पटना: बिहार के उपमुख्यमंत्री (Deputy Chief Minister of Bihar) सुशील कुमार मोदी (Sushil Kumar Modi) ने गुरुवार को अमेरिका (America) में एक परिचर्चा में कहा कि पिछले 12 वर्षो से बिहार में जो चामत्कारिक बदलाव हुआ है, उससे दुनिया के पिछड़े देश सीख ले सकते हैं. उन्होंने कहा कि अगर राजनीतिक इच्छाशक्ति हो तो बिहार की तरह विपरीत परिस्थितियों में परिवर्तन लाया जा सकता है. अमेरिका के प्रमुख थिंक टैंक 'सेंटर फॉर स्ट्रेटेजिक एंड इंटरनेशनल स्टडीज' के 'ग्लोबल हेल्थ पॉलिसी सेंटर' द्वारा वाशिंगटन डीसी में भारत के किसी राज्य पर पहली बार आयोजित कार्यक्रम में अमेरिका के 100 से ज्यादा शोधकर्ता, वैज्ञानिक, नीति निर्धारक, स्वयंसेवी संगठनों एवं अमेरिकी सरकार के प्रतिनिधियों को 'बिहार के स्वास्थ्य क्षेत्र से सबक' विषय पर आयोजित परिचर्चा में मोदी ने हिस्सा लिया.
उन्होंने परिचर्चा में भाग लेते हुए कहा कि बिहार में विकसित 'किलकारी' और 'मोबाइल एकेडमी' नामक मोबाइल एप्लिकेशन को 13 राज्यों की 90 लाख गर्भवती महिलाएं व दो लाख से ज्यादा आशा और आंगनबाड़ी सेविकाओं ने अपनाया है. मोदी और राज्य के स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडेय इन दिनों अमेरिका की यात्रा पर हैं.
मोदी ने अमेरिका से जारी एक बयान में बताया कि उन्होंने परिचर्चा में कहा कि बिहार की चार लाख से ज्यादा स्वयंसहायता समूहों को मोबाइल द्वारा स्वास्थ्य, पोषण व स्वच्छता का प्रशिक्षण दिया जा रहा है. इसी तरह 'डिजिटिल ग्रीन' कार्यक्रम के तहत जीविका द्वारा 550 से ज्यादा सामुदायिक वीडियो का निर्माण कर छह लाख से ज्यादा महिला कृषकों को कृषि एवं पोषण की नई तकनीक से प्रशिक्षित किया गया है. यह भी पढ़ें: चिराग पासवान ने अब नोटबंदी पर उठाए सवाल, पीएम मोदी-जेटली से मांगा ब्योरा
स्वास्थ्य मंत्री पांडेय ने परिचर्चा में कहा कि सीमित संसाधनों के बावजूद बिहार ने मातृत्व एवं शिशु मृत्युदर, संस्थागत प्रसव, टीकाकरण, कालाजार और टीबी नियंत्रण जैसे मामलों में सभी मानकों पर देश के किसी भी राज्य की तुलना में बेहतर प्रदर्शन किया है.
सम्मेलन में शामिल प्रतिनिधियों ने बताया कि अमेरिका के कई प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों में बिहार सरकार द्वारा महिला सशक्तीकरण के लिए ग्राम पंचायत एवं शहरी निकाय में 50 प्रतिशत आरक्षण, सरकारी नौकरियों में 35 प्रतिशत आरक्षण, बालिका साइकिल योजना, कन्या उत्थान योजना जैसे कार्यक्रमों का अध्ययन किया जा रहा है, ताकि दुनिया के अन्य देश भी इन्हें अपना सकें.