भारत को ‘मिसाइल शक्ति' बनाने में मई माह की अहम भूमिका रही है. 18 मई 1974 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी, भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर के अध्यक्ष राजा रामन्ना और भारत के मिसाइल प्रोग्राम के जनक डॉ एपीजे अब्दुल कलाम की टीम ने ‘बुद्धा इज स्माइलिंग' कोड वर्ल्ड से पहला सफल परीक्षण किया. इस परीक्षण से अमेरिका हैरान था कि उसकी तमाम खुफिया एजेंसियों और सैटेलाइट को धता बताते हुए भारत कैसे चुपचाप परमाणु परीक्षण कर सका! बहरहाल इसके बाद अमेरिका समेत कई बड़ी शक्तियों ने आनन-फानन में NSG लागू कर भविष्य में परमाणु परीक्षण के सारे रास्ते बंद कर दिये.
इसके लगभग 20 साल बाद 1998 में प्रधानमंत्री बनने के बाद अटल बिहारी वाजपेयी ने साल 1998 की 11 मई से 13 मई के बीच राजस्थान पोकरण में एक के बाद एक 5 परमाणु विस्फोट कर दुनिया को हिला दिया. इन परमाणु परीक्षणों से अमेरिका, रूस, चीन, जापान और ब्रिटेन समेत कई देश दंग रह गए. पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम और अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में यह मिशन इतनी शांति से अंजाम दिया गया कि किसी को भनक तक नहीं लगी. विश्व की तमाम बड़ी शक्तियों को जब तक इन परीक्षणों के बारे में पता चलता, भारत खुद को न्युक्लियर शक्ति संपन्न देश साबित कर उनके समानांतर खड़ा हो चुका था. आइए जानें, 20 साल पहले इसी 11 मई के दिन भारत ने कैसे एक बार फिर अमेरिकी खुफिया एजेंसियों को ठेंगा दिखाते हुए एक नहीं पांच- पांच परमाणु विस्फोट किए.
एक नहीं 5-5 परमाणु विस्फोट!
अटल बिहारी वाजपेई वाजपेई् के सत्तासीन होते ही अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए ने भारत पर पैनी नजरें जमा रखी थी, उसे अहसास हो गया था कि शांत से दिखने वाले अटलजी के भीतर कुछ तो है. उसने पोखरण पर नजर रखने के लिए चार सशक्त सैटलाइट लगा दिए थे, और पल पल की जानकारी रख रहे थे. इसके बावजूद भारतीय वैज्ञानिक अमेरिकी खुफिया कैमरों की आंखों में धूल झोंकते हुए एक नहीं पांच-पांच परमाणु परीक्षण कर दिये.
‘कर्नल पृथ्वीराज’ बन दिया कलाम ने अंजाम!
इस न्युक्लियर प्रॉजेक्ट के साथ जुड़े भारतीय वैज्ञानिक कदम-कदम पर इस कदर सतर्कता बरत रहे थे कि वे एक दूसरे से बात भी कर रहे थे तो कोड भाषा में. वे सभी एक दूसरे को छद्म नामों से पुकारते थे. हालांकि इस तरह कोड में बात करते हुए कई बार उन्हें दुविधा भी होती और असुविधा भी. इसके अलावा मिशन में शामिल वैज्ञानिकों ने कैजुअल ड्रेस के बजाय आर्मी ड्रेसेज में परीक्षण स्थल पर आ जा रहे थे. ताकि अमेरिकी खुफिया एजेंसी को लगे भारतीय जवान ड्यूटी दे रहे हैं. यहां तक कि 'मिसाइलमैन' अब्दुल कलाम भी सेना की वर्दी में थे. उन्हें जो कोड नाम दिया गया था, उसके अनुसार उन्हें कर्नल पृथ्वीराज नाम दिया गया था और वह लोकेशन पर ग्रुप के बजाय अकेले जाते थे. 10 मई की रात इस मिशन को 'ऑपरेशन शक्ति' का नाम दिया गया था.
‘कुंभकर्ण’, ‘ताजमहल’, ‘ह्वाइट हाउस' थे कोड वर्ड्स!
सुबह 4 बजे जब सारी दुनिया सो रही थी, सेना के 4 ट्रकों में परमाणु बम पोखरण लाया गया. कुछ समय पहले ही इसे मुंबई से भारतीय वायु सेना के प्लेन से जैसलमेर पहुंचाया गया था. इनके कोड वर्ड्स थे ‘ताजमहल’ और ‘कुंभकर्ण’. एहतियात के लिए पूरी रात चले इस ऑपरेशन के दौरान बातें भी सांकेतिक भाषा में होती थी. मसलन, ‘क्या स्टोर आ चुका है? परमाणु बम के एक दस्ते का नाम तो 'ताजमहल' तक रख गया था. कुछ अन्य कोड वर्ड्स थे ‘ह्वाइट हाउस. कुंभकर्ण इत्यादि.
कुएं में रखे गए ‘न्यूक्लियर’ बम
इन परमाणु वैज्ञानिकों ने मिशन की सफलता के लिए रेत भरे रेगिस्तान में बड़े कुएं खोदकर इनमें परमाणु बम रखे गए.कुओं पर बालू के टीले बनाकर उनके तार बाहर निकाले थे. सही समय पर धमाके हुए और इसके साथ ही पूरा आसमान में धुएं से पट गया. पोखरण परीक्षण रेंज पर पांच परमाणु बमों के परीक्षणों से भारत दुनिया को पहला ऐसा परमाणु शक्ति संपन्न देश बन गया, जिसने परमाणु अप्रसार संधि पर हस्ताक्षर नहीं किए थे.
कलाम वाजपेई ने एक दूसरे को दिया सफलता का श्रेय!
परमाणु बमों की सफलता का श्रेय अटल जी ने अब्दुल कलाम और उनकी टीम को दिया. उधर प्रेस से बात करते हुए कलाम ने बताया था कि न्युक्लिर टेस्ट को लेकर भारत पर अंतरराष्ट्रीय दबाव बहुत ज्यादा था, लेकिन पीएम (वाजपेयी) ने सारे प्रेशर को साइड लाइन करते हुए मुझे ‘काम को अंजाम' देने के लिए प्रेरित किया. कलाम ने माना कि अटल नाम से ही नहीं, इरादों से भी अटल हैं.