विनायक दामोदर सावरकर अकेले हिंदूवादी क्रांतिकारी नेता थे, जिन्हें दो बार उम्रकैद की सजा मिली, वे पहले ऐसे स्नातक थे, जिनकी ग्रेजुएशन की उपाधि अंग्रेजों ने इसलिए छीन ली क्योंकि उन्होंने इंग्लैंड के राजा की स्तुतिगान से साफ मना कर दिया था, वे पहले क्रांतिकारी थे, जिसने सबसे पहले विदेशी कपड़ों की होली जलाई थी. विनायक सावरकर क्रांतिकारी ही नहीं बल्कि दार्शनिक, ओजस्वी वक्ता, महान कवि और लेखक, इतिहासकार, सशक्त राजनेता जैसी तमाम खूबियां भी स्वयं में समेटे हुए थे. वह अकेले ऐसे क्रांतिकारी थे, जिसने आजादी के लिए सबसे ज्यादा वक्त जेल में गुजारा. लेकिन आजादी का प्रतिफल उन्हें नहीं मिला.
शिक्षा-दीक्षा:
विनायक दामोदर सावरकर का जन्म 1883 में नासिक के भगूर गांव के एक सामान्य मध्यम वर्गीय परिवार में हुआ था. इनके पिता श्री दामोदरपंत सावरकर एवं माँ राधा बाई धार्मिक प्रवृत्ति के थे, जबकि विनायक इसके ठीक विपरीत नास्तिक प्रवृत्ति के थे. वह जब मात्र 9 वर्ष के थे, उनकी मां हैजा की चपेट में आकर मौत की शिकार बनी, इसके कुछ ही दिनों बाद पिता की भी प्लेग के कारण मृत्यु हो गयी. इसी वजह से कुशाग्र बुद्धि के होने के बावजूद उनकी पढ़ाई में काफी बाधाएं आयीं. सन 1901 में विनायक ने नासिक के शिवाजी स्कूल से हाई स्कूल की परीक्षा पास की. तत्पश्चात पुणे के फर्ग्युसन कॉलेज से साहित्य में स्नातकोत्तर किया. लॉ की पढ़ाई के लिए वह ब्रिटेन चले गये. वहां लॉ की पढ़ाई पूरी करने के बाद ‘द हॉनरेवल सोसायटी ऑफ ग्रे इन लंदन’ से बैरिस्टर बने. लेकिन ब्रिटिश सरकार ने उन पर एक हत्याकांड में सहयोग देने का आरोप लगाकर वापस भारत भेज दिया.
अंग्रेजी हुकूमत के विरुद्ध का संघर्ष का आह्वान:
ब्रिटिश सरकार ने विनायक सावरकर से उनकी ग्रेजुएशन की उपाधि इसीलिए छीन ली क्योंकि उन्होंने इंग्लैंड के राजा के प्रति वफादारी की शपथ लेने से साफ मना कर दिया था. ब्रिटेन में रहते हुए उन्होंने ‘1857 में स्वतंत्रता के भारतीय युद्ध’ नामक एक पुस्तक लिखी थी, जिसमें 1857 के गदर की बड़ी बारीकी से समीक्षा की गयी थी. अंग्रेज सरकार ने इस पुस्तक पर प्रतिबंध लगा दिया. यहीं से विनायक ने ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ एक अघोषित युद्ध-सा छेड़ दिया.
बंदूक नहीं कलम को बनाया हथियार:
वीर सावरकर ने अंग्रेज सरकार की नीतियों के खिलाफ बंदूक के बजाय कलम का सहारा ज्यादा लिया. अंग्रेज उनकी कलम से इस कदर भयाक्रांत रहते थे कि वीर सावरकर को काला पानी भेजे जाने के बाद जब उन्हें जेल की एक कोठरी में कैद किया गया तो, जेलर समेत सभी सिपाहियों को चेतावनी दी गयी थी कि सावरकर को पेपर और पेन उपलब्ध नहीं होने दें. पेन और पेपर्स नहीं उपलब्ध होने पर सावरकरने जेल की दीवार को पेपर बनाया और नाखून को पेन, बनाकर पूरी दीवारों पर अपने विचारों को लेखिनीबद्ध किया. जेल की दीवारो पर लिखी उनकी इबारतें आज भी मौजूद हैं. इसी तरह उन्होंने रत्नागिरी जेल में भी ‘हिंदुत्व’ नामक एक पुस्तक लिखी थी।
6 बार चुने गये पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष:
विनायक दामोदर सावरकर को 20वीं शताब्दी का सबसे बड़ा हिन्दूवादी नेता माना जाता है. उन्हें हिन्दू शब्द से बहुत लगाव था. सावरकर ने ताउम्र ‘हिन्दू-हिन्दी-हिन्दुस्तान’ के लिए कार्य किया. वह अखिल भारत हिन्दू महासभा के 6 बार राष्ट्रीय अध्यक्ष चुने गए। 1938 में हिन्दू महासभा को राजनीतिक दल घोषित किया था. उनकी पार्टी ने देश के विभाजन का कड़ा विरोध किया था. 1948 में गाँधीजी की हत्या करने वाले नाथूराम गोडसे भी हिंदू महासभा के सदस्य थे. सावरकर कट्टर हिंदूवादी नेता होने के बावजूद वह हिंदू-मुस्लिम एकता पर अकसर कुछ न कुछ लिखते रहे.
माना जाता है कि उन्होंने अपनी बहुचर्चित पुस्तक ‘1857 के स्वातंत्र समर’ में हिंदू मुस्लिम एकता पर जितना सुंदर लेख लिखा, उतना सुंदर तो न गांधीजी लिख सके न नेहरूजी. महात्मा गांधी की हत्या में विनायक सावरकर पर भी भारत सरकार की तरफ से आरोप लगाया गया था, परन्तु अंततः सर्वोच्च न्यायालय ने उन्हें निर्दोष सबित कर दिया. 26 फरवरी सन् 1966 में 83 वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया।