श्रीनगर/नई दिल्ली 26 अगस्त: जम्मू-कश्मीर (Jammu-Kashmir) में 32 साल लंबे छद्म युद्ध (Proxy War) में हारने के बाद पाकिस्तान (Pakistan) शांति की बात करने लगा है. भारत (India) ने हमेशा कहा है कि वह हमलावर नहीं है और सुलह के लिए खड़ा है, लेकिन शांति की उसकी इच्छा को उसकी कमजोरी नहीं समझना चाहिए. 2014 में नरेंद्र मोदी के भारत के प्रधानमंत्री के रूप में पदभार संभालने के बाद, उन्होंने स्पष्ट कर दिया था कि बातचीत और आतंक एक साथ नहीं चल सकते. ये भी पढ़ें India-US Joint Military Exercise: अमेरिका के साथ भारत के युद्ध अभ्यास का चीन ने किया विरोध, इंडिया ने दिया करारा जवाब
यदि पाकिस्तान वास्तव में स्थायी शांति बहाल करने के लिए गंभीर है तो उसे कश्मीर के प्रति अपना जुनून छोड़ देना चाहिए और आतंक को प्रायोजित करना बंद कर देना चाहिए. तभी यह भारत के साथ एक स्वस्थ संबंध बना सकता है. सिर्फ शांति की बात करना ही काफी नहीं है.
शरीफ की शांति वार्ता
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने पिछले हफ्ते कहा था कि उनका देश इस क्षेत्र में शांति बनाए रखना चाहता है, लेकिन उन्होंने कहा, "दक्षिण एशिया में स्थायी शांति संयुक्त राष्ट्र के प्रस्तावों और कश्मीरियों की इच्छाओं के अनुरूप जम्मू और कश्मीर मुद्दे के समाधान से जुड़ी हुई है, और इससे कम कुछ भी काम नहीं करेगा."
तथाकथित कश्मीर मुद्दे के समाधान के बारे में बात करके और संयुक्त राष्ट्र के पुराने प्रस्तावों के बारे में बात करके प्रधानमंत्री शरीफ ने एक बार फिर संकेत दिया है कि शांति की उनकी इच्छा संघर्ष को जीवित रखने के उद्देश्य से केवल एक बयानबाजी के अलावा और कुछ नहीं है.
कश्मीरियों को अकेला छोड़ दो
ऐसा लगता है कि पाकिस्तान के प्रधानमंत्री को यह याद दिलाने की जरूरत है कि जम्मू-कश्मीर के लोगों ने नई दिल्ली के 5 अगस्त, 2019 के फैसले (जम्मू-कश्मीर के तथाकथित विशेष दर्जे को निरस्त करना) का समर्थन करके यह स्पष्ट कर दिया है कि भारत के साथ उसका भविष्य सुरक्षित है और वे चाहते हैं कि पाकिस्तान उन्हें अकेला छोड़ दे. जम्मू-कश्मीर का एक आम आदमी इस बात से वाकिफ है कि पड़ोसी देश संकट के बीच फंस गया है क्योंकि उसकी अर्थव्यवस्था चरमरा गई है और चीन पूरी तरह से उसका नियंत्रण अपने हाथों में आने का इंतजार कर रहा है.
पिछले सात दशकों के दौरान पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (पीओके) और क्षेत्र के नागरिकों की दयनीय दुर्दशा इस बात का पर्याप्त प्रमाण है कि पाकिस्तान के शासकों ने हमेशा पीओके को अपना उपनिवेश और आतंकवादियों के प्रजनन स्थल के रूप में माना है.
POK ने मांगी आजादी
प्रधानमंत्री शरीफ को जम्मू-कश्मीर के लोगों की इच्छाओं और आकांक्षाओं के बारे में बात करने के बजाय पीओके की ओर देखने की जरूरत है, जहां लोग सड़कों पर हैं और अत्याचारी शासन से आजादी की मांग कर रहे हैं.
