Ashura 2021: साल 2021 में आशुरा 20 अगस्त शुक्रवार को पड़ रही है. इस्लामी महीने की शुरुआत का आधा चांद देखने के बाद होता है. यह एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में भिन्न हो सकता है. इस्लामी कैलेंडर में आशुरा एक बहुत ही महत्वपूर्ण दिन है. यह मुहर्रम की याद का प्रतीक है. अरबी में 'आशुरा' शब्द का अर्थ 'दसवां दिन' होता है. यह एक उत्सव का अवसर नहीं है, बल्कि इस्लामिक पैगंबर मुहम्मद के पोते, हुसैन इब्न अली की शहादत को याद करने का दिन है. वह वर्ष 680 ईस्वी में कर्बला की लड़ाई में शहीद हो गए थे. सुन्नी मुसलमान और शिया मुसलमान दोनों इस दिन को इस्लामी कैलेंडर में पहले महीने के 10 वें दिन, यानि मुहर्रम के दिन बड़ी श्रद्धा के साथ मनाते हैं. यह भी पढ़ें: Ashura 2019: मुहर्रम की 10 तारीख को इन WhatsApp मैसेजेस को भेजकर करें इमाम हुसैन की कुर्बानी को याद
इस दिन दुनिया भर के कई देशों में इराक, ईरान, अफगानिस्तान, बहरीन, लेबनान, भारत और पाकिस्तान में राष्ट्रीय अवकाश होता है. शिया मुसलमान उस दिन हुसैन इब्न अली की कब्र पर तीर्थयात्रा कर आशूरा का पालन करते हैं, जो कि कर्बला शहर में इराक में है. इस शोक का पोशाक पहना जाता है. इस दिन वे स्मरण और उपदेश सुनते हैं कि कैसे वह और उनका परिवार शहीद हुए थे. इस दिन सभी सांसारिक उत्सवों को त्याग दिया जाता है. कर्बला की लड़ाई को अच्छे और बुरे के बीच की लड़ाई का प्रतीक माना जाता है. आशुरा पर मुसलमान Messages और Quotes भेजकर इमाम हुसैन की शहादत को याद करते हैं.
1. मेरी खुशियों का सफर गम से शुरू होता है
मेरा हर साल मुहर्रम से शुरू होता है
2. एक दिन बड़े गुरुर से कहने लगी जमीन
है मेरे नसीब में परचम हुसैन का
फिर चाँद ने कहा मेरे सीने के दाग देख
होता है आसमान पर भी मातम हुसैन का
3. क्या जलवा कर्बला में दिखाया हुसैन ने
सजदे में जा कर सिर कटाया हुसैन ने
नेजे पे सिर था और ज़ुबान पे आयतें
कुरान इस तरह सुनाया हुसैन ने
4. क्या हक़ अदा करेगा ज़माना हुसैन का
अब तक ज़मीन पे क़र्ज़ है सजदा हुसैन का
झोली फैला कर मांग लो
हर दुआ कबूल करेगा दिल हुसैन का
5. जब भी कभी ज़मीर का सौदा हो दोस्तों,
कायम रहो हुसैन के इंकार की तरह
मुहर्रम में पूरे महीने लोग मातम मनाते हैं और हर तरह के जश्न से दूर रहते हैं. दरअसल, मुहर्रम का चांद नजर आते ही लोग गमगीन हो जाते हैं और इमाम हुसैन की शहादत को याद करते हैं. यौम-ए-आशुरा को शिया और सुन्नी समुदाय के लोग अलग-अलग तरीके से मनाते हैं. शिया मुसलमान मुहर्रम के शुरुआती 9 दिनों तक रोजा रख सकते हैं, लेकिन दसवें दिन रोजा रखने को शिया उलेमी हराम मानते हैं. वहीं सुन्नी मुसलमान मुहर्रम के महीने में नौंवी और दसवीं तारीख को रोजा रखते हैं.