Shivaji Maharaj Jayanti 2019: छत्रपति शिवाजी महाराज के ‘गुरिल्ला युद्ध’ से खौफ खाती थी मुगल सेना, जानें इस महान शासक से जुड़ी कुछ अनोखी बातें
शिवाजी महाराज (Photo Credits: Youtube.com)

Shivaji Maharaj Jayanti 2019: भारत आदिकाल से वीरों और वीरांगनाओं का देश रहा है. इस देश ने अनेक पराक्रमी और शूरवीर योद्धा पैदा किये, जिन्होंने समय-समय पर अपनी कुशल रणनीति से देश की सुरक्षा, आन, बान और शान के लिए दुश्मनों के छक्के छुड़ाए. ऐसे ही जांबाज और चतुर योद्धा थे छत्रपति शिवाजी महाराज. जिन्होंने भारत में मराठा साम्राज्य की नींव रखी थी, शिवाजी जितने बहादुर थे, उतने ही कुशल रणनीतिकार भी थे. मुगल बादशाहों की सेना के सामने जब उनकी सेना की संख्या कम होती तो वह शुक्राचार्य और कौटिल्य के आदर्श को ध्यान में रखते हुए ‘गुरिल्ला युद्ध’ करने से भी बाज नहीं आते थे. उनकी इस रणनीति से अकसर दुश्मन सेना के पास भागने अथवा आत्मसमर्पण करने के अलावा कोई रास्ता नहीं रहता था. आखिर क्या है ‘गुरिल्ला युद्ध’?, कैसे और कब शुरु हुई युद्ध की यह परंपरा? और कैसे इसका संचालन करते थे छत्रपति शिवाजी महाराज?

क्या है गुरिल्ला युद्ध

गुरिल्ला युद्ध का सिद्धांत है घात लगाकर अचानक दुश्मन पर टूट पड़ो, उन्हें खत्म करो और भाग जाओ. अकसर ये टुकड़ियों में होते थे, और ज्यादा सामान वगैरह लेकर नहीं चलते थे. गुरिल्ला युद्ध का मुख्य उद्देश्य दुश्मनों की सेना के मनोबल को तोड़ना और अपनी सेना के लिए धन इकट्ठा करना होता था. इनका आवास अकसर बीहड़ों में उस जगह होता, जहां किसी इंसान के होने की कल्पना भी नहीं की जा सकती. इस चक्कर में अकसर इन्हें कई रात भूखे भी रहना पड़ता था, लेकिन इससे इनकी संकल्प शक्ति प्रभावित नहीं होती थी.

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कब शुरु हुआ गुरिल्ला युद्ध

‘गुरिल्ला युद्ध’ को ही ‘छापामार युद्ध’ भी कहते हैं. सामान्य युद्धों की तरह ‘गुरिल्ला युद्ध’ का भी प्रचलन बना. कहा जाता है कि सबसे पहला ‘गुरिल्ला युद्ध’ लगभग 360 साल पहले चीन में सम्राट हुआंग ने अपने शत्रु सी याओ के विरुद्ध लड़ा था, जिसमें सी याओ को हार का सामना करना पड़ा था. इसके पश्चात इंग्लैंड में भी ‘गुरिल्ला युद्ध’  का वर्णन मिलता है. प्राप्त सूत्रों के अनुसार हिंदुस्तान में ‘गुरिल्ला युद्ध’ की शुरुआत 17 वीं शताब्दी के अंत में हुआ था. शांता जी घोरपड़े और धानाजी जाधव नामक सरदार ने ‘गुरिल्ला युद्ध’ कर तमाम मुगल बादशाहों की नींद हराम कर रखी थी. छोटे दस्तों के साथ गुरिल्ला आक्रमण उस समय होता जब दुश्मन सैनिकों को इसकी उम्मीद तक नहीं रहती थी. इस युद्ध में अकसर दुश्मन सैनिकों के पास जान बचाकर भागने के अलावा और कोई विकल्प नहीं होता था.

