दिहाड़ी मजदूरों के परिवार में जन्मे और आर्थिक तंगी के कारण कक्षा 6 से आगे की पढ़ाई नहीं कर सके लोगानाथन के लिए दान का मतलब केवल एक ही अर्थ है- दूसरों की सेवा करने का अवसर. एक इंटरव्यू में उन्होंने बताया “मैं 12 साल का था जब मैंने पेपर मिल और वर्कशॉप में काम करना शुरू किया. मैं नहीं चाहता कि कोई भी बच्चा इस तरह की कठिनाइयों का सामना करे और अपने सपनों को छोड़ दे, इसलिए मैं उनकी जो कुछ भी मदद कर सकता हूं, वह करता हूं. व्यक्तिगत कठिनाइयों से प्रेरित 52-वर्षीय लोगानाथन पिछले 17 वर्षों से शौचालय की सफाई कर रहे हैं ताकि अतिरिक्त धन कमा सके और अनाथ बच्चों की पढ़ाई में उनकी मदद कर सके. हर दिन लोगानाथन कोयम्बटूर में अपने वेल्डिंग का काम पूरा करने के बाद निजी कंपनियों के बाथरूम साफ करते हैं.
उन्होंने बताया कि लोग टॉयलेट की सफाई के काम से बहुत शर्म करते हैं, लेकिन मुझे ऐसा कुछ भी नहीं लगता है. मैं सैकड़ों लोगों की स्वच्छता में योगदान दे रहा हूं, फिर ये शर्मनाक कैसे हो सकता है? मैं ये सैकड़ों बच्चों के भविष्य के लिए ऐसा कर रहा हूं और मुझे इसमें बिलकुल भी शर्म नहीं आती है. शर्म उन्हें करनी चाहिए जिनकी सोच छोटी है. कन्नमपालयम, कोयम्बटूर के एक मूल निवासी लोगानाथन ने ये पहल 2002 में की और अनाथालयों में वितरित करने के लिए अच्छे परिवारों से कपड़े और किताबें एकत्र करना शुरू किया. इसके अलावा, वह हर साल 10,000 रुपये शहर के जिला कलेक्टर को सरकारी अनाथालयों में भेजते हैं, ये पैसे अनाथालयों में रहने वाले लगभग 1,600 छात्रों को प्राथमिक शिक्षा प्रदान करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता रहा है.
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हालांकि जीवन में कुछ भी सरल नहीं है. अपने नेक इरादों के बावजूद, लोगनाथन को अपने वेल्डिंग शिफ्ट के बाद एक घंटे की नौकरी के लिए सभी जगह से आलोचना का सामना करना पड़ा. उन्होंने बताया, “मैं जो काम कर रहा था उससे दोस्त और परिवार खुश नहीं थे. कई लोगों ने मुझसे बात करना भी बंद कर दिया, लेकिन मैं इससे परेशान नहीं हुआ. मैंने एक घंटे में 50 रुपये की कमाई शुरू की और अब यह बढ़कर हर महीने 2,000 रुपये हो गया है जो अनाथालयों में जाता है. इस ऊंची सोच वाले व्यक्ति को दोस्तों के ताने, कलंक आदि काकभी कोई फर्क नहीं पड़ा और न ही कभी वे कमजोर पड़े. उनका मानना है कि शिक्षा सभी के लिए जरूरी है. अपने परिवार और उनकी सोच का समर्थन करने के लिए उन्होंने 2018 में अपनी वेल्डिंग की दुकान शुरू करने में कामयाब रहे, क्योंकि उनके कंपनी के लोग उनके शौचालय-सफाई की नौकरी से खुश नहीं थे. वो लोग मुझे काम से निकालना चाहते थे और मैं अपने परिवार और अनाथालयों के बिच संतुलन बनाए रखना चाहता था. मैं दोनों में से किसी एक को कभी नहीं चुन सकता था. उनकी दुकान उन्हें शौचालय की सफाई जारी रखने की सुविधा देती है और अब किसी की रोक टोक नहीं है.
सालों के अच्छे काम के बाद अब आलोचना फीकी पड़ गई और उनके परिवार के कई लोग उन पर गर्व महसूस करते हैं. उन्होंने बताया “मेरी बेटी अब 12 वीं कक्षा में पढ़ रही है और मेरा बेटा एमबीए कर रहा है. मुझे उम्मीद है कि मेरे जाने के बाद वे दूसरों की मदद करते रहेंगे. लोगानाथन का भविष्य में एक धर्मार्थ, शैक्षिक ट्रस्ट बनाने का सपना है ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि तमिलनाडु के गरीब बच्चों को धन की कमी के लिए शिक्षा से कभी समझौता न करना पड़े!
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लोगानाथन की प्रेरणादायक यात्रा इस बात की गवाही है कि कैसे एक आम आदमी सिर्फ बोलता नहीं बल्कि बदलाव ला रहा है. उन्होंने लोगों को बहुत बड़ा मैसेज दिया है कि कोई भी काम छोटा नहीं होता, छोटी आपकी सोच है.