Chanakya Niti: विपत्ति के समय धन महत्वपूर्ण है या पत्नी? जानें क्या कहती है चाणक्य नीति?
Chanakya Niti

आचार्य चाणक्य महज राजनीतिक सलाहकार अथवा अर्थशास्त्री ही नहीं थे, बल्कि दूरदर्शी एवं विद्वान शिक्षक भी थे, उन्हें कौटिल्य एवं विष्णुगुप्त जैसे कई नामों से जाना जाता है. आचार्य ने मौर्य वंश की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. बतौर शिक्षक उऩकी नीतियां उऩकी प्रबल दूरदर्शिता का परिणाम है. तभी तो हजारों वर्ष बाद भी उनकी नीतियां आज के परिवेश में भी खरा उतरती है. चाणक्य के श्लोक हमारे दैनिक जीवन और पर्यावरण के लिए बहुत उपयोगी साबित हुए हैं. उनके ज्ञान का स्तर उनके हम-उम्र बच्चों से एकदम अलग था. आचार्य ने जीवन के हर क्षेत्र में सफल होने वाले तमाम सूत्रों का लेखन श्लोक के रूप में किया है. यहां हम बात करेंगे व्यक्ति विशेष के जीवन में अगर कोई आपदा या संकट आता, तो उसे कौन का कदम उठाना चाहिए. यानी उसे धन का साथ लेना चाहिए अथवा पत्नी का या फिर कुछ और...

आपदर्थे धनं रक्षेद्दारान् रक्षेद्धनैरपि ।

आत्मानं सततं रक्षेद्दारैरपि धनैरपि ॥

अर्थात, आपदा, यानी विपत्ति, यानी संकट के समय के लिए धन की रक्षा बहुत महत्वपूर्ण साबित होती है. धन से अधिक रक्षा पत्नी की करनी चाहिए, किंतु जहां तक अपनी खुद की रक्षा की बात है तो अपनी आत्म की रक्षा के लिए अगर धन और पत्नी दोनों का बलिदान करने की नौबत आये तो चूकना नहीं चाहिए.

तर्क के तौर पर आचार्य स्पष्ट करते हैं, -संकट और दुख में धन ही मनुष्य के काम आता है. अतः ऐसे संकट के समय में संचित धन है तो आप अपने संकट को कम कर सकते हैं. इसीलिए हर मनुष्य को धन-संचय की आदत अवश्य डालनी चाहिए. क्योंकि धन में बड़ी ताकत होती है, लेकिन बात अगर धन और पत्नी में से किसी एक को चुनने की हो तो पत्नी धन से बढ़कर है, अतः व्यक्ति को उसी की रक्षा करनी चाहिए. यानी पहले पत्नी की उसके बाद धन की रक्षा महत्वपूर्ण होती है. इससे विलग यह भी है कि अपनी रक्षा होने पर व्यक्ति पत्नी और धन दोनों की रक्षा कर सकता है.

बता दें कि आचार्य चाणक्य धन के महत्व को कम नहीं आंका है, क्योंकि धन व्यक्ति के संकट में एक बड़े साधक का काम कर सकता है, किंतु परिवार की भद्र महिला यानी स्त्री अथवा पत्नी के जीवन सम्मान का प्रश्न है तो मनुष्य को धन की चिंता नहीं करनी चाहिए. परिवार की मान-मर्यादा से ही व्यक्ति की अपनी मान मर्यादा है, वही चली गई तो जीवन किस काम का? लेकिन जब व्यक्ति की जान पर बात आ जाये तो क्या धन और क्या पत्नी, सभी की चिंता छोड़ उसे अपने जीवन की रक्षा करनी चाहिए, क्योंकि वह रहेगा, तभी पत्नी अथवा धन का उपयोग कर सकेगा, वरना सब व्यर्थ ही साबित होगा. राजपूत स्त्रियों ने जब इस बात को गहराई से अनुभव किया कि राज्य की रक्षा कर पाना या उसे बचा पाना असंभव हो रहा है तो उन्होंने जौहर व्रत का पालन किया और अपने प्राणों की आहुति दे दी. यही जीवन का धर्म है.