शिवाजी और उनकी ‘गुरिल्ला युद्ध’

19 फरवरी 1630 को जुन्नर (पुणे) के शिवनेरी दुर्ग में जन्में शिवाजी महाराज को शूरवीरता विरासत में मिली थी. असाधारण प्रतिभाशाली माँ जीजाबाई ने अपने आराध्य देव भगवान शिव के नाम पर इनका नाम शिवाजी रखा था. पिता शाहजी भोसले के ज्यादातर कर्नाटक रहने के कारण शिवाजी का ज्यादातर जीवन माँ जीजाबाई के साथ बीता. जीजामाता के सानिध्य में उन्होंने बचपन से ही युद्ध की हर कला और राजनीति की शिक्षा हासिल कर ली थी. चुस्ती, चालाकी और शूरवीरता उन्हें पिता से विरासत में मिली थी. शिवाजी एक महान और बहुत शक्तिशाली योद्धा थे. युद्ध के मैदान में उनसे लोहा लेने की जुर्रत किसी राजा में नहीं होती थी, लेकिन जरूरत पड़ने पर उन्होंने थोड़े सैनिकों के साथ ‘गुरिल्ला युद्ध’  कर मुगलों की भारी-भरकम सेना में तबाही भी मचाई. यह उनके युद्ध की रणनीति का एक हिस्सा होता था. जिससे मुगल बादशाह और सैनिक दहशतजदा रहते थे.

शाइस्ता खान को शिवाजी ने तबाह कर दिया

इतिहास बताता है कि मुगल बादशाहों को सबसे ज्यादा दहशत शिवाजी से रहती थी. इसलिए उनकी नजर हमेशा शिवाजी पर रहती थी. शिवाजी की बढ़ती शक्ति पर अंकुश रखने के लिए एक बार औरंगजेब ने अपने मामा शाइस्ता खान को करीब 1,50,000 मुगल सैनिकों के साथ उनके पीछे भेजा. शाइस्ता खान सूपन और चाकन के दुर्ग पर लूटपाट और कब्जा करते हुए मावल पहुंचा और वहां भी उसने खूब लूटमार की. उस समय शिवाजी अपने 350 मावलों के साथ मावल में ही छिपे थे. एक रात शिवाजी ने अपनी इस छोटी-सी टुकड़ी के साथ अचानक छापामार शैली में शाइस्ता खान पर आक्रमण कर दिया.

इस युद्ध में शाइस्ता खान तो जानबचा कर भागने में सफल हो गया, हालांकि मावलों ने उसके हाथों की उंगलियां काट लीं थी साथ ही शाइस्ता खान के पुत्र, चालीस रक्षकों और अनगिनत सैनिकों को भी मावलों ने मौत की घाट उतार दिया था. अपनी सेना की छोटी-सी टुकड़ी के सहारे शिवाजी ने कई बार गुरिल्ला युद्ध कर दुश्मनों के छक्के छुड़ाये. 1666 में एक बार शिवाजी महाराज को औरंगजेब ने धोखे से आगरा में बुलाकर कैद कर लिया. उनके इर्द-गिर्द 500 सैनिकों का कड़ा पहरा बिठा दिया. वास्तव में औरंगजेब ने यहीं पर शिवाजी की हत्या का षड़यंत्र रचा था. लेकिन अपने चतुर रणकौशल के सहारे एक बार फिर शिवाजी औरंगजेब की कैद से निकलने में सफल रहे. कहा जाता है कि यहां भी उन्होंने मुट्ठी भर सैनिकों के साथ गुरिल्ला युद्ध के सहारे ही औरंगजेब की कैद से निकलने में सफल हुए थे.

कट्टर नहीं थे शिवाजी महाराज

बहादुरी और मानवता के प्रतीक शिवाजी महाराज ने अपने सैनिकों को विशेष रूप से चेतावनी दे रखी थी कि उनके किसी भी युद्ध में आम नागरिकों को नुकसान नहीं होना चाहिए, वह चाहे हिंदू हो या मुसलमान. कुछ लोग शिवाजी को मुसलमान विरोधी मानते थे, जबकि सच यह है कि उनकी सेना में कई मुस्लिम सरदार और सुबेदार भी थे, जो उनके प्रति काफी निष्ठावान थे.