Chhath Puja 2019: प्रकृति-प्रेम का प्रतीक है छठ पूजा, दुनिया का अकेला पर्व जहां पुत्री-रत्न की कामना की जाती है- जानें और भी रोचक बातें
छठ पूजा (File Image)

‘छठ मइया’ (Chhath Puja 2019) का महापर्व हिंदू धर्म का इकलौता पर्व है, जिसमें उगते और ढलते दोनों ही सूर्य की आराधना करते हैं. इस महापर्व पर निष्ठा और आस्था के साथ प्रकृति की पूजा की जाती है. यह इकलौता पर्व है, जिसमें मौसमी फलों एवं हरी सब्जियों की भी पूजा होती है. इस पर्व में जिस तरह नदी में उतरकर सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है, उस वजह से कुष्ठ जैसे खतरनाक चर्म रोगों से भी मुक्ति मिलती है. आइये जानें छठ मइया के पर्व से जुड़ी कुछ और खास बातें...

छठ मइया की पूजा करने वाले व्रतियों की छठ पर्व पर अगाध श्रद्धा और आस्था होती है. उनका विश्वास है कि इस पर्व के दिन व्रती भगवान सूर्य से जो भी कामना करता है, सूर्य देव की कृपा से वह अवश्य पूरी होती है. सूर्य देव एवं छठ मइया की पूजा वाले इस पर्व की परंपरा त्रेतायुग से चली आ रही है. भविष्य पुराण एवं मार्कण्डेय पुराण में भी इस व्रत का उल्लेख है.

* इस महापर्व पर डूबते और उगते सूर्यों को अर्घ्य देने के पीछे एक आस्था यह है कि सूर्यदेव की दो पत्नियां हैं– ऊषा और प्रत्युषा. भोर की किरण ऊषा और सांझ की प्रत्युषा. इस तरह हम दोनों पत्नियों की भी वंदना कर लेते हैं.

* हिंदू धर्म कथाओं के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण के पुत्र साम्ब कुष्ठ रोग से पीड़ित थे. इससे मुक्ति पाने के लिए उन्होंने सूर्य देव की विधिवत आराधना की और शीघ्र ही इस खतरनाक बीमारी से मुक्ति पा गये.

* महापर्व छठ पर उपवासी को लगभग 40 घंटे का निर्जल उपवास रखना होता है, इस दरम्यान रात में जमीन पर सोना, नंगे पांव रहना, गृहस्थ जीवन से दूर रहने जैसी जटिलता को देखते हुए प्राचीनकाल के ऋषि-मुनियों ने इसे हठयोग का नाम दिया था.

* छठ पर्व पर प्रकृति प्रदत्त सामग्री नीबू, गन्ना, गुड़, मूली, नारियल, केला, साठी (एक विशेष प्रकार का चावल) और गेहूं से बने प्रसाद चढाए जाते हैं, इसके अलावा नदियों में खड़े होकर पूजा की जाती है.

* ऋग्वेद में सूर्योपासना का उल्लेख मिलता है, किंतु छठ जैसे महापर्व का विस्तृत उल्लेख भविष्य पुराण एवं महाभारत से स्पष्ट रूप से देखने को मिलता है. हिंदू धर्म का यह इकलौता पर्व है, जिसमें पुरुष प्रधान समाज में भी सूर्यदेव से पुत्री प्राप्ति की कामना की जाती है. इसका सबल प्रमाण यही है कि इस पर्व के लोकगीतों में रुनकी, झुनकी बेटी मांगिला, पढ़ल पंडितवा दमाद जैसे शब्दों का प्रयोग देखने को मिलता है.

* छठ के इस महापर्व पर रात्रि के समय मिट्टी निर्मित हाथी की भी पूजा की जाती है, जो पशु प्रेम (प्रकृति प्रदत्त) का प्रतीक भी है.

* इस पर्व का एक उद्देश्य सूर्य देव के प्रति अपनेपन और करीबी को महसूस करना है. सूर्य देव को जल चढ़ाने का आशय है कि हम सच्चे ह्रदय से सूर्य के आभारी हैं और सूर्य के प्रति यह प्रेम भाव के कारण उत्पन्न हुई है.

* छठ पूजा के दौरान सूर्य को अर्घ्य देते समय लोटे में जल के साथ गाय का दूध भी मिला होता है. हिंदू धर्म में दूध को पवित्रता का प्रतीक माना गया है. इसका एक आशय यह भी है कि हमारा मन और हृदय दोनों पवित्र बने रहें.

गौरतलब है कि हर साल दिवाली के बाद कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि से सप्तमी तिथि तक छठ पूजा का पर्व मनाया जाता है. छठ पूजा, छठी माई पूजा, डाला छठ, सूर्य षष्ठी और छठ पर्व जैसे विभिन्न नामों से मशहूर छठ के इस पावन पर्व की खुमारी देशभर में देखी जा सकती है.