जापान में चावल इतना महंगा क्यों हो गया है?
प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credit: Image File)

जापान में चावल की कीमतें पिछले साल की तुलना में दोगुनी हो गई हैं. मुश्किल इतनी बड़ी है कि इसे राष्ट्रीय संकट कहा जाने लगा है. सरकार और आम लोग, दोनों की नींद उड़ी हुई है. आखिर चावलों की कीमत बढ़ने के पीछे क्या कारण है?जापान में चावल को एक तरह से पवित्र भोजन का दर्जा हासिल है जो यहां की संस्कृति, भाषा और परंपरा में गहराई तक समाया हुआ है. देसी बाजार को आयातित चावल से बचाने के लिए उस पर भारी आयात शुल्क लगाया जाता है. हालांकि अब हालत यह है कि घरेलू चावल इतना महंगा हो गया है कि शुल्कों की परवाह किए बगैर भारी मात्रा में चावल विदेशों से मंगाया जा रहा है.

रोजमर्रा का खाना जापान में बहुत से लोगों के लिए लग्जरी बन गया है. उनकी मुसीबत हल करना इस वक्त जापान के नेताओं के लिए सबसे बड़ी प्राथमिकता है. आने वाले हफ्तों में यहां संसदीय चुनाव होने हैं.

कब से शुरू हुई समस्या

इस संकट की शुरुआत तो 2023 में फसलों की कटाई के समय ही हो गई थी. अत्यधिक लू चलने की वजह से फसल खराब हुई और उपज इतनी भी नहीं थी कि उसे बाजार में बेचा जा सके. चावल उत्पादक और व्यापारी 2024 की शुरुआत में ही इस जंजाल में उलझ गए थे. जहां भी, जैसा भी चावल मिल रहा था उसे खरीद कर उन्होंने कमी दूर करने की कोशिश की गई.

8 अगस्त, 2024 को दक्षिणी जापान में आए तेज भूकंप ने इस आग में और घी डाल दिया. भूकंप के झटके इतने तेज थे कि सरकार को पहली बार यह चेतावनी जारी करनी पड़ी कि यह सामान्य बात नहीं है और भूकंप का असर दीर्घकालीन हो सकता है.

इस चेतावनी के बाद लोगों में हड़कंप मच गया और लोगों ने चावल खरीद कर भंडार करना शुरू कर दिया. इसके नतीजे में दुकानों के शेल्फ खाली हो गए और बाजार में चावल मिलना मुश्किल हो गया. इसी दौर में विदेशियों के आने से चावल की मांग और बढ़ी.

इन सबका नतीजा अगस्त 2024 में जापान में 4,00,000 मीट्रिक टन चावल की कमी के रूप में आया. 2024 में उपजे चावल का भंडार बाजार में तय समय से दो महीने पहले ही खत्म हो गया. सितंबर 2024 में थोक बाजार में चावल की कीमत अगस्त की तुलना में 41 फीसदी बढ़ गई. इसके बाद से लगभग हर महीने यह कीमत बढ़ती जा रही है.

इधर देश का कृषि मंत्रालय क्रॉप इंडेक्स पर भरोसा करके लगातार कई महीनों तक कमी होने की बात खारिज करता रहा. उनका कहना था कि नई फसल के आने के बाद से देश में बहुत चावल होगा. क्रॉप इंडेक्स मिल में भेजे जाने से पहले के धान की मात्रा के आधार पर उत्पादन के आंकड़े देता है.

1970 के दशक से ही सरकार ने देश में पैदा होने वाले चावल की मात्रा को नियंत्रित किया है. इसके जरिए सरकार मांग और आपूर्ति के बीच संतुलन बनाए रखती है. इसकी वजह से किसान चावल कम उगाते हैं.

सरकार ने क्या किया है

बढ़ती कीमतों की सुर्खियां बनने के बाद सरकार ने फरवरी में आपातकालीन भंडार से चावल निकाल बाजार में छोड़ने की घोषणा की. जापान की सरकार को पहली बार कीमत नियंत्रित करने कि लिए ऐसा करना पड़ा है.

चावल को पहले नीलामी के जरिए सबसे ऊंची बोली लगाने वाले को बेचा गया. उसके बाद इसे जापान एग्रीकल्चर कॉपरेटिव्स के जरिए बांटा गया. इस चावल के लोगों तक पहुंचने में देर लगी. खुदरा बाजार में इससे कीमतें घटाने में कोई खास फायदा नहीं हुआ और साथ ही लोगों को यह आसानी से मिला नहीं.

चावल की वजह से कृषि मंत्री को इस्तीफा देना पड़ा और मई में नए कृषि मंत्री शिनिजिरो कोईजुमी के आने के बाद लोगों तक चावल पहुंचाने में थोड़ी तेजी आई. कोईजुमी ने खुदरा बाजारों को सीधे चावल बेचना शुरू किया जिसके कि वह पांच किलो चावल 2000 येन यानी तकरीबन 13.85 अमेरिकी डॉलर की दर से बेच सकें. यह सुपरमार्केट में मिलने वाले चावल की कीमत का करीब आधा था. यह सप्लाई ग्राहकों तक जल्दी से ही पहुंचने लगी.

फिलहाल सिर्फ सरकारी आपूर्ति वाला चावल ही सस्ता है लेकिन यह बहुत कम है. देश भर के सुपरमार्केट में 5 किलो चावल की कीमत मार्च से ही 4,000 येन यानी 27 डॉलर से ज्यादा है. प्रधानमंत्री इशिबा इसे नीचे ले जाना चाहते हैं. कोईजुमी ने शपथ ली है कि वह सरकार के पास मौजूद 9,10,000 टन के समूचे भंडार को बाहर निकालेंगे और इसके साथ ही आयात के भरोसे कीमतों को कम करेंगे.

आयात पर भरोसा क्यों नहीं करता जापान

विश्व व्यापार संघ के साथ हुए समझौते के तहत जापान के पास 7,70,000 टन चावल के आयात का शुल्क मुफ्त कोटा है. इसमें से 1 लाख टन चावल ही जापान में लोगों के रोजमर्रा के खाने वाला चावल है. यह देश में चावल के कुल उपभोग का महज 1 फीसदी है.

इसके अतिरिक्त अगर जरूरत हो तो चावल आयात करने पर प्रति किलो 321 येन का शुल्क लगता है. विदेशी चावलों को देश पहुंचने से रोकने के लिए यह काफी है. हालिया कीमतें बढ़ने के बाद कंपनियां और थोक व्यापारी बड़ी मात्रा में विदेशी चावल आयात कर रहे हैं, खासतौर से अमेरिका से.