Chitragupta Jayanti 2019: धनतेरस के पांचवे दिन अर्थात भाई दूज के दिन कायस्थ समाज अपने इष्टदेव श्री चित्रगुप्त जी महाराज की पूजा अर्चना भी करते हैं. इस दिन मूलतः कलम-दवात की पूजा की जाती है. मान्यता है कि चित्रगुप्त जी की पूजा करने से साहस, शौर्य और ज्ञान की प्राप्ति होती है, क्योंकि चित्रगुप्त जी को ज्ञान का देवता भी माना जाता है. वस्तुतः श्रीचित्रगु्प्त जी ब्रह्मा के पुत्र बताये जाते हैं.
कार्तिक मास के शुक्लपक्ष की द्वितिया को महाराज श्री चित्रगुप्त जी महाराज की पूजा की परंपरा वर्षों से चली आ रही है. इस दिन कायस्थों द्वारा श्रीचित्रगुप्त जी के साथ ही पुस्तक, कलम, दवात एवं बहीखातों की पूजा की जाती है. विभिन्न पुराणों के अनुसार चित्रगुप्त जी की पूजा करने से विष्णुलोक की प्राप्ति होती है.
श्रीचित्रगुप्त जी का महात्म्य:
मिथ्य एवं पुराणों के अनुसार धर्मराज चित्रगुप्त मनुष्यों के पाप-पुण्य का लेखा-जोखा करने वाले सृष्टि के पहले न्यायाधीश हैं. आधुनिक विज्ञान ने यह सिद्ध किया है कि हमारे मन में जो भी विचार आते हैं वे सभी चित्रों के रूप में होते हैं. भगवान चित्रगुप्त इन विचारों के चित्रों को गुप्त रूप से संचित करके रखते हैं. अंत समय में ये सभी चित्र दृष्टिपटल पर रखे जाते हैं. इसी आधार पर जीवों के पारलोक व पुनर्जन्म का निर्णय सृष्टि के प्रथम न्यायाधीश भगवान चित्रगुप्त करते हैं. विज्ञान ने यह भी सिद्ध किया है कि मृत्योपरांत जीव का मस्तिष्क कुछ समय कार्य करता है. इस दौरान जीवन में घटित हर घटना के चित्र मस्तिष्क में चलते रहते हैं. इसे ही हमारे वेदों में लिखा गया है.
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जिस प्रकार शनि देव सृष्टि के प्रथम दण्डाधिकारी हैं भगवान चित्रगुप्त सृष्टि के प्रथम न्यायाधीश हैं उन्हें न्याय का देवता माना जाता है. मनुष्यों की मृत्यु के पश्चात, पृथ्वी पर उनके द्वारा किए गये कार्यों के आधार पर उनके लिए स्वर्ग या नरक का निर्णय लेने का अधिकार चित्रगुप्त के पास है, अर्थात किसे स्वर्ग मिलेगा और कौन नरक में जाएगा? इस बात का निर्धारण चित्रगुप्त द्वारा ही किया जाता है. चित्रगुप्त महाराज भारत और नेपाल की हिंदू कायस्थ जाति के जनक देवता बताये जाते हैं.
श्रीचित्रगुप्त पूजा का विधान:
कार्तिक मास के शुक्लपक्ष की द्वितिया के दिन प्रातःकाल उठकर सूर्योदय से पूर्व स्नान कर नया वस्त्र धारण करें. अब एक पाटले को धोकर उस पर गंगाजल छिड़क कर उसे पवित्र कर लें. इस पर लाल रंग का नया वस्त्र बिछाएं. अब इस पर श्रीचित्रगुप्त जी की प्रतिमा अथवा तस्वीर स्थापित करें. इस तस्वीर के साथ ही श्रीगणेश जी की भी तस्वीर अवश्य रखें. सर्वप्रथम गणेश जी की पूजा करनी चाहिए. अब श्री चित्रगुप्त जी की प्रतिमा को पहले पंचामृत से फिर गंगाजल से स्नान करायें. अब इनके मस्तक पर रोली, चंदन और अक्षत का तिलक लगाएं, अक्षत का छिड़काव करें. तत्पश्चात लाल पुष्प की माला पहनाकर धूप एवं दीप प्रज्जवलित करें. पाटले पर ही एक तरफ भोग के लिए मिष्ठान एवं पुस्तक, कलम, दवात एवं नया बहीखाता रखें. यह पूजा परिवार द्वारा सामूहिक रूप से की जाती है.
