भोपाल: मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने एक लिव इन रिलेशन (Live in Relationship) में रह रहे 19 साल के एक प्रेमी जोड़े को सुरक्षा मुहैया कराते हुए एक नसीहत दी है, जिस पर ध्यान देना जरूरी है. कोर्ट ने ऐसे जोड़ों को परिवार से दूर रहने और इतनी जल्दी रिलेशनशिप में आने की चुनौतियों के बारे में आगाह किया है. अदालत ने कहा कि "संविधान द्वारा कुछ अधिकार प्रदान किए गए हैं, लेकिन उनका आनंद लेना और उन्हें लागू करना आवश्यक नहीं है." वोटर्स को पता है कौन गुमराह कर रहा है, उन्हें कम मत समझिये... जानें दिल्ली हाई कोर्ट ने क्यों की ऐसी टिप्पणी.
टाइम्स ऑफ़ इंडिया की एक रिपोर्ट के अनुसार, न्यायमूर्ति सुबोध अभ्यंकर ने 14 मार्च के एक आदेश में कहा कि याचिकाकर्ता वयस्क थे और उन्होंने अपने परिवार की इच्छा के विरुद्ध एक साथ रहने का विकल्प चुना था. अदालत ने पुलिस को जोड़े की सुरक्षा सुनिश्चित करने का निर्देश देते हुए कहा कि बालिग होने के नाते युवक को अपनी इच्छा से जीने का अधिकार है और अगर वह चाहे तो उसके फैसले को बाहरी हस्तक्षेप से बचाया जाना चाहिए.
हालांकि, जस्टिस अभ्यंकर ने आज युवा लोगों द्वारा चुने जा रहे विकल्पों पर चिंता व्यक्त की. उन्होंने याद दिलाया कि हालांकि संविधान कुछ अधिकार प्रदान करता है, लेकिन उन सभी का प्रयोग और कार्यान्वयन करना आवश्यक नहीं है. उन्होंने आगे कहा कि भारत बेरोजगारों को भत्ता प्रदान नहीं करता है, जिसका अर्थ है कि लिव इन में रहने वाले युवाओं को अपनी और अपने साथी की आजीविका स्वयं अर्जित करनी होगी.
हाई कोर्ट ने कहा, 'अगर आप कम उम्र में जीवन के संघर्ष में उतरते हैं तो कई अवसरों से आप चूक जाते हैं. आपकी सामाजिक स्वीकार्यता भी कम हो जाती है. एक लड़की के लिए यह कहीं अधिक कठिन है जो कम उम्र में गर्भवती हो सकती है, जिससे उसके जीवन में और जटिलताएं पैदा हो सकती हैं. इस प्रकार, ऐसे विकल्पों को चुनते समय और ऐसे अधिकारों को लागू करते समय विवेक की सलाह दी जाती है, क्योंकि अधिकार रखना एक बात है और उन्हें लागू करना दूसरी बात है.”