TV समाचार चैनलों को रेगुलेट करने को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएं दायर की गई थी, जिसमें कहा गया था कि इनमें दिखाए जाने वाला कंटेंट काफी खतरनाक है, इसीलिए इसे लेकर सख्त नियम बनाने की जरूरत है. हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने ऐसी याचिकाओं पर सुनवाई करने से इनकार कर दिया. इतना ही नहीं सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को लेकर सख्त टिप्पणी भी की और कहा कि दर्शकों को ये चुनने की आजादी है कि वो इन चैनलों को देखें या नहीं.
कंसल ने दावा किया कि "सिर्फ दर्शकों की संख्या और बदनामी के लिए" महत्वपूर्ण विषयों की सनसनीखेज कवरेज के परिणामस्वरूप अक्सर किसी व्यक्ति, समुदाय या धार्मिक या राजनीतिक संगठन की प्रतिष्ठा "खराब" होती है. HC On Rape and Consensual Sex: महिला 6 साल तक शारीरिक संबंध बनाने के बाद रेप का आरोप नहीं लगा सकती
जस्टिस ओका ने अपनी टिप्पणी में कहा, ''आपको ये सभी चैनल देखने के लिए कौन मजबूर करता है? अगर आपको ये पसंद नहीं हैं तो इन्हें न देखें. जब कोई गलत चीज दिखाई जाती है तो ये भी धारणा की बात होती है. क्या अभिव्यक्ति की आजादी नहीं है? भले ही हम मीडिया ट्रायल को ना कहें, फिर भी हम इंटरनेट और अन्य चीजों को कैसे रोक सकते हैं? हम ऐसी प्रार्थनाएं कैसे कर सकते हैं? इसे गंभीरता से कौन लेता है, हमें बताएं? टीवी का बटन न दबाने की आजादी है.”
जज ने कहा- "हल्के ढंग से कहें तो, सोशल मीडिया, ट्विटर पर न्यायाधीशों के बारे में जो कुछ भी कहा जाता है; हम इसे गंभीरता से नहीं लेते हैं. दिशानिर्देश कौन तय करेगा? अपने ग्राहकों से कहें कि वे इन समाचार चैनलों को न देखें, और अपने समय के साथ कुछ बेहतर करें."