अब परिवार के सभी सदस्य भूमि पर बैठकर एक सफेद पेपर और दवात अपने पास रखें. सर्वप्रथम सफेद पेपर पर हल्दी पानी के घोल से भगवान श्री चित्रगुप्त जी के चित्र का रेखांकन करें. इनके मस्तक पर भी रोली का तिलक लगाएं. इसके पश्चात इसी पेपर पर पहले श्रीगणेशाय नमः लिखें इसके पश्चात श्री चित्रगुप्ताय नमः लिखें. श्रद्धालु चाहें तो अपने अन्य इष्ट देवता एवं देवियों का नाम भी लिख सकते हैं. अब श्रीचित्रगुप्त जी की पूजा-अर्चना करते हुए निम्न मंत्रों का उच्चारण करते हुए श्रीचित्रगुप्त जी से प्रार्थना करें कि पूजा अर्चना में अगर कोई त्रुटि हो गयी है तो छमा करें, और हमारे सारे कष्टों का हरण करें. पढे जाने वाले मंत्र हैं
मसीभाजन संयुक्तश्चरसि त्वम्! महीतले
लेखनी कटिनीहस्त चित्रगुप्त नमोस्तुते
चित्रगुप्त! मस्तुभ्यं लेखकाक्षरदायकं
कायस्थजातिमासाद्य चित्रगुप्त! नमोस्तुते
चित्रगुप्त जी की पारंपरिक कथा
प्राचीनकाल में सौदास नामक एक राजा थे. अपने राज्य में वह किसी को भी किसी भी देवता का पूजा-अर्चना, हवन, यज्ञ, धार्मिक समारोह आदि नहीं करने देता था. ऐसा करते कोई पकड़ा जाता तो उसे कठिन दण्ड दिया जाता था. इससे प्रजा बहुत दुःखी थी. प्रजा को निरंतर कष्ट देने के कारण बहुत जल्दी राजा सौदास भी पागल होकर राज पाट छोड़कर इधर-उधर भटकने लगा. एक बार यम द्वितिया के दिन सभी लोग चित्रगुप्त जी की पूजा के लिए मंदिर जा रहे थे. तभी पागल राजा वहां आ धमका. उसे देख सभी लोग वहां से भागने लगे. इस वजह से उनके पूजा की सारी सामग्री वहीं छूट गयी थी. राजा ने पागलपन में ही पूजा की सारी सामग्री श्रीचित्रगुप्त जी पर चढ़ा दी. इसके कुछ ही दिनों बाद उसकी मृत्यु हो गयी. मृत्यु के पश्चात जब राजा के कर्मों का लेखा जोखा किया गया, तो चित्रगुप्त पूजा के अलावा उसने कोई शुभ कर्म ही नहीं किया था. लेकिन राजा ने जो अनजाने में श्रीचित्रगुप्त जी की पूजा-अर्चना की थी, यह देख श्रीचित्रगुप्त जी ने यमदूतों से कहा कि इसे ले जाकर विष्णुलोक में छोड़ दो. उन्होंने राजा को विष्णुलोक भेज दिया.
शुभ मुहूर्त 29 अक्टूबर 2019
पूजा का समय अपराह्न 1.11 मिनट से 3.25 मिनट तक
आज पूजा पूरी करने के पश्चात श्रीचित्रगुप्तजी की आरती उतारें और इसके पश्चात अपने बहियों को भी आरती दिखाएं. अंत में श्रीचित्रगुप्त जी को भोग लगाएं और भोग को प्रसाद के तौर पर वितरित कर स्वयं भी प्रसाद ग्रहण करें.