
आचार्य चाणक्य एक भारतीय शिक्षक, अर्थशास्त्री और राजनीतिक सलाहकार थे. भारतीय इतिहास में वे कौटिल्य, विष्णु गुप्त आदि के नाम से भी जाने जाते हैं. उन्होंने मौर्य वंश की स्थापना में अहम् भूमिका निभाई. चाणक्य नीति में प्रकाशित संस्कृत लिखित श्लोक हमारे दैनिक जीवन और पर्यावरण के लिए बेहद उपयोगी हैं. उनकी नीति के श्लोक हमें समाज और राजनीतिक जीवन के बारे में अनमोल जानकारी देते हैं. यहां निम्नांकित श्लोक में चाणक्य ने प्राणियों पर दया भावना दिखानेवाले को किसी सिद्ध पुरुष से ज्यादा महान बताया. आइये जानें क्या कहना चाहा है आचार्य ने इस श्लोक में...यह भी पढ़ें : Ganga Dussehra 2025: गंगा में डुबकियां क्यों लगाते हैं श्रद्धालु? जानें गंगा दशहरा पर स्नान एवं दान-धर्म का विशेष शुभ मुहूर्त!
यस्य चित्तं द्रवीभूतं कृपया सर्वजन्तुषु।
तस्य ज्ञानेन मोक्षेण किं जटाभस्मलेपनैः।
यह श्लोक चाणक्य नीति के अध्याय 15 से उद्घृत है. इस श्लोक का आशय है, जिसका हृदय सभी प्राणियों के प्रति दया और करुणा से पिघल जाता है, अर्थात जिसकी भावनाएं सभी प्राणियों के प्रति करुणा से भरी हो, उसे मोक्ष प्राप्त करने के लिए ध्यान, ज्ञान, जटाएं या भस्म आदि मलने की कोई आवश्यकता नहीं है, उसकी करुणा ही उसे मोक्ष की ओर ले जाती है.
व्याख्या
उपरोक्त श्लोक के माध्यम से चाणक्य स्पष्टीकरण देते हुए कहते हैं, समस्त सत्कर्मों में दया भाव सर्वोपरि होता है, यानी दूसरों पर दया करने से जिसका हृदय प्रसन्नता का अनुभव करता है, उसे ज्ञान एवं मोक्ष आदि प्राप्त करने के लिए शरीर पर भस्म लगाने, लंबी-लंबी उलझी जटाएं धारण करने की आवश्यकता नहीं है. सैकड़ों वर्षों तक कठोर तपस्या करके भी योगियों के लिए जो दुर्लभ है, वह ज्ञान एवं मोक्ष तो प्राणी मात्र पर दया करने से सहज प्राप्त हो जाता है. दया एवं करुणा सभी धर्मों का मूलाधार है. इस गुण को ग्रहण करके ही व्यक्ति महापुरुषों की श्रेणी में स्थान प्राप्त करते हैं, इसलिए दया का भाव हर इंसान को सदा अपने हृदय में धारण करना चाहिए.