नई दिल्ली: भारत निर्वाचन आयोग (ECI) ने बुधवार को सुप्रीम कोर्ट को बताया कि सभी मतदान केंद्रों पर मतदान के अंतिम प्रमाणित आंकड़े प्रकाशित करने का कोई कानूनी अधिकार नहीं है. शीर्ष अदालत में एक हलफनामा दायर कर चुनाव आयोग ने कहा कि फॉर्म 17C (प्रत्येक मतदान केंद्र पर पड़े वोट) के आधार पर मतदान के आंकड़े सार्वजनिक करने से मतदाताओं में भ्रम पैदा होगा क्योंकि इसमें डाक मतपत्रों की गिनती भी शामिल होगी.
हलफनामे में कहा गया है, "किसी भी चुनावी मुकाबले में जीत का अंतर बहुत कम हो सकता है. ऐसे मामलों में, सार्वजनिक रूप से फॉर्म 17C का खुलासा मतदाताओं के मन में कुल मतदान को लेकर भ्रम पैदा कर सकता है क्योंकि बाद वाले आंकड़े में फॉर्म 17C के अनुसार पड़े वोटों की संख्या और साथ ही डाक मतपत्रों के माध्यम से प्राप्त वोट भी शामिल होंगे. हालाँकि, मतदाताओं द्वारा इस तरह के अंतर को आसानी से नहीं समझा जा सकता है और इसका इस्तेमाल निहित स्वार्थों वाले लोग पूरी चुनावी प्रक्रिया पर सवाल उठाने के लिए कर सकते हैं ... चुनाव मशीनरी में अराजकता पैदा कर सकते हैं जो पहले से ही गति में है."
[BREAKING] No legal mandate to make booth wise votes polled public; will confuse voters: ECI to Supreme Court#loksabhapolls #SupremeCourt #ElectionCommission
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— Bar and Bench (@barandbench) May 23, 2024
यह हलफनामा गैर सरकारी संगठन एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) द्वारा दायर एक याचिका के विरोध में दायर किया गया था जिसमें लोकसभा चुनाव 2024 में मतदान के 48 घंटे के भीतर सभी मतदान केंद्रों पर मतदान के अंतिम प्रमाणित आंकड़े, जिसमें पड़े वोटों की संख्या भी शामिल है, का खुलासा करने की मांग की गई थी.
चुनाव आयोग ने अपने हलफनामे में ADR पर भी हमला किया और कहा कि कुछ "निहित स्वार्थ" इसके काम को बदनाम करने के लिए उस पर झूठे आरोप लगाते रहते हैं. हलफनामे में कहा गया, "भारत निर्वाचन आयोग द्वारा चुनाव कराने के संबंध में हर संभव तरीके से और भ्रामक दावों और निराधार आरोपों के आधार पर संदेह और संदेह पैदा करने के लिए एक लगातार दुर्भावनापूर्ण अभियान/डिजाइन/प्रयास चल रहा है ... खेल में डिजाइन और पैटर्न संदेह फैलाना है और जब तक सच्चाई ... सामने आती है, तब तक नुकसान हो चुका होता है."
चुनाव निकाय ने कहा कि ADR कानूनी अधिकार का दावा कर रहा है जहाँ कोई अधिकार नहीं है, वह भी चल रहे लोकसभा चुनावों के बीच. हाल ही में शीर्ष अदालत के EVM फैसले में ADR के खिलाफ पारित सख्त टिप्पणियों का हवाला देते हुए चुनाव आयोग ने कहा कि 'सुप्रीम कोर्ट के समक्ष मामलों की सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता द्वारा किए गए ट्वीट और सोशल मीडिया पोस्ट सहित सार्वजनिक संदेश के लहजे, भाषा, डिजाइन पर ध्यान दिया जाना चाहिए.'
चुनाव आयोग के हलफनामे में कहा गया है, "याचिकाकर्ता स्वच्छ हाथों से माननीय न्यायालयों का दरवाजा नहीं खटखटा रहे हैं और साजिश के सिद्धांत के आधार पर मतदाताओं के मन में लगातार संदेह पैदा करने के लिए न्यायालय के मंच का दुरुपयोग करने का इरादा रखते हैं. यह कहना भी उचित है कि याचिकाकर्ता किसी भी मामले में अपने दावों को साबित नहीं कर पाए हैं, चाहे वह मतदाता सूची की शुचिता हो या ईवीएम की."
ADR ने अपने आवेदन में इस बात पर प्रकाश डाला था कि 30 अप्रैल को प्रकाशित आंकड़ों में चुनाव के दिन चुनाव आयोग द्वारा घोषित शुरुआती अनुमान की तुलना में अंतिम मतदान में तेज वृद्धि (लगभग 5-6%) देखी गई है. याचिका में कहा गया है कि मतदान प्रतिशत की घोषणा में देरी और उसके साथ-साथ मतदान में वृद्धि ने मतदाताओं और राजनीतिक दलों के बीच इस तरह के आंकड़ों की सटीकता को लेकर चिंता पैदा कर दी है.