भारत अलग- अलग जाति और संस्कृतियों वाला देश है. ये अध्यात्म और आस्था का केंद्र है. यहां हर राज्य के अपने रिती-रिवाज होते हैं. सभी धर्मों में हिंदू धर्म सबसे पौराणिक धर्म है, इस धर्म में पूजा, यज्ञ, हवन आदि आयोजित किए जाते हैं. उसी तरह कुंभ मेला भी भारत की संस्कृति का एक हिस्सा है. सदियों से कुंभ मेले में स्नान की प्रथा चली आ रही है. ऐसी आस्था है कि कुंभ में स्नान करने से सारे पाप धूल जाते हैं और मृत्यु के बाद मोक्ष की प्राप्ति होती है. कुंभ भारत में ही नहीं दूसरे देशों में भी इतना प्रसिद्द हो चुका है कि विदेशों से लोग सात समंदर पार कर कुंभ में स्नान करने आते हैं. हर जगह कुंभ मेले का आयोजन नहीं होता, शास्त्रों के अनुसार कुंभ सिर्फ चार जगह पर ही लगते हैं. पौराणिक कहानी के अनुसार समुद्र मंथन के बाद जो अमृत निकला था उस अमृत को लेकर देवताओं और दानवों में युद्द छिड़ गया था. अमृत की छीनाझपटी में चार जगहों पर अमृत गिर गया था. जिन- जिन जगहों पर अमृत गिरा था वहां कुंभ लगता है. नाशिक (Nashik) का गोदावरी तट, उज्जैन (Ujjain) में शिप्रा नदी का तट, हरिद्वार (Haridwar) में गंगा तट और प्रयाग (Prayagraj) में संगम तट. कुंभ हर बारह साल में एक बार लगता है और अर्ध कुंभ 6 साल में लगता है.
साल 2019 में अर्धकुंभ का आयोजन होने वाला है. अर्ध कुंभ 14 जनवरी से 4 मार्च तक चलेगा. इसके बाद तीन साल बाद 2022 में हरिद्वार में कुंभ आयोजित होगा. 2025 में प्रयाग संगम में महा कुंभ और 2027 नाशिक में कुंभ मेले का आयोजन होगा. आइए आपको बताते हैं 2019 में कुंभ स्नान की प्रमुख तिथियां.
दिनांक | तिथि |
15 जनवरी 2019 | प्रथम शाही स्नान (मकर संक्रांति ) |
21 जनवरी 2019 | पौष पूर्णिमा |
4 फरवरी 2019 | मौनी अमावस्या (द्वितीय तथा मुख्य शाही स्नान ) |
10 फरवरी 2019 | बसंत पंचमी (तृतीय शाही स्नान) |
19 फरवरी 2019 | माघ पूर्णिमा |
4 मार्च 2019 | महा शिवरात्रि |
कुंभ मेले में सबसे प्राथमिक अनुष्ठान स्नान ही है. स्नान का पौराणिक महत्त्व है यह स्वर्ग और मुक्ति से जुड़ा है. स्नान के दिन श्रद्धालू सुबह तीन बजे से ही लाइन में लग जाते हैं. सभी साधुओं में नागा साधुओं को स्नान करने का सबसे पहले सौभाग्य मिलता है. स्नान के बाद नए और पवित्र कपड़े पहनकर घाट पर पूजा की जाती है.