HAPPY HOLI 2020: हिंदू पंचांग के अनुसार फाल्गुन मास की पूर्णिमा के दिन रंगों का पर्व होली बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है. रंगों के इस पर्व का इतिहास बहुत पुराना है. कुछ मान्यताओं के अनुसार कहा जाता है कि भगवान शिव और माता पार्वती ने पहली बार होली खेली थी, वहीं कुछ विद्वानों के अनुसार द्वापर युग में श्रीकृष्ण और राधा ने बृज में पहली बार एक दूसरे पर फूल बरसा कर फूलों की होली खेली थी. वहीं इतिहास के पन्ने पलटें तो ज्ञात होता है कि मुगलकाल में भी होली खेली जाती थी और इसे ईद-ए-गुलाब के नाम से मनाया जाता था. जबकि मुगलकाल से पूर्व आर्य इस दिन नवात्रैष्टि यज्ञ करते थे. आइये जानें कितना प्राचीन है रंगों का यह पर्व...
होली के रंगों में प्रेम और सद्भावना का संदेश
हिंदुस्तान के अन्य पर्वों की तरह होलिकोत्सव को भी बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में मनाया जाता है. इस त्योहार की सबसे बड़ी खूबी यह है कि इस पर्व में अमीर-गरीब, ऊंच-नीच, दोस्त-दुश्मन सारे फर्कों को भुलाकर मिलजुल कर एक दूसरे पर रंग फेंक कर अपनी खुशियों का प्रदर्शन करते हैं. इस पर्व की कुछ पारंपरिक कथाएं हैं, जो यह दर्शाता है कि होली कितना प्राचीन पर्व है.
मुगल शासकों की होली!
मुगलकाल के समय के मुस्लिम कवियों ने अपनी कई रचनाओं में दर्शाया है कि मुगल काल में बादशाह औऱ दरबारी भी होली खेलते थे. बताया जाता है कि ईद की तरह ही होली में भी हिंदू-मुस्लिम होली का पर्व मिलजुल कर मनाते थे. अकबर के साथ जोधाबाई और जहांगीर का नूरजहां के साथ होली खेलने के वर्णन मिलते हैं. कुछ प्राचीन भित्त चित्रों में भी इन्हें होली खेलते दिखाया गया है. कहा जाता है कि शाहजहां के समय तक होली खेलने का अंदाज बदल गया था. उस समय जो होली खेली जाती थी, उसे ‘ईद-ए-गुलाबी’ अथवा ‘आब-ए-पाशी’ (रंगों की बौछार) कहा जाता था. कहा जाता है कि हिंदुस्तान के अंतिम मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर के शासन काल में उनके मंत्री उन्हें रंग लगाने जाया करते थे. इतिहासकारों का कहना है कि मुगल शासकों के समय में फूलों से तैयार किये गये रंगों में इत्र, गुलाब जल अथवा केवड़ा जल के फव्वारों से होली खेली जाती थी.
पौराणिक कथाः शिव-पार्वती की प्रतीकात्मक होली
पौराणिक कथाओं के अनुसार में हिमालय पुत्री पार्वतीजी ने बचपन से शिव को पति के रूप में वर लिया था. मान्यता है कि शिव जी को पति के रूप में पाने के लिए माता पार्वती कड़ी तपस्या कर रही थीं. तब कामदेव ने पार्वती जी की मदद करने के इरादे से तपस्यारत भगवान शिव पर प्रेम बाण चलाकर उनकी तपस्या भंग कर दी, तब शिवजी ने क्रोध में आकर अपनी तीसरी आंख खोल दी, जिससे कामदेव जल कर भस्म हो गये थे.
लेकिन इस तपस्या भंग के कारण शिवजी कठिन तपस्या कर रही पार्वती जी को देखते हैं और उन्हें पत्नी के रूप में स्वीकार लेते हैं. होली की आग में वासनात्मक आकर्षण को प्रतीकत्मक रूप से जला कर सच्चे प्रेम के विजय के उत्सव में मनाया जाता है.
प्रह्लाद की भक्ति की अटूट कथा
प्राचीनकाल में हिरण्यकश्यप ने तपस्या कर भगवान ब्रह्मा से यह वरदान हासिल कर लिया कि उसे संसार का कोई भी जीव-जन्तु, देवी-देवता, राक्षस या मनुष्य रात, दिन, पृथ्वी, आकाश, घर, या बाहर नहीं मार सके. इससे वह निरंकुश हो गया. उसने अपने संपूर्ण राज्य में आदेश दे दिया कि सभी उसी की पूजा करेंगे. क्योंकि वह भगवान से भी ज्यादा ताकतवर है. लेकिन उसका पुत्र प्रह्लाद श्रीहरि का भक्त था, उसने अपने पिता का आदेश मानने से साफ मना कर दिया. प्रहलाद के मना करने पर हिरण्यकश्यप ने उसे जान से मारने के अनेक उपाय किए, लेकिन श्रीहरि की कृपा से वह हमेशा बचता रहा. हिरण्यकश्यप की बहन होलिका को अग्नि से बचने का वरदान प्राप्त था.
हिरण्यकश्यप ने उसे अपनी बहन होलिका की मदद से आग में जलाकर मारने की योजना बनाई. और होलिका प्रहलाद को गोद में लेकर आग में बैठ गयी. लेकिन इस बार प्रह्लाद तो बच गया और होलिका जल कर राख हो गयी. तभी से न्याय की अन्याय पर जीत के साथ होली का पर्व मनाया जाता है.