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री एक ओर घोषणा करते हैं कि उनका देश बातचीत के माध्यम से भारत के साथ स्थायी शांति चाहता है, क्योंकि युद्ध किसी भी देश के लिए एक विकल्प नहीं है, लेकिन साथ ही वह यह भी कहते हैं कि 'कश्मीर मुद्दे' के हल होने तक शांति कायम नहीं हो सकती. उन्हें तय करना चाहिए कि उन्हें क्या चाहिए, फिर शांति और अन्य चीजों के बारे में बात करें.
दोहरे मानक
शरीफ के इस बयान कि 'युद्ध कोई विकल्प नहीं है' का मतलब यह नहीं है कि पाकिस्तान ने जम्मू-कश्मीर में छद्म युद्ध लड़ना बंद कर दिया है. यह एक संकेत है कि पाकिस्तान केवल परदे के पीछे से लड़ सकता है यानी उसके द्वारा प्रायोजित आतंकवादी और अपनी पारंपरिक सेना के माध्यम से नहीं क्योंकि यह भारतीय सेना के कौशल और ताकत से मेल नहीं खा सकता है और दूसरा पाकिस्तान के संसाधन सीमित हैं. यदि वह युद्ध करता है तो उसके संसाधन एक सप्ताह भी नहीं चल सकते. तो पाकिस्तान युद्ध के विकल्प के बारे में सोच भी कैसे सकता है?
नेताओं पर बढ़ता दबाव
पाकिस्तान में गहराते आर्थिक संकट और तेजी से भू-राजनीतिक बदलाव के बीच पड़ोसी देश में समझदार लोग भारत के साथ संबंधों को सामान्य बनाने के लिए दबाव बढ़ा रहे हैं क्योंकि यह पाकिस्तान के अस्तित्व के लिए महत्वपूर्ण है.
भारत और पाकिस्तान के बीच व्यापार 2019 से निलंबित है. 2018 में विश्व बैंक के एक अध्ययन से पता चला था कि स्थिति सामान्य होने पर भारत और पाकिस्तान के बीच व्यापार 37 अरब डॉलर तक पहुंच सकता है.
लेकिन पाकिस्तानी शासकों को जिस बड़े सवाल का जवाब देना है, वह यह है कि क्या वे वास्तव में व्यापार, वाणिज्य और अन्य गतिविधियों में रुचि रखते हैं? जवाब बड़ा नहीं है, अगर वे 'शांति वार्ता' के बारे में वास्तव में ईमानदार होते तो वे कश्मीर के बारे में बात करना बंद कर देते और उन मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करते जो दोनों देशों को करीब ला सकते हैं.
पाक ने हमेशा शांति के कदमों को किया नाकाम
भारत ने हमेशा शांति, समृद्धि और विकास के पथ पर आगे बढ़ने के लिए अपना झुकाव दिखाया है लेकिन पाकिस्तान ने हमेशा आतंकी गतिविधियों को प्रायोजित करके शांति की पहल को विफल कर दिया है.
जो देश अपने ही नागरिकों की समस्याओं का समाधान नहीं कर पाया है, वह कश्मीर के पाकिस्तान का हिस्सा बनने के सपने देखता रहता है.
पड़ोसी देश अंतरराष्ट्रीय समुदाय के सामने बेनकाब हो जाता है क्योंकि पूरी दुनिया जानती है कि वह न केवल भारत को बल्कि अन्य देशों को भी आतंक का निर्यात करता है.
अनुच्छेद 370 को निरस्त करने और जम्मू-कश्मीर के केंद्र शासित प्रदेश बनने के बाद पाकिस्तान ने तथाकथित 'कश्मीर मुद्दे' के लिए समर्थन लेने के लिए हर देश का दरवाजा खटखटाया, लेकिन इस्लामिक राष्ट्रों सहित कोई भी देश पाकिस्तान का समर्थन करने के लिए आगे नहीं आया. सभी देशों ने पाकिस्तान से साफ शब्दों में कहा कि जम्मू-कश्मीर भारत का आंतरिक मामला है और उन्हें इसमें दखल देने का कोई अधिकार नहीं है.
