Chanakya Niti: ऐसे राजा, ब्राह्मण और यजमान राष्ट्र को बर्बाद कर सकते हैं! जानें चाणक्य ऐसा क्यों कहते हैं?

  चाणक्य नीति एक प्राचीन भारतीय नीतिशास्त्र हैजिसे महान विद्वानरणनीतिकार और अर्थशास्त्री आचार्य चाणक्य ने रचा है. आचार्य चाणक्य लिखित यह ग्रंथ जीवन के विभिन्न पहलुओं पर नैतिकराजनीतिकसामाजिक और व्यक्तिगत मार्गदर्शन प्रदान करता है. चाणक्य नीति एक ऐसा ग्रंथ है जिसमें आचार्य ने जीवन में सफलताराजनीतिकूटनीतिमित्रतादुश्मनीस्त्री-पुरुष संबंधशिक्षाधर्मधनशासननेतृत्व आदि विषयों पर अपने अनुभवों और ज्ञान को सहज भाव से प्रस्तुत किया है. चाणक्य की यह नीति आज भी व्यवहारिक जीवन और प्रशासनिक कार्यों में मार्गदर्शक माने जाते हैं. चाणक्य ने अपनी नीति के अंतर्गत राजनीति, मित्र और शत्रु की पहचान, स्त्री और परिवार, धन और संपत्ति, शिक्षा और ज्ञान जैसे विषयों को अपनी दूरदर्शिता से सारगर्भित बना दिया है. यह भी पढ़ें : Mahalaya 2025: कब और क्यों मनाया जाता है महालया? जानें इसके इतिहास एवं महात्म्य आदि के बारे कुछ अनछुई बातें!

   उपरोक्त क्रम में आचार्य चाणक्य ने चाणक्य नीति के आठवें अध्याय के 22 श्लोक के अनुसार कुछ लोगों का संसर्ग केवल हानि ही देता है, मसलन

अन्नहीनो दहेद्राष्ट्र मन्त्रहीनश्च ऋत्विजः।

यजमानं दानहीनो नास्ति यज्ञसमो रिपुः।॥22॥

अर्थात

  उस यज्ञ के समान कोई शत्रु नहीं, जिसके उपरांत लोगो को बड़े पैमाने पर भोजन ना कराया जाए. ऐसा यज्ञ राज्यों को ख़तम कर देता है. यदि पुरोहित यज्ञ में ठीक से उच्चारण ना करे तो यज्ञ उसे ख़तम कर देता है. और यदि यजमान लोगो को दान एवं उपहार ना दिया जाए तो वह भी यज्ञ द्वारा ख़तम हो जाता है.

  कहने का सार यह है कि आचार्य चाणक्य हानिप्रद कारणों की चर्चा करते हुए कहते हैं कि अन्नहीन राजा राष्ट्र को नष्ट कर देता है. मन्त्रहीन ऋत्विज तथा दान न देने वाला यजमान भी राष्ट्र को नष्ट करते हैं. इस प्रकार के ऋत्विजों से यज्ञ कराना और ऐसे यजमान का होना फिर इनका यज्ञ करना राष्ट्र के साथ शत्रुता है.

  अर्थात् जिस राजा के राज्य में अन्न की कमी होजो ब्राह्मण (यज्ञ के ब्राह्मण यज्ञ) के मन्त्र न जानते हों तथा जो यजमान यज्ञ में दान न देता होऐसा राजाब्राह्मण तथा यजमान तीनों ही राष्ट्र को नष्ट कर देते हैं. इनका यज्ञ करना राष्ट्र के साथ शत्रुता दिखाना है.

अनाज न होने पर यज्ञ किया जाता है. यज्ञ के ब्राह्मण विद्वान होने चाहिएउन्हें यज्ञ के मन्त्रों का पूरा ज्ञान हो. यज्ञ के बाद यजमान ब्राह्मणों को दक्षिणा देता है. यदि मन्त्रहीन ब्राह्मण और दक्षिणा न देने वाला यजमान यज्ञ कराए तो यह राष्ट्र का सबसे बड़ा शत्रु कहा जाता है.