Chanakya Neeti: अपना दुखड़ा इन सात लोगों से शेयर न करें! लाभ नहीं होगा!
Chanakya Niti (Photo Credits: File Image)

Chanakya Neeti: सैकड़ों वर्षों बाद आज भी आचार्य चाणक्य (Acharya Chanakya) की नीतियां समसामयिक लगती हैं. चाणक्य की नीतियों पर चलकर चंद्रगुप्त मौर्य (Chandragupt Maurya) जैसा किशोर मगध का सम्राट बना. आचार्य की नीतियां आज भी सफलता का पर्याय मानी जाती हैं. उन्होंने समाज और जिंदगी से जुड़े विभिन्न पहलुओं को अपने श्लोकों के जरिये बताने का प्रयास किया है. आचार्य ने अपनी कुछ नीतियों में स्पष्ट है कि आप हर किसी के सामने अपना दुखड़ा नहीं रो सकते है. आपको अपनी तकलीफ अपना दर्द सामने वाले का नेचर देखने के बाद ही व्यक्त करना चाहिए. यहां हम आचार्य चाणक्य की नीतियों के तहत उन आठ लोगों से दूर रहने की बात करेंगे, क्योंकि ऐसी प्रवृत्ति वालों को आपके कष्ट अथवा दुखों से कोई फर्क नहीं पड़ता.

राजा वेश्या यमो ह्यग्निस्तकरो बालयाचको।  पर दु:खं न जानन्ति अष्टमो ग्रामकंटका: - 19 भावार्थ है, राजा, वेश्या, यमराज, अग्नि, चोर, बालक, याचक और अष्टम गांव का कांटा इन आठ लोगों को आपके दुख से कोई सरोकार नहीं रहता. इनसे बचकर रहना ही समझदारी है.  आचार्य चाणक्य के उपरोक्त श्लोक का आशय है कि संसार में कुल आठ ऐसी तथ्य हैं, जिनके सामने अपना दुखड़ा अथवा कष्ट का जिक्र करने का कोई हल नहीं होता है.

अग्निः अग्नि एक जड़ के समान है, वह किसी के सुख-दुख को नहीं समझता, सबके साथ समान व्यवहार (नष्ट करना) रखता है. इससे अपनी तकलीफ बताने का कोई तर्क नहीं है. राजाः राजा को भले ही प्रजा के सुख-दुख का अनुयायी बताया जाता है, लेकिन सच्चाई यही है कि राजा को प्रजा से ज्यादा अपने कोष की चिंता रहती है, क्योंकि उसी के अनुसार उसकी शक्ति का पता चलता है, और यह कोष वह जनता पर मनमर्जी से टैक्स वसूल कर भरता है.

वेश्याः वेश्या का मुख्य कार्य देह बेचकर पैसा कमाना है. उसे पैसों के अलावा किसी वस्तु की चाहत या चिंता नहीं रहती, इसलिए एक वेश्या के सामने अपना दुखड़ा रोने का कोई फायदा नहीं होगा. यह भी पढ़ें: Chanakya Niti: विपत्ति के समय धन महत्वपूर्ण है या पत्नी? जानें क्या कहती है चाणक्य नीति?

चोरः अपनी जरूरतों की पूर्ति के लिए चोर चोरी करता है, जिसके लिए वह अपनी जान भी जोखिम में डाल देता है, उसे पुलिस की भी चिंता नहीं रहती है. इसलिए चोर के सामने अपनी पीड़ा व्यक्त करने का कोई अर्थ नहीं होता.

बच्चाः बच्चे अबोध होते हैं, वे माता-पिता के सानिध्य में रहने के लिए बाध्य हैं, आप उनके लालन-पालन की व्यवस्था कैसे करते हैं, इससे उन्हें कोई मतलब नहीं, इसलिए उनके सामने अपने कष्टों का बयान का कोई लाभ नहीं.

यमराजः सृष्टि के नियमों के अनुसार जब इंसान अपनी जिंदगी पूरी कर लेता है तो मृत्यु के देवता यमराज उस व्यक्ति के प्राण हरने आता है.

भिक्षुकः आपके घर के सामने आपसे भिक्षा लेने आया भिक्षुक भी आपकी मदद करने में असमर्थ होता है. क्योंकि वह भी आपके आश्रय जीवन गुजारता है.

कांटाः कांटे की प्रकृति ही है कि जो उसके संपर्क में आयेगा, उसे तकलीफ पहुंचेगा. इसलिए आप कांटे से भी अपना दुख कहने का साहस नहीं कर सकते.