पड़ोसी देश को सभी मोचरें पर हार का सामना करना पड़ा है लेकिन वह अभी भी कश्मीर में अशांति बनाए रखने के अपने एजेंडे को नहीं छोड़ रहा है. पाकिस्तान द्वारा भेजे और प्रायोजित आतंकवादी हिमालयी क्षेत्र में भाग रहे हैं और उन्होंने सुरक्षा बलों से लड़ना लगभग छोड़ दिया है. इसके बजाय वे अल्पसंख्यक समुदायों के सदस्यों, नागरिकों को निशाना बना रहे हैं और भीड़-भाड़ वाली जगहों पर हथगोले फेंकने की बेताब कोशिश कर रहे हैं.
जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद का पारिस्थितिकी तंत्र ध्वस्त हो गया है और स्थानीय समर्थन भी कम हो गया है. जम्मू-कश्मीर के लोगों ने पाकिस्तान और उसके इशारे पर अशांति पैदा करने वाले उग्रवादियों से मुंह मोड़ लिया है. हिमालयी क्षेत्र में एक आम आदमी दूसरे पक्ष द्वारा शुरू किए गए प्रचार में कम से कम दिलचस्पी रखता है.
पंख फैला रहा चीन
प्रधानमंत्री शरीफ ने एक बार फिर कश्मीर के मुद्दे को उठाने की कोशिश की है लेकिन उन्होंने यह भी स्पष्ट कर दिया है कि उनका देश भारत के साथ सैन्य टकराव में शामिल होने की स्थिति में नहीं है. वह इस तथ्य से अवगत है कि एक राष्ट्र के रूप में पाकिस्तान ने अपने ही नागरिकों को निराश किया है और उसे अपने देश में कड़ी नाराजगी का सामना करना पड़ रहा है. ऐसा प्रतीत होता है कि वह कश्मीर और संयुक्त राष्ट्र के प्रस्तावों के बारे में बात करना चाहते हैं ताकि लोगों का ध्यान उनकी सरकार के सामने आने वाले वास्तविक मुद्दों से हट सके.
चीन का दखल हर गुजरते दिन के साथ बढ़ता ही जा रहा है क्योंकि इसने पाकिस्तान के चारों ओर कर्ज का जाल बुन लिया है. चीन धीरे-धीरे लेकिन निश्चित रूप से पाकिस्तान और उसके संसाधनों को नियंत्रित करने की दिशा में आगे बढ़ रहा है. चीन अपने देश में जो कर रहा है, उससे पाकिस्तान के नेताओं ने आंखें मूंद ली हैं.
विडंबना यह है कि जो देश धीरे-धीरे अपना क्षेत्र खो रहा है और अपने नागरिकों को बुनियादी सुविधाएं भी नहीं दे पा रहा है, वह कश्मीर चाहता है और धमकी दे रहा है कि जब तक जम्मू-कश्मीर का समाधान नहीं हो जाता, तब तक शांति कायम नहीं रह सकती. पाकिस्तान का अस्तित्व दांव पर है लेकिन फिर भी उसके नेता हकीकत को मानने को तैयार नहीं हैं. उनके लिए कश्मीर अपने लोगों को व्यस्त रखने के लिए एक उत्साहजनक बात है. पाकिस्तान एक अजीब देश है जहां नेताओं को अपनी प्राथमिकताओं के बारे में कोई जानकारी नहीं है. वे इस तथ्य से अवगत हैं कि वे जम्मू-कश्मीर का एक इंच भी नहीं पा सकेंगे, लेकिन फिर भी वे शत्रुता को समाप्त नहीं करना चाहते हैं.