Holi 2019: रंग-गुलाल का अनूठा पर्व होली (Holi) पूरे देश में अत्यंत हर्षोल्लास और परंपराओं के साथ मनाया जाता है. परंतु ब्रज की होली (Holi of Braj) अपनी अनूठी और अनोखी परंपराओं के कारण विश्व भर में प्रसिद्ध है. यहां होली के रंग बसंत पंचमी (Rang Basant Panchami) से चैत्र कृष्ण दशमी यानी पूरे पचास दिनों तक समूचे ब्रज में छाया रहता है. कहीं लट्ठमार होली (Lathmar Holi), कहीं फूलों तो कहीं अंगारों की होली, जिसे देखने भारत के विभिन्न अंचलों के अलावा विदेशों से भी लोग यहां आते हैं.
पूरे ब्रज मंडल में होली की शुरुआत बसंत पंचमी से हो जाती है. इसी दिन से ब्रज के सभी कृष्ण मंदिर मंदिरों में ठाकुर जी के श्रृंगार में गुलाल का प्रयोग होने लगता है. होलिका दहन के लिए विभिन्न स्थानों पर होली के प्रतीक स्वरूप डंडे गाड़ दिए जाते हैं. शिवरात्रि से ढोल और मंजीरों के साथ रसिया-गान प्रारंभ हो जाता है. बृजवासी भांग और ठंडाई की मस्ती में गाते फिरते हैं.
आज बिरज में होरी रे रसिया
होरी रे रसिया, बरजोरी रे रसिया
आज बिरज में होरी रे रसिया
कौनो के हाथ कनक पिचकारी
कौन के हाथ कमोरी रे रसिया
ब्रज में होली की विधिवत शुरुआत फाल्गुन कृष्ण एकादशी को मथुरा मार्ग से 18 किमी दूर मानसरोवर गांव में लगने वाले राधा-रानी के मेले से होती है. यह भी पढ़ें: Holi 2019: क्यों मनाया जाता है रंगों का त्योहार होली, जानिए इससे जुड़ी दिलचस्प पौराणिक कथाएं
लट्ठमार होली और प्रेमभरी गालियां
फाल्गुन शुक्ल नवमी को बरसाना में नंदगांव के हुरियारों और बरसान की गोपिकाओं (स्त्रियों) के बीच लट्ठमार होली होती है. बरसाना, दिल्ली-आगरा राजमार्ग पर स्थित कोसींकलां से 7 किमी दूर स्थित है. इस होली में नंदगांव में गुसाईं अपने को श्रीकृष्ण का प्रतिनिधि मानकर नंदगांव के गुसाइयों को रंग की बौछारों के बीच प्रेम भरी गालियां देते हैं. खूब हंसी-मजाक होती है. बरसाना की महिलाएं अपनी-अपनी घूंघटों की ओट से नंदगांव के हुरियारों पर लाठियों की बौछार करती हैं.
इन प्रहारों को नंदगांव के हुरियारे रसिया गा-गाकर अपनी ढालों पर रोकते हैं. गोपिकाओं की लाठियों के प्रहारों से नंदगांव के हुरियारों की ढालें देखते ही छलनी हो जाती हैं. अगले दिन यानि फाल्गुन शुक्ल दशमी को इसी प्रकार की लट्ठमार होली नंदगांव में खेली जाती है. इस होली में नंदगांव की गोपिकाएं बरसाना के गुसाइयों पर लाठियां चलाती हैं. यह भी पढ़ें: Holi 2019: 14 मार्च से होलाष्टक की हो रही है शुरुआत, इन आठ दिनों तक न करें कोई शुभ कार्य, नहीं तो हो सकता है भारी नुकसान
फूलों की होली
नंद गांव की होली होने के पश्चात अगले दिन संपूर्ण ब्रज में रंग भरी एकादशी का पर्व पूरे हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है. इस दिन ब्रज के प्रायः सभी मंदिरों में ठाकुर जी (श्रीकृष्ण भगवान) के समक्ष रंग-गुलाल, इत्र-केवड़ा और गुलाब जल आदि की होली होती है. कुछ मंदिरों में राधा और कृष्ण की झांकियां भी निकलती हैं. इन झांकियों के साथ बहुत बड़ी मात्रा में रंग-अबीर और गुलाल रूपी प्रसाद चलता है. यह रंग रूपी प्रसाद लोगों पर इस तरह उड़ाया जाता है कि देखते ही देखते ब्रज का हर कोना इंद्रधनुषी हो जाता है.
फाल्गुन शुक्ल पक्ष एकादशी से फाल्गुन शुक्ल पूर्णमासी तक पूरे पांच दिन वृंदावन के ठाकुर बांके बिहारी मंदिर में सुबह-शाम गुलाल, टेसू के रंग, इत्र व गुलाब जल आदि के साथ पारंपरिक ढंग से होली खेली जाती है. इसी अवसर पर कहीं-कहीं लड्डू और जलेबी की होली भी खेली जाती है. ब्रज में उपवनों एवं बगीचों में बसंत ऋतु के आगमन के साथ ही नाना प्रकार के फूल खिलते हैं. संपूर्ण बृज में इन रंग-बिरंगे महकते ताजे फूलों से भी होली खेली जाती है.
फूलों की यह होली वृंदावन में रासलीलाओं के दौरान राधा और उनकी सखियां तथा कृष्ण व उनके सखा फूलों से इस तरह होली खेलते हैं कि राधा-कृष्ण फूलों के अंदर ढक से जाते हैं. तब फूलों के इस ढेर से बाहर निकलते हुए राधा-कृष्ण अपने दोनों हाथों से इन फूलों को चारों ओर उछालते हैं, यह दृश्य बस देखने लायक होता है. फाल्गुन शुक्ल पूर्णिमा की रात होलिका-दहन होता है. इस दिन मथुरा फालैन और जटवारी गांव में जगह-जगह रंगों की होली खेली जाती है. इसका एक अलग आनंद होता है. यह भी पढ़ें: Holi 2019: होली पर 10 घंटे तक रहेगी भद्रा, जानिए इसे क्यों माना जाता है अशुभ
होली के अंगारों पर चलते पंडे
फालैन मथुरा से लगभग 53 किमी दूरी पर और कोशीकलां से 9 किमी दूर छाता तहसील का एक छोटा-सा गांव है. यहां फाल्गुन शुक्ल पूर्णमासी को विशालकाय होली सजाई जाती है. इस होली को यहां के प्रह्लाद मंदिर का पंडा प्रह्लाद कुंड में स्नान करने के बाद अग्नि प्रज्जवलित करता है. उस पैरों अथाव शरीर के किसी भी हिस्से पर एक खरोच तक नहीं आती. होलिका-दहन के अगले दिन यानी धुलेंडी पर सारे ब्रज में रंग-गुलाल की बहुत बेहतरीन होली खेली जाती है.