Pitru Paksha 2019: वेद पुराणों में पितृपक्ष के सभी दिनों के विशेष महात्म्य का उल्लेख है, लेकिन आश्विन माह के कृष्णपक्ष की नवमी के दिन किए जानेवाले मातृनवमी को सर्वश्रेष्ठ श्राद्ध बताया गया है. अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार इस बार मातृनवमी 22 सितंबर को है. सनातन धर्म के अनुसार कोई भी पूर्वज जिस तिथि में मृत्यु को प्राप्त होता है, हिंदी पंचांग के अनुसार उसी तिथि (पितृपक्ष काल में) के दिन श्राद्ध करने का विधान है. लेकिन नवमी तिथि की खास बात यह है कि घर की घर की महिला सदस्य किसी भी तिथि के दिन मृत्यु को प्राप्त हुई हो, लेकिन उन सभी का श्राद्ध पितृपक्ष की नवमी तिथि के दिन किया जाता है. इसे ही मातृनवमी कहते हैं. जिस प्रकार बेटे अपने पिता और पूर्वजों के पितृपक्ष में तर्पण करते हैं. उसी तरह पुत्र वधुएं भी अपनी सास अथवा मां के पितृपक्ष की प्रतिपदा से लेकर नवमी तक तर्पण कार्य करती हैं.
मातृनवमी के दिन पुत्र वधुएं अपनी दिवंगत सास के लिए व्रत रखती हैं. ज्योतिषियों के अनुसार मातृनवमी को सौभाग्यवती श्राद्ध भी कहा जाता है. शास्त्रों के अनुसार नवमी तिथि का श्राद्ध करनेवालों को जीवन भर धन, संपत्ति एवं ऐश्वर्य की प्राप्ति होती रहती है, एवं वे अखण्ड सौभाग्यवती बनी रहती है. इस दिन पितरों के नाम पर गरीबों एवं ब्राह्मणों को भोजन कराने से सभी मातृशक्तियों का आशीर्वाद प्राप्त होता है.
सौभाग्यवती महिलाएं ऐसे करें सास का श्राद्ध
प्रातःकाल सूर्योदय से पूर्व स्नान-ध्यान से निपट कर दक्षिण दिशा में गहरे हरे रंग का वस्त्र बिछाकर उस पर सभी पूर्वजों के चित्र रखें. चित्र उपलब्ध नहीं हों तो उनके नाम की सुपारी रखें. उनके सामने तिल के तेल का दीपक जलाएं. सुगंधित धूप अथवा अगरबत्ती का धुआं उऩ्हें दिखाएं. इसके पश्चात शुद्ध जल में मिश्री एवं तिल डालकर पूर्वजों के नाम के साथ तर्पण करें. परिवार की दिवंगत सास का श्राद्ध कर रही हैं तो उनके लिए गीले आटे का बड़े आकार का दीया बनाएं. अब उसमें तिल का तेल डालकर उसे प्रज्जवलित करें. इसके पश्चात दिवंगत सास की तस्वीर अथवा प्रतीक स्वरूप रखी सुपारी पर गोरोचन एवं तुलसी चढ़ाएं. इस बात का विशेष ध्यान रखें कि श्राद्ध करने वाले को कुश के बने आसन पर बैठना चाहिए. तुलसी अर्पित करने के पश्चात भगवद्गीता के नवें अध्याय का पाठ करें और दूसरों को भी सुनाएं.
गरीबों या ब्राह्मणों को भोजन-दान दक्षिणा के साथ विदा करें
गरीबों अथवा ब्राह्मणों को अपनी सामर्थ्यनुसार संख्या के अनुरूप आमंत्रित करें. उनके पैर धोकर उन्हें भोजन करायें. भोजन में मुख्यतया लौकी की खीर, पालक की सब्जी, मूंग दाल, पूरी, दही, हरे फल, लौंग, इलायची तथा मिश्री परोसें. भोजन के बाद सभी को यथाशक्ति वस्त्र-दान-दक्षिणा आदि देकर उनकी विदाई करें. शास्त्रों में यह भी उल्लेखित है कि मातृनवमी के दिन सुहागन स्त्रियों को सुहाग सामग्री भी दान करना चाहिए.
मृत्योपरांत महिलाएं भी पुरूष रूप में आकर पितरों में मिल जाती हैं
इस दिन सुहागन स्त्रियों को भोजन करवाने से परिवार में मृत स्त्रियों की आत्मा तृप्त हो जाती है. पुराणों में यह भी उल्लेखित है कि देह त्यागने के बाद महिलाएं पुरूष रूप धारण कर पितरों में शामिल हो जाती हैं. पितर देवताओं के समान प्रभावशाली होते हैं. कुण्डली में ग्रह-नक्षत्र अच्छी स्थिति में होने के बावजूद पितृगणों के नाराज होने पर कोई भी ग्रह शुभ फल नहीं देते. जो महिलाएं मृत्यु के बाद पितर बनती हैं, वह मातृनवमी के दिन किसी न किसी रूप में अपने परिवार के बीच जरूर आती हैं.
विशेष मुहूर्त में करें श्राद्ध
पितृपक्ष पर श्राद्ध के लिए सबसे सही समय कुटुप मुहूर्त और रोहिणा होता है. मुहूर्त के शुरू होने के बाद अपराह्न काल के खत्म होने के मध्य किसी भी समय श्राद्ध कार्य सम्पन्न कर ब्राह्मण की विदाई कर सकती हैं. ध्यान रहे कि श्राद्ध के अंत में तर्पण क्रिया अवश्य करें.