Hajj 2021: दुनिया भर के मुसलमानों को हज यात्रा (Hajj Yatra) का बेसब्री से इंतजार रहता है. इस्लाम धर्म की वार्षिक तीर्थयात्रा यानी हज यात्रा इसी महीने सऊदी अरब (Saudi Arabia) में शुरू होगी. हालांकि कोरोना वायरस महामारी (Coronavirus Pandemic) के मद्देनजर सऊदी अरब में अधिकतम 18 से 65 साल के उम्र के 60, 000 टीकाकरण वाले मुस्लिम नागरिक ही यात्रा के लिए जा सकेंगे. कोरोना संकट (Corona Crisis) को देखते हुए इस साल किसी भी विदेशी मुस्लिम को यात्रा की इजाजत नहीं है. इस्लाम धर्म की मान्यताओं के अनुसार, हज यात्रा इस्लाम के पांच स्तंभों में से एक है. कहा जाता है कि आर्थिक रूप से स्थिर और शारीरिक रूप से स्वस्थ सभी मुसलमानों को अपने जीवनकाल में कम से कम एक बार हज करना चाहिए.
हज 2021 कब है या कब से हो रहा है शुरू?
हज यात्रा इस्लामी चंद्र कैलेंडर के बारहवें और अंतिम महीने धू अल-हिज्जा (Dhul al-Hijjah) के 8वें दिन पड़ता है. सऊदी अरब के सुप्रीम कोर्ट मुताबिक, धू अल-हिज्जा महीना 11 जुलाई से शुरु हुआ है, इसलिए हज 2021 की शुरुआत 18 जुलाई से होगी, लेकिन 17 जुलाई को ही सूर्यास्त के बाद तीर्थयात्रा सबंधी रस्में शुरु हो जाएंगी. यह भी पढ़ें: Eid al-Adha 2021: देश भर में 21 जुलाई को मनाई जाएगी बकरीद, चांद दिखने बाद दिल्ली जामा मस्जिद के इमाम का ऐलान
हज अनुष्ठान और महत्व
हज की शुरुआत में मुस्लिम तीर्थयात्री इहराम पहनते हैं, जो पुरुषों के लिए दो सफेद निर्बाध वस्त्र और महिलाओं के लिए सामान्य पोशाक है. इहराम अल्लाह के सामने सभी तीर्थयात्रियों की समानता का प्रतीक है, जिसमें अमीर और गरीब के बीच कोई अंतर नहीं है. ऐसा माना जाता है कि इहराम के दान के साथ, तीर्थयात्री पवित्रता की स्थिति में प्रवेश करते हैं. एक बार जब वे इहराम पहन लेते हैं तो हज यात्री इत्र का उपयोग नहीं कर सकते हैं. अपने नाखून नहीं काट सकते हैं, अपने बाल या दाढ़ी नहीं काट सकते हैं और यौन गतिविधियों में शामिल नहीं हो सकते हैं.
पहले दिन (8वें धू अल-हिज्जा) तीर्थयात्रियों को तीर्थयात्रा करने के अपने इरादे की पुष्टि करने की आवश्यकता होती है, फिर वे मक्का में काबा के चारों ओर सात बार तवाफ (चलना) करते हैं. वे सफा और मारवाह की पहाड़ियों के बीच सात बार (तेज चलना) चलते हैं.
दूसरे दिन सुबह की प्रार्थना के बाद, तीर्थयात्री मीना से अराफात पर्वत तक पहुंचने के लिए प्रस्थान करते हैं, जहां वे प्रार्थना करते हैं, पश्चाताप करते हैं और अपने पिछले पापों का प्रायश्चित करते हैं और अल्लाह की दया चाहते हैं. वे जबाल अल-रहमा (दया का पर्वत) के पास इकट्ठे होते हैं. अराफात में दोपहर बिताने की रस्म को 'भगवान के सामने खड़ा होना' (वुकुफ) के रूप में जाना जाता है. सूर्यास्त के आसपास, तीर्थयात्री अराफात और मीना के बीच के क्षेत्र मजदलिफा की ओर बढ़ते हैं.
वहां पहुंचकर वे संयुक्त रूप से मगरिब और ईशा की नमाज अदा करते हैं, रात को नमाज अदा करते हैं और आसमान के नीचे जमीन पर सोते हैं. वे अगले दिन शैतान को पत्थर मारने की रस्म के लिए कंकड़ भी इकट्ठा करते हैं. तीसरे दिन तीर्थयात्री शैतान (रामी अल-जमरत) (Ramy al-Jamarat) पर प्रतीकात्मक पत्थरबाजी करते हैं. इस दौरान तीर्थयात्री सूर्योदय से सूर्यास्त तक केवल तीन स्तंभों में से सबसे बड़े पर सात पत्थर फेंकते हैं, जिन्हें जमरत अल-अकाबा (Jamrat al-Aqabah) के नाम से जाना जाता है. यह भी पढ़ें: Bakra Eid Moon Sighting 2021, Chand Raat Updates: देश में 21 जुलाई को मनाई जाएगी ईद- शाही इमाम
हज का तीसरा दिन ईद अल-अधा (Eid al-Adha) त्योहार के साथ मेल खाता है, इसलिए तीर्थयात्री ईद अल-अधा पर पशु बलिदान की परंपरा निभाते हैं. उसी दिन या अगले दिन तीर्थयात्री एक और तवाफ के लिए काबा जाते हैं, जिसे तवाफ अल-इफदाह (Tawaf al-Ifadah) के नाम से जाना जाता है और सफा व मारवाह की पहाड़ियों के बीच आगे-पीछे होते हैं. फिर वे मीना लौट जाते हैं.
चौथे दिन तीर्थयात्री फिर से मीना में तीन स्तंभों में से प्रत्येक पर सात कंकड़ फेकते हैं. पांचवें दिन भी यही अनुष्ठान किया जाता है. हज के आखिरी दिन मक्का छोड़ने से पहले तीर्थयात्री विदाई तवाफ करते हैं, जिसे तवाफ अल-वादा (Tawaf al-Wadaa) कहा जाता है.