजे भोसले के साथ हुआ था. दरअसल शाहजी ने तत्कालीन निजामशाही सल्तनत पर मराठा राज्य की स्थापना की कोशिश की, लेकिन मुगलों और आदिलशाही के साथ मिल जाने से शाहजी हार गये. संधि की शर्तों के अनुसार उन्हें दक्षिण की ओर जाना पड़ा. उनके साथ बड़े बेटे संभाजी भी गये. उस समय शिवाजी 14 साल के थे. वे मां के साथ ही रहे. उधर दक्षिण में शाहजी और संभाजी अफजल खान के साथ एक लड़ाई में मारे गये. पति की मृत्यु की खबर सुनकर जीजाबाई ने पति के साथ सती होने की कोशिश की मगर शिवाजी ने अनुरोध करके उन्हें ऐसा करने से रोक दिया.
शिवाजी के मन में देश-प्रेम की भावना जगाई
जीजाबाई ने शिवाजी को बचपन से रामायण, महाभारत एवं वीर महापुरुषों की कहानियां सुनाकर उनमें वीरता, धर्मनिष्ठा, धैर्य और मर्यादा जैसे गुणों का बीज बोया, इसी से शिवाजी के बाल ह्रदय में स्वाधीनता की लौ प्रज्जवलित हुई. जीजामाता ने शिवाजी से मातृभूमि, गौ एवं मानव जाति की सुरक्षा का संकल्प भी लिया. उन्होंने शिवाजी को नैतिक संस्कारों एवं मानवीय रिश्तों की अहमियत समझाई. महिलाओं के प्रति मान-सम्मान करने की शिक्षा दी, तथा देश प्रेम की भावना जागृत की. यहीं से शिवाजी के मन में महाराष्ट्र की आजादी की इच्छा जागृत हुई.
जीजाबाई द्वारा दिये इन्हीं संस्कारों के कारण शिवाजी महाराज आगे चलकर समाज के संरक्षक और गौरव बने. उन्होंने भारत में हिन्दू स्वराज्य की स्थापना की और एक स्वतंत्र और महान शासक की तरह अपने नाम का सिक्का चलवाया और छत्रपति शिवाजी महाराज के नाम से मशहूर हुए. वीर शिवाजी ने अपनी सभी सफलताओं का श्रेय अपनी वीर माता जीजाबाई को दिया जिन्होंने ताउम्र अपने बेटे को मराठा साम्राज्य का महान शासक बनाने पर लगा दी थी.
शिवाजी का राज्याभिषेक कर मृत्यु को प्राप्त हुईं
राजमाता जीजाबाई बुद्धिमान एवं बहुत साहसी महिला थीं, जिन्होनें न सिर्फ मराठा साम्राज्य को स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, बल्कि मराठा सम्राज्य की नींव को मजबूती देने में भी विशेष योगदान दिया. वे सच्चे अर्थों में वीर नारी थीं, जिन्होंने अपने दम-खम पर और प्रतिभा के दम पर शिवाजी को शूरवीर बनाया. जिस दिन शिवाजी का राज्याभिषेक हुआ, उनका निधन शिवाजी के राज्याभिषेक के कुछ दिनों बाद 17 जून, 1674 ई. को हो गया. मां की मृत्यु के पश्चात शिवाजी ने मां की दी हुई शिक्षा एवं देश प्रेम से प्रेरित होकर मराठा साम्राज्य का विस्तार दिया. आज भी शिवाजी को वीर माता और राष्ट्रमाता के सुपुत्र के रूप में याद किया जाता है.