Mangal Pandey 165th Death Anniversary: ‘मारो फिरंगियों को’ का हुंकार भरने वाले आजादी के प्रणेता मंगल पांडे को आज ही के दिन चुपचाप दे दी गई थी फांसी!
Mangal Pandey (Photo Credits: Wikimedia Commons)

भारत को अंग्रेजी हुकूमत से आजादी दिलाने का पहला श्रेय मंगल पांडे को जाता है. मंगल पांडे द्वारा लगाई आजादी की चिंगारी संपूर्ण भारत में दावानल की तरह ना फैल जाये, इस दहशत के कारण अंग्रेजी हुकूमत ने उन्हें मुकर्रर तिथि से दस दिन पहले यानी 8 अप्रैल 1857 को पश्चिम बंगाल के बैरकपुर जेल में फांसी पर लटका दिया था. आजादी के प्रणेता फिरंगियों के प्रबल शत्रु मंगल पांडे की 165वीं पुण्य तिथि पर आइये जानें इस महायोद्धा की महागाथा...

मंगल पांडे का जन्म 19 जुलाई 1827 को बलिया के निकट नगवा गांव में सरयुपारी ब्राह्मण के घर पर हुआ था. उनके पिता दिवाकर पांडे और मा अभय रानी पांडे थीं. 1849 में 22 साल की आयु में उन्होंने ईस्ट इंडिया कंपनी की 34वीं बंगाल नेटिव इन्फेंट्री में सिपाही की नौकरी कर ली थी, लेकिन हालात कुछ ऐसे बने कि ब्रिटिश हुकूमत का यह छोटा सा सिपाही पूरे ब्रिटिश हुकूमत का दुश्मन बन गया.

विद्रोह की कलम से आजादी की इबारत लिखने की कोशिश!

साल 1850 में ब्रिटिश सिपाहियों के लिए एनफील्ड राइफल दिया गया. यह 0.577 की बंदूक थी और दशकों पुरानी ब्राउन बैस के मुकाबले शक्तिशाली और अचूक थी. एनफ़ील्ड बंदूक भरने के लिए कारतूस को दांतों से काटकर खोलना पड़ता था. उसमे भरे बारूद को बंदूक की नली में भरने के बाद कारतूस डालते थे. कारतूस के खोल में चर्बी होती थी, जो उसे पानी के सीलन से बचाती थी. तभी खबर मिली की कारतूस की चर्बी सूअर और गाय के मांस से बनी है. सिपाहियों को लगा कि ब्रिटिश हुकूमत सोची-समझी साजिश के तहत हिंदू-मुसलमानों के धर्म से खिलवाड़ कर रही है. मंगल पांडे ने कारतूस का इस्तेमाल करने से मना कर दिया. यह भी पढ़ें : Kamada Ekadashi 2022: राक्षसी-योनि से मुक्ति दिलाने वाली कामदा एकादशी! जानें क्या है इसका महात्म्य, पूजा विधि एवं व्रत-कथा?

जब अकेले पड़े मंगल पांडे!

29 मार्च 1857 को बैरकपुर परेड मैदान कलकत्ता के निकट रेजीमेंट के अफसर लेफ्टिनेंट बाग द्वारा जोर-जबर्दस्ती किये जाने पर मंगल पांडे ने उन पर हमला कर दिया. ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ किसी भी सैनिक (मंगल पांडे) का यह पहला विरोध था. जनरल हेयरसेये ने मंगल पांडे पर धार्मिक उन्माद का आरोप लगाते हुए सिपाहियों से तुरंत उन्हें गिरफ्तार करने का आदेश दिया. लेकिन सभी ने मंगल पांडे को गिरफ्तार करने से मना कर दिया. मंगल पांडे ने ‘मारो फिरंगियों को’ का हुंकार भरते हुए सिपाहियों से ब्रिटिश हुकूमत का विरोध करने के लिए कहा, लेकिन सारे सिपाही मूक बने खड़े रहे. लेकिन मंगल पांडे ने हथियार उठा लिया था, उन्होंने सार्जेंट मेजर ह्यूसन को गोली मार दी. इसके बाद लेफ्टिनेंट वाग आगे बढ़ा, तो मंगल पांडे ने उसे भी गोली मारकर जख्मी कर दिया. पुलिस मंगल पांडे को गिरफ्तार करने आगे बढ़ी, उससे पहले ही मंगल पांडे ने खुद को गोली मार ली, परंतु घाव गहरा नहीं था. उन्हें गिरफ्तार कर उन पर कोर्ट मार्शल कर 18 मार्च को फांसी पर चढ़ाने की सजा दी गयी.

अंग्रेजों में दहशत और जब जल्लाद ने मंगल पांडे को फांसी देने से मना किया!

ब्रिटिश हुकूमत को कोर्ट मार्शल द्वारा मंगल पांडे को फांसी के लिए 18 अप्रैल की तारीख लंबी लग रही थी. उन्हें भय था कि इन दस दिनों में मंगल पांडे को लेकर अगर देश भर में स्थिति विस्फोटक होती है, तो उसे संभालना मुश्किल हो जायेगा. उधर जल्लाद ने भी मंगल पांडे को फांसी देने से मना कर दिया था. खैर बाद में जल्लाद पर दबाव डालकर उसे तैयार कर लिया गया. और ब्रिटिश अधिकारियों की मिली भगत से मंगल पांडे को 10 दिन पहले यानी 8 अप्रैल 1857 को चुपचाप फांसी पर चढ़ा दिया गया.

इतिहासकारों का मानना है कि अगर बैरकपुर छावनी में शेष सिपाहियों ने मंगल पांडे का साथ दिया होता तो भारत की आजादी की तस्वीर कुछ और होती. यद्यपि मंगल पांडे की शहादत व्यर्थ नहीं गई. मंगल पांडे को चुपचाप दी गई फांसी अगले ही दिन एक चिंगारी बनकर पूरे भारत में दावानल की तरह फैल चुकी थी. लोगों के मन में अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ विद्रोह और विरोध का सिलसिला शुरु हो चुका था, जिसकी परिणति 1947 को आजाद भारत के रूप में